June 30, 2022

राजस्थान के प्रमुख लोक नृत्य || Folk Dance of Rajasthan

 


            राजस्थान राज्य कला व संस्कृति से भरपूर है, इसीलिए यहाँ की संकृति अभी राज्यों से निराली है | राजस्थान में अलग अलग जगहों पर अलग अलग अवसरों पर अलग अलग नृत्य किये जाते है | मौसम के आगमन, बच्चे के जन्म, विवाह व अन्य बहुत सारे विवाहों को मनाने के लिए जिन नृत्यों का प्रदर्शन किया जाता है, उन्हें हम लोक नृत्य के नाम से जानते है। 

            आपको जानकारी दें की राजस्थानी लोक नृत्य ऊर्जा से भरपूर हैं | इनमें कुछ नृत्य केवल पुरुषों, कुछ नृत्य केवल महिलाओं व कुछ स्त्री-पुरुष दोनों द्वारा किये जाते है | इनमें गीत के साथ साथ वाध्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है | 

विशेष बिंदु :

  • भरतमुनि को भारतीय इतिहास में भारतीय संगीत नृत्य तथा लोक नृत्य का जनक माना जाता है | 
  • इनके नृत्य पर नाट्य शास्त्र ग्रन्थ लिखा गया है |
  • शास्त्रीय नृत्य : जिनका उल्लेख शास्त्र में हो | भारत में कुल 8 शास्त्रीय नृत्य है |
  • कत्थक शास्त्रीय नृत्य : यह राजस्थान / उत्तर भारत का एकमात्र शास्त्रीय नृत्य है | कत्थक नृत्य की शुरुआत जयपुर घराने से मानी जाती है |
  • जयपुर में कत्थक नृत्य की शुरुआत भानु जी ने की |
  • जयपुर में कत्थक नृत्य हिन्दू शैली पर आधारित होता है |
  • कत्थक का आधुनिक घराना या वर्तमान घराना लखनऊ (UP) है|
  • लखनऊ में कत्थक नृत्य की शुरुआत अवध के नवाब वाजिद अलीशाह के काल में हुई |
  • लखनऊ घरां मुस्लिम शैली पर आधारित है |
  • वर्तमान में प्रसिद्ध कलाकार : बिरजू महाराज 
  • कत्थक नृत्य पौराणिक कथाओं पर आधारित होता है इसका दूसरा नाम मंगलमुखी होता है |
राजस्थान में लोक नृत्य को चार भागों में बांटा गया है :
1. क्षेत्रीय नृत्य
2. सामाजिक व धार्मिक नृत्य 
3. जनजातीय नृत्य
4. व्यावसायिक नृत्य

क्षेत्रीय नृत्य

1. ढोल नृत्य 
            यह जालौर का प्रसिद्ध नृत्य है | यह नृत्य संचालिया सम्प्रदाय द्वारा किया जाता है |इसमें शामिल चार जातियां हैं : ढोली, भील, माली, सांसी | इस नृत्य को भूतपूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास ने पहचान दिलाई | यह नृत्य ढोल की थाकना शैली पर आधारित है | विशेष रूप से यह शादी के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला समूह-नृत्य है।

2. डांग नृत्य
            यह नृत्य  नाथद्वारा (राजसमंद) का प्रसिद्ध नृत्य है | विशेष रूप से यह  होली के अवसर पर किए जाने वाला नृत्य है।

3. बिंदौरी नृत्य
            यह नृत्य झालावाड़ क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | विशेष रूप से यह होली व विवाह के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला समूह- नृत्य है।

4. बमरसिया नृत्य 
            यह नृत्य भरतपुर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | यह नृत्य होली के आस पास फसल को काटने की ख़ुशी में किया जाता है | इस नृत्य में बम नामक वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है | इस नृत्य के समय रसिया गीत गाया जाता है |

5. नाहर नृत्य 
            यह नृत्य मांडल (भीलवाड़ा) क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | इस नृत्य में पुरुषों द्वारा शेर की वेशभूषा में स्वांग किया जाता है। इस नृत्य की शुरुआत शाहजहाँ के मंडल आने पर हुई |

6. मछली नृत्य 
            यह नृत्य बाड़मेर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | इस नृत्य की शुरुआत हंसी ख़ुशी के साथ व समापन दुःख के साथ किया जाता है |

7. खारी नृत्य 
            यह नृत्य अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | यह दुल्हन की विदाई के समय उनकी सहेलियों द्वारा किया जाता है |

8. चारकुला 
            यह नृत्य भरतपुर,अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | यह नृत्य महिलाएं  सिर पर बर्तन/घड़ा के ऊपर दीपक जलाकर करती है।

9. पेजण नृत्य
            यह नृत्य वागड़ (डूंगरपुर, बांसवाड़ा) क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | विशेष रूप से दीपावली के अवसर पर किया जाता है।

10. कच्छी घोड़ी नृत्य 
            यह शेखावाटी तथा नागौर क्षेत्र में किया जाने वाला पुरुष प्रधान नृत्य है | इसमें नृतक बांस की कच्छी घोड़ी बनाकर दुल्हे के रूप में नृत्य करता है | दो पंक्तियों में चार चार पुरुषों द्वारा यह नृत्य किया जाता है | इस नृत्य के समय फूल की पंखुड़ियों के खुलने तथा जोड़ने की प्रक्रिया सा प्रतीत होता है |
            इस नृत्य के समय ढोल व झांझ वाद्ययंत्र के साथ लसकरिया गीत गाये जाते हैं | इस नृत्य के प्रसिद्ध कलाकार झवंरमल गहलोत(जोधपुर) व गोविन्द पारिक (निवाई, टोंक) हैं | 

11. गीदड़ नृत्य
            यह शेखावाटी क्षेत्र में होली के अवसर पर होली से पूर्व डांडा रोपण से होली के सप्ताह भर बाद तक पुरुषों द्वारा किया जता है।

12. चंग नृत्य 
            यह शेखावाटी क्षेत्र में किया जाता है और यहाँ इसे धमाल कहा जाता है | होली के अवसर पर पुरुषों के समूह में चंग वाद्ययंत्र के साथ किया जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य के समय फाग गीत गाये जाते हैं |

13. कबूतरी नृत्य - चुरू क्षेत्र

14. जिंदाद नृत्य - शेखावाटी क्षेत्र

15. लूर/ल्हूर नृत्य - झुंझुनू का अत्यधिक अश्लील नृत्य है |


सामाजिक व धार्मिक नृत्य

1. घूमर नृत्य 
            यह मारवाड़, जयपुर का लोकप्रिय नृत्य है | यह राजस्थान का लोक नृत्य है इसलिए इसे नृत्यों का सिरमोर कहा जाता है | यह राजस्थान के लोक नृत्यों की  आत्मा है। इसे राजवाड़ी नृत्य कहा जाता है |
    
        यह मांगलिक अवसरों पर महिलाओं द्वारा किया जाता है | इसका सर्वाधिक प्रचलन गणगौर के उत्सव पर होता है | घूमर नृत्य की ले तथा गीत 'सवाई' कहलाती है | घूमर नृत्य 'कहर की ताल' पर किया जाता है |
            यह अत्यधिक धीमी गति के साथ व नजाकत से अंगों का संचालन करते हुए किया जाता है |

2. अग्नि नृत्य
            यह कतरियासर (बीकानेर) का प्रसिद्ध नृत्य है | बीकानेर के जसनाथी सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा फतै-फतै के उद्‌घोष के साथ जलते अंगारोंं पर किया जाता है। इसमें अंगारों के ढेर को धूना व नृतक को नचनिया कहा जाता है | बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने इस नृत्य को शरण दी | 

3. डांडिया नृत्य - यह मारवाड़ का प्रसिद्ध नृत्य है जिसे नवरात्रों के अवसर पर महिलाओं द्वारा किया जाता है |

4. थाली नृत्य - पाबूजी

5. सांकल नृत्य - गोगाजी 

6. तेजा नृत्य - तेजाजी

7. घुटक्कण नृत्य - कैला मैया

8. तेरहताली नृत्य 
            यह नृत्य बाड़मेर, जैसलमेर, डीडवाना (नागौर) का प्रसिद्ध नृत्य है | इस नृत्य का उद्गम पादरला गाँव (पाली) से है | रामदेव जी की आराधना में कामड़ जाती की महिलाओं द्वारा 13 मंजिरे (9 दायें पैर, 2 कलाई, 2 कोहनी पर) तथा 13 ताल के साथ किया जाता है | इसका प्रमुख वाद्ययंत्र तन्दुरा (चौतारो) है |
            यह एकमात्र ऐसा नृत्य है जो बैठकर किया जाता है | इस नृत्य को महाराजा गंगा सिंह जी ने शरण दी थी | इसके प्रसिद्ध कलाकार मांगीबाई, मोहनी, नारायणी, रामीबाई व लक्ष्मणदास कामड़ हैं | 

 व्यावसायिक नृत्य

1. भवाई नृत्य
            यह नृत्य भवाई जाति में सर्वाधिक लोकप्रिय है | इस नृत्य में अंगो के संचालन के साथ चमत्कारी क्रियाएं की जाती हैं | इस नृत्य के जनक ब्यावर (केन्कड़ी) के बागोजी जाट व नागोजी जाट थे | 
            इसमें कलाकार सिर पर 7-8 मटके रखकर कलात्मक अदाकारियाँ करता है। भवाई में वोरा-वोरी सूरदास, शंकरिया, ढोला-मारू, आदि प्रसंग होते हैं। इसके प्रसिद्ध कलाकार पुष्पा व्यास (पहली महिला नृतक), अस्मिता काला (155 घड़े सिर पर रखकर किया), श्रेष्ठा सोनी (लिटिल वंडर), रूप सिंह राठोड, रेखा शर्मा, तारा शर्मा आदि हैं |

2. कालबेलिया
            यह नृत्य कालबेलिया जाती में प्रचलित है | यह राजस्थान में सर्प पकड़ने वाली जाती है | गुलाबो ने कालबेलिया नृत्य को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई। इस जनजाति का मुक्य वाद्ययंत्र बीन/पूंगी है | 
            यह नृत्य राजस्थान का एकमात्र ऐसा नृत्य है जिसे UNESCO (पेरिस) की विश्व धरोहर सूची में 2010 में शामिल किया गया है | आमेर के निकट हाथी गाँव में इसका ट्रेनिंग सेंटर खोला गया है |
            इसके प्रसिद्ध कलाकारों में गुलाबो (पद्मश्री), कंचन सपेरा, लीला सपेरा, कमली, राजकी आदि शामिल हैं |
इस जाती के मुख्यतः चार नृत्य हैं (Trick : बाई पास) :

  • बागड़िया नृत्य – स्त्रियों द्वारा भीख मांगते समय किया जाता है |
  • इण्डोणी नृत्य – स्त्री पुरुषों द्वारा पूँगी व खंजरी वाद्य पर किया जाने वाला वृताकार नृत्य जो इण्डोणी गीत के साथ किया जाता है | यह एक कपल डांस या युगल नृत्य है |
  • पणिहारी नृत्य – पणिहारी गीत के साथ युगल-नृत्य।
  • शंकरिया नृत्य –  कालबेलियों का आकर्षक प्रेमकथा आधारित युगल-नृत्य। गुलाबो इसकी प्रसिद्ध नृत्यांगना है | 


जनजातीय नृत्य

1. गरासिया

  • वालर नृत्य – यह गरासिया जाती का प्रमुख नृत्य है | यह नृत्य बिना किसी वाद्य यंत्र के स्त्री-पुरुषों द्वारा दो अर्द्धवृतों में धीमी गति से किया जाता है।
  • कूद नृत्य – गरासिया स्त्री-पुरुषों द्वारा तालियों की ध्वनि पर बिना वाद्य यंत्र का नृत्य।
  • जवारा नृत्य – होली दहन के समय पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
  • लूर नृत्य – लूर गौत्र की स्त्रियों द्वारा वधू पक्ष से रिश्ते की मांग करने का नृत्य।
  • मोरिया नृत्य – विवाह के अवसर पर पुरुषों का समुह नृत्य।
  • मांदल नृत्य – मांगलिक अवसरों  पर स्त्रियों का वृताकार नृत्य।
  • रायण नृत्य – मांगलिक अवसरों पर पुरुषों का नृत्य।
  • गौर नृत्य– गणगौर पर स्त्री-पुरुषों का सामूहिक नृत्य।
2. भील
  • गवरी(राई) नृत्य - यह नृत्य भीलों का मुख्य नृत्य है और मेवाड़ क्षेत्र में सर्वाधिक प्रचलित है | यह शिव पार्वती को समर्पित है | इसे लोक नाट्यों का सिरमौर कहा जाता है | यह शिव व भस्मासुर की कथा पर आधारित है। गवरी उत्सव पार्वती की आराधना में 40 दिन चलता है।  शिव को पुरिया और मसखरे को कुटकुड़िया कहा जाता हैं।
  • नेजा नृत्य – होली अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाता है।
  • हाथीमना नृत्य – विवाह के अवसर भील पुरुषों द्वारा बैठकर किया जाता है।
  • युद्ध नृत्य – दो दलों द्वारा युद्ध का अभिनय करते हुए किया जाता है जिसमें युद्ध की क्रियाएं जैसा होता है।इस नृत्य के समय भीलों का रणघोष फाईरे फाईरे किया जाता है | वर्तमान में राज्य सरकार ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया |
  • द्विचक्री नृत्य – विवाह वह मांगलिक अवसरों पर पुरुष बाहरी वृत और महिलाएं अंदर के  वृत में नाचती है।
  • घूमरा नृत्य – मांगलिक अवसरों पर भील महिलाओ द्वारा ढोल व थाली पर किया जाने वाला नृत्य।
  • गैर नृत्य – होली के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक वृताकार नृत्य।
3. कथोड़ी
  • मावलिया नृत्य – नवरात्रों में उदयपुर के कथोड़ी पुरुषों द्वारा किया जाने वाला समूह नृत्य।
  • होली नृत्य – होली के अवसर पर कथौड़ी  महिलाओं द्वारा किया जाने वाला समुह नृत्य।

4.सहरिया (जंगली)

  • शिकारी नृत्य –  बाँरा जिले के सहरिया पुरुषों द्वारा शिकार का अभिनय करते हुए किया जाता है। राज्य सरकार ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया है |
  • लहँगी नृत्य – सहरिया पुरुषों का सामूहिक नृत्य है।
  • इंद्रपरी नृत्य - इस नृत्य के समय मुखौटा पहना जाता है |
  • झेला नृत्य - फसल को काटने की ख़ुशी में किया जाने वाला नृत्य है |
  • सांग नृत्य 

    5. कंजर
    • चकरी नृत्य – यह हाड़ौती क्षेत्र में प्रसिद्ध है। कंजर बालाओ (कुंवारी कन्या) द्वारा अत्यधिक तेज गति से किया जाने वाला चक्राकार नृत्य है | इसके प्रसिद्ध कलाकारो में शान्ति, फुलवा व फिलमा है |
    • धाकड़ नृत्य – कंजरो द्वारा झाला पाव की विजय की खुशी में किया जाने वाला युद्ध नृत्य।
    6. गुर्जर
    • चरी नृत्य – किशनगढ़ (अजमेर) क्षेत्र में गुर्जर महिलाएं मांगलिक अवसरों पर सिर पर चरी बर्तन से दीपक जलाकर नृत्य करती है फलकूबाई प्रसिद्ध चरी नृत्यांगना है।
    7. मेव
    • रणबाजा व रतवई नृत्य – यह अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | स्त्री-पुरुषों द्वारा मिलकर मांगलिक अवसरों पर किया जाता है | मेव स्त्रियां सिर पर इण्डोणी व खारी नृत्य करती है और पुरुष अलगोजा व टामक बजाते है। यह अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है |

    राजस्थान के अन्य नृत्य 

    1. झूमर नृत्य - हाडोती का प्रसिद्ध नृत्य जिसे स्त्रियों द्वारा त्योहारों व मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।
    2. घुड़ला नृत्य- मारवाड़ क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य जिसमें लड़कियाँ नाचती हुई घर-घर तेल मांगती है।
    3. बम नृत्य - भरतपुर, अलवर क्षेत्र में होली पर ढ़ाईं-तीन फुट ऊंचे नगाड़े पर पुरुषों द्वार किया जाने वाला समुह-नृत्य है।
    4. लांगुरिया नृत्य - करौली में कैला देवी के मेले में किया जाने वाला नृत्य।
    5. सूकर नृत्य – यह नृत्य दक्षिण राजस्थान में सूकर देवता का मुखौटा लगाकर दक्षिणी पहाड़ी के  आदिवासियों द्वारा किया जाता है ।
    6. ढप नृत्य – शेखावाटी क्षेत्र में बसंत पंचमी पर किया जाता है।
    7. चोगोला नृत्य – डूंगरपुर में होली पर स्त्रियों-पुरुषों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक नृत्य।
    8. रण नृत्य – मेवाड़ के पुरुष हाथों में तलवार लेकर करते है।



    June 22, 2022

    राजस्थान में पशुधन || Livestock in Rajasthan

     


                भारत राजस्थान की जीडीपी में पशुपालन एवं पशु उत्पाद का योगदान 10.30% है। राज्य में पशुगणना के आंकड़े 5 वर्ष की अवधि में राजस्व विभाग एवं पशुपालन निदेशालय, अजमेर द्वारा ही जारी किये जाते है। नवीनतम पशुधन के आंकड़े 2017 के हैं जो 2019 में 20वी पशुगणना के रूप में जारी किये गए थे | भारत में प्रथम पशुगणना 1919 में आयोजित की गई।


    भारत के सन्दर्भ में : 

                कुल पशुधन की संख्या = 53.5 करोड़ (535 मिलियन)
                                                    [विगत पशुगणना की तुलना में 4.63% अधिक है]
                प्रथम स्थान पर = उत्तर प्रदेश (6.8 करोड़)
                द्वितीय स्थान पर = राजस्थान (5.
    68 करोड़)
                                            [यहाँ भारत के कुल पशुधन का 10.6% पाया जाता है]
                भारत में उपस्थित कुल पशुधन में :
                        1. गौवंश (19 करोड़)        2. बकरी (14.8 करोड़)        3. भैंसवंश (10 करोड़)
                पशुधन उपलब्धता की दृष्टि से :
                        1. ऊंट, गधा, बकरी         2. भैंस        3. घोड़े        4. भेड़         5. गौवंश


    राजस्थान में पशुधन की स्थिति : (
    20वी पशुगणना के अनुसार)

                कुल संख्या = 
    5.68 करोड़
                                    [विगत पशुधन की तुलना में 1.35% कम]
                सर्वाधिक पशुधन के अंतर्गत : बकरी (लगभग 2 करोड़)
                गौवंश व भैंस की संख्या में वृद्धि हुई है व अन्य पशुधन की तुलना में कमी आई है |
                प्रतिशत रूप में सर्वाधिक कमी गधों की संख्या में हुई है लगभग 71% है |
                राजस्थान में सम्पूर्ण भारत का प्रतिशत :
                                गौवंश का 7.23%,     भैंसवंश का 12.47%,     बकरियों का 14%,
                                भेड़ों का 10.64%      ऊँटों का 84% 


    राजस्थान में पशुओं की प्रमुख नश्लें व उनकी विशेषताएं 

    1. गौवंश : 
                सर्वाधिक : उदयपुर
                न्यूनतम : धौलपुर
                कुल : 1.39 करोड़

                राजस्थान में गौ वंश बहुतायत में पाया जाता है। और राजस्थान के लगभग सभी हिस्सों में गाय पाई जाती है। राजस्थान के अलग अलग हिस्सों में विभिन्न प्रजातियों की गाएं पाई जाती है। साथ ही राजस्थान में विदेशी नस्लों की गाएं भी पाई जाती है। भारत में राजस्थान का गोवंश में छठा स्थान है।

    राजस्थान में गाय की विभिन्न नस्लें: 

    1. गीर
      क्षेत्र : बूंदी, अजमेर, भीलवाड़ा, किशनगढ़, चित्तौड़गढ़
      मूल स्थान : गुजरात
      विशेषता :  अन्य नाम अजमेरी अथवा रेंडा । यह अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध है।

    2. थारपारकर
      क्षेत्र :  जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर में सांचौर
      मूल स्थान : मालानी गांव जैसलमेर
      विशेषता : मालवी व सिन्धी नस्ल प्रसिद्ध है 

    3. नागौरी
      क्षेत्र : नागौर, पूर्वी जोधपुर, बीकानेर का नोखा
      मूल स्थान : नागौर का सुहालक
      विशेषता : नागौरी बैल जोड़ने हेतु प्रसिद्ध

    4. राठी
      क्षेत्र : बीकानेर, जैसलमेर, श्रीगंगानगर, चूरू
      विशेषता : लाल सिंधी व साहिवाल की मिश्रित नस्ल, जो दूध देने में अग्रणी है | राजस्थान की कामधेनु भी कहा जाता है।

    5. कांकरेज
      क्षेत्र : जोधपुर, बाड़मेर सांचौर नेहड़ क्षेत्र, जालौर
      मूल स्थान : गुजरात का कच्छ का रण
      विशेषता : बोझा ढोने व दुग्ध उत्पादन हेतु प्रसिद्ध | 

    6. हरियाणवी
      क्षेत्र : चूरू, सीकर, झुंझुनू , गंगानगर, हनुमानगढ़,जयपुर
      मूल स्थान : रोहतक, हिसार हरियाणा में
      विशेषता : दुग्ध भार वाहन दोनों दृष्टियों से उपयुक्त

    7. मालवी
      क्षेत्र : झालावाड़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, कोटा, बारां, उदयपुर
      मूल स्थान : मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र)
      विशेषता : मुख्यतया भारवाही नस्ल | अलवर भरतपुर में हल जोतने हेतु प्रसिद्ध |

    8. सांचोरी
      क्षेत्र : सांचौर, उदयपुर, पाली, सिरोही
      विशेषता : दुग्ध उत्पादन हेतु प्रसिद्ध |

    9. मेवाती
      क्षेत्र : अलवर भरतपुर
      विशेषता : कोढ़ी

    विदेशी नस्लें :

    1. जर्सी गाय – यह नस्ल मूलतः अमेरिकी है ।यह सर्वाधिक दूध देने हेतु प्रसिद्ध है।
    2. होलिस्टिन गाय – होलिस्टिन गाय का मूल स्थान होलैंड व अमेरिका है। यह भी अधिक दूध देती है।
    3. रेड डेन गाय – रेड डेन का मूल स्थान डेनमार्क है

    2. भैंसवंश : 
                सर्वाधिक : अलवर 
                न्यूनतम : जैसलमेर
                कुल : 1.37 करोड़

                राज्य का देश में उत्तरप्रदेश के बाद दूसरा स्थान है। राज्य में भैंस प्रजनन केंद्र वल्लभनगर (उदयपुर) है।

    भैंसों की नस्लें : 

    1. मुर्रा
      क्षेत्र : जयपुर, अलवर, भरतपुर, उदयपुर, गंगानगर
      मूल स्थान : पकिस्तान का मोंटगोमरी
      विशेषता : राजस्थान में सर्वाधिक संख्या वाली नस्ल, भेस की सर्वोत्तम नस्ल। सुंडी भी कहा जाता है |

    2. जाफराबादी
      क्षेत्र : बाड़मेर, जालौर, दक्षिणी जोधपुर
      मूल स्थान : गुजरात
      विशेषता :  –
       सर्वाधिक शक्तिशाली नस्ल।

    3. सूरती
      क्षेत्र : उदयपुर, डूंगरपुर
      मूल स्थान : गुजरात
      विशेषता :  –
       दूध के लिए प्रसिद्ध।
    भैंस की अन्य नस्लें : मेहसाणी (मूल स्थान मेहसाणा), भदावरी (मूलस्थान उत्तरप्रदेश), रथ, नागपुरी आदि मुख्य हैं |

    3. भेड़ : 

                सर्वाधिक : बाड़मेर 
                न्यूनतम : धौलपुर
                कुल : 79 लाख

                देश में भेड़ों की संख्या के आधार पर राज्य का चौथा स्थान है |

    भेड़ों की नस्लें

    1. चोकला भेड़ 
      क्षेत्र : झुंझुनू ,सीकर ,चूरू, बीकानेर व जयपुर
      विशेषता : इसे छापर एवं शेखावाटी के नाम से भी जाना जाता है। इसे भारत की मेरिनो कहा जाता है ।इससे प्राप्त हुई फाइन  मध्यम किस्म का है।

    2. मालपुरी भेड़ 
      क्षेत्र : जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर ,बूंदी ,अजमेर ,भीलवाड़ा 
      विशेषता : उन मोटी होने के कारण गलीचे के लिए उपयुक्त है। इसे देसी नस्ल भी कहा जाता है।

    3. सोनाड़ी भेड़ 
      क्षेत्र : उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ ,बांसवाड़ा भीलवाड़ा 
      विशेषता : इसे चर्नोथर भी कहतें हैं | इसके कान बहुत लम्बे होते हैं | 

    4. पूगल भेड़
      क्षेत्र : बीकानेर के पश्चिमी भाग, जैसलमेर ,नागौर
      विशेषता : मध्यम व मोती ऊन के लिए प्रसिद्ध |

    5. मगरा भेड़
      क्षेत्र : बीकानेर जैसलमेर और नागौर
      विशेषता : इसे चाकरी व बीकानेरी चोकला भी कहा जाता है ।

    6. नाली भेड़ 
      क्षेत्र : गंगानगर झुंझुनू सीकर बीकानेर चूरू
      विशेषता : इसकी ऊन घने व लंबे रेशे वाली व मोती ऊन होती है।

    7. मारवाड़ी भेड़
      क्षेत्र : जोधपुर बाड़मेर पाली सिरोही
      विशेषता : मध्यम श्रेणी की ऊन व मांस के लिए जानी जाती है |

    8. जैसलमेरी भेड़
      क्षेत्र : जैसलमेर जोधपुर बाड़मेर में पश्चिमी भाग
      विशेषता : सर्वाधिक ऊन इस नस्ल की भेड़ों से प्राप्त होती है।

    9. खेरी 
      क्षेत्र : जोधपुर, पाली, नागौर
      विशेषता : ऊन गलीचे कार्य में काम आती है |

    भेड़ों की विदेशी नस्लें

    1. रूसी मैरिनो भेड़ – टोंक, सीकर, जयपुर में बहुतायत में पायी जाती है। 
    2. रेडबुल भेड़ –  टोंक  
    3. कोरिडेल भेड़ – टोंक  में बहुतायत में पायी जाती है। 
    4. डोर्सेट भेड़ – चित्तौड़गढ़ में बहुतायत में पायी जाती है।

    4. बकरी : 
                सर्वाधिक : बाड़मेर 
                न्यूनतम : धौलपुर
                कुल : 2.084 करोड़

                राजस्थान का देश में प्रथम स्थान है। नागौर जिले का वरुण गांव बकरियों के लिए प्रसिद्ध है।

    बकरी की नस्लें

    1. मारवाड़ी या लोही बकरी
      क्षेत्र : जोधपुर, पाली, नागौर, बीकानेर, जैसलमेर ,बाड़मेर, दक्षिणी चुरू
      विशेषता : राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाई जाती है । मांस के लिए जानी जाती है। इसके शरीर से प्राप्त होने वाले बाल, गलीचे बनाने के काम आते हैं।

    2. जखराना या अलवरी
      क्षेत्र : बहरोड़ (झखराना गांव )अलवर, उत्तर जयपुर
      विशेषता : यह अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध है।

    3. बारबरी
      क्षेत्र : धौलपुर भरतपुर अलवर करौली सवाई माधोपुर
      विशेषता : अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध।

    4. सिरोही
      क्षेत्र : अरावली पर्वतीय क्षेत्र
      विशेषता : मांस के लिए उपयुक्त।

    5. परबतसर
      क्षेत्र : परबतसर (नागौर), अजमेर, जयपुर
      विशेषता : अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध।

    6. जमुनापारी
      क्षेत्र : कोटा बूंदी झालावाड़ (हाड़ौती क्षेत्र)
      विशेषता : अधिक मांस व दूध देने हेतु प्रसिद्ध है।

    7. शेखावटी
      क्षेत्र : सीकर, झुंझुनू
      विशेषता : बिना सिंग वाली नस्ल हैं। विकास काजरी के द्वारा किया गया | दूध और मांस के लिए प्रसिद्ध |

    5. ऊंट : 

                सर्वाधिक : बाड़मेर 
                न्यूनतम : बाँसवाड़ा
                कुल : 2.13 लाख

                भारत में राजस्थान का ऊंट के सन्दर्भ में प्रथम स्थान है | बाड़मेर बीकानेर चूरू में सर्वाधिक हैं | नाचना ऊँट नामक नस्ल अपनी सुंदरता एवं बोझा ढोने के लिए प्रसिद्ध है |

    1. बीकानेर 
      क्षेत्र :
      बीकानेर नागौर, जोधपुर, चुरू, गंगानगर
      विशेषता : भारवाहन में उपयोगी

    2. जैसलमेरी
      क्षेत्र :
      जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बोकानेर
      विशेषता : यह रेतीले भाग में सवारी करने में काम में आता है | जैसलमेरी ऊंटों से जुडी हुई रेबारी जाती प्रसिद्ध है | 

    6. घोड़ा : 
                सर्वाधिक : बाड़मेर 
                न्यूनतम : बाँसवाड़ा
                कुल : 3.4 लाख

                भारत में राज्य का स्थान घोड़ों के सन्दर्भ में तीसरा स्थान है |
    1. मालाणी 
      क्षेत्र : बाड़मेर के गुढ़ामालानी
      विशेषता : घुड़दौड़ में उपयोगी
    2. मारवाड़ी 
      क्षेत्र : जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जालौर
      विशेषता : भारवाहन
    3. बाड़मेर की प्रसिद्ध काठियावाड़ी नस्ल|
    7. मुर्गी पालन

    • सबसे उन्नत नस्ल की मुर्गियाँ अजमेर में पायी जाती है ।
    • नस्लें – असील, बरसा, टेनी, वाइट लेगहॉर्न,इटेलियन।
    • कड़कनाथ योजना  - बांसवाड़ा में मुर्गी पालन के लिए चलायी गयी योजना।
    • राजकीय कुक्कुट प्रशिक्षण केंद्र अजमेर में है । राज्य कुक्कुट फार्म जयपुर में है ।

    राज्य सरकार ने पशुओं से सम्बंधित "मुख्यमंत्री पशुधन निःशुल्क दवा योजना" की शुरुआत की | पशुधन की चिकित्सा हेतु सर्वाधिक उपयोग में आने वाली आवश्‍यक दवाईयां निःशुल्क उपलब्ध कराने की दृष्टि से “मुख्यमंत्री पशुधन निःशुल्क दवा योजना” 15 अगस्त, 2012 से प्रारम्भ की गई।


    उपरोक्त सभी बिन्दुओं के मुख्य अंशों को सूची में दर्शाया गया है जो आपके लिए बहुपयोगी साबित होगी|


    # कुछ अन्य पहलू :

                राज्य में पशुपालन एवं डेयरी विकास विभाग शीर्ष स्तर की संस्था है | जिसे अब पशुपालन विभाग के नाम से जाना जाता है | इसे ही गोपालन विभाग भी कहते हैं |

                राजस्थान में पशुधन एवं अनुसन्धान हेतु शीर्ष संस्था बीकानेर की राजुवास विश्वविद्यालय (राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञानं) है | जिसकी स्थापना 2010 में की गयी थी |

    1. पश्चिमी क्षेत्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र = अविकानगर (टोंक)
    2. राष्ट्रिय ऊंट अनुसंधान केंद्र = जोहड़बीड (बीकानेर)
    3. केन्द्रीय पशु प्रजनन केंद्र = सूरतगढ़
    4. पशुधन अनुसंधान केंद्र = वल्लभनगर (उदयपुर) 
    5. मरवास अश्व प्रजनन एवं अनुसंधान केंद्र = जोधपुर
    6. केन्द्रीय भेड़ एवं अनुसंधान केंद्र = अविकानगर (टोंक)
    7. भेड़ एवं ऊन प्रशिक्षण केंद्र = जयपुर
    8. भेड़ प्रजनन केंद्र = फतेहपुर (सीकर)
    9. राजस्थान पशु विकास बोर्ड = लालकोठी (जयपुर)
    # अन्य बिंदु जो अक्सर परीक्षा में पूछे गए हैं : 
    1. किस पशु को राजकीय पशु घोषित किया गया है - ऊंट
    2. किस देश को ऊंटों की तश्करी होती है - बांग्लादेश को
    3. किस बाँध में रंगीन मछलियों का उत्पादन होता है - टोंक जिले के बीसलपुर बाँध में | इसमें राज्य सरकार द्वारा एक्वाकल्चर आरम्भ किया जाएगा जिसके तहत रंगीन मछलियों की ब्रीडिंग करवाई जायेगी |
    4. देश के दुग्ध उत्पादन में राजस्थान का कितना हिस्सा है - 10%
    5. दुग्ध उत्पादन में राजस्थान का देश में स्थान - दूसरा (प्रथम = उत्तर प्रदेश)
    6. देश की दूसरी दुग्ध परीक्षण एवम अनुसंधान प्रयोगशाला कहाँ खोली गयी है - जयपुर में (प्रथम = हरियाणा )
    7. मुख्यमंत्री पशु निशुल्क दवा योजना क्या है - इस योजना में पशुधन के सर्वाधिक उपयोग में आने वाली 110 आवश्यक दवाइयां एवं 13 सर्जिकल/ड्रैसिंग मैटीरियल निःशुल्क उपलब्धत कराया जाता है।
    8. राज्य में नयी पशुधन निति कब घोषित की गयी - 18 फरवरी 2010
    9. गौधन एवं भैंसों का कितना हिस्सा खेती एवं परिवहन के काम आता है - गौधन का 50% एवं भैंसों का 25% 
    10. राज्य की कितनी प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या की घरेलू आय का माध्यम पशुपालन है - 80%

    उपरोक्त विषय में यदि कोई त्रुटी नजर आये तो निचे कमेंट से अवगत अवस्य कराये ताकि भविष्य हेतु सुधार किया जा सके |



    June 15, 2022

    राजस्थान में संभाग || Divisions of Rajasthan

                 सभी राज्यों की भाँती राजस्थान भी विभिन्न संभागों में बतान हुआ है ताकि राज्य के प्रशासनिक कार्य को सुचारू रूप से चलाया जा सके | किसी संभाग को जनसंख्या के हिसाब से छोटा कर दिया तो किसी संभाग को क्षेत्रफल के हिसाब से बड़ा कर दिया, यह सब वहा पर स्थापित व्यवस्थाओं के हिसाब से सजाया गया है | आईये पहले जान ले इससे जुड़े मत्वपूर्ण पहलु जो राजस्थान को अनूठा और विशिष्ट बनाता है :

    • Number of Districts (जिले)-33
    • Number of Sub-divisions in the State-192
    • Panchayat Committees-248
    • Tahsils-244
    • Nagar Palika-185
    • Gram Panchayat-9177
    • Total Villages-44,672
    • Towns and Cities-297
    • Number of Divisions (संभाग) -7


            संभाग एक प्रशासनिक व्यवस्था कहलाती है जिसमें के प्रभावी प्रशासन के लिए समभागीय आयुक्त को नियुक्त किया जाता है |

    • वास्तव में संभाग व्यवस्था की शुरुआत 1949 में हीरालाल शास्त्री द्वारा की गयी थी | उस समय 5 संभाग ही बनाए गए : जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा |
    • फिर संभाग व्यवस्था को अप्रैल 1962 में मोहनलाल सुखाडिया द्वारा स्थगित कर दिया गया |
    • 15 जनवरी 1987 में हरिदेव जोशी द्वारा पुन: शुरू किया गया और पुराने 5 संभागों के साथ 6वां  संभाग अजमेर भी जोड़ा गया | यह जयपुर संभाग से अलग होकर नया संभाग बना।
    • 4 जून 2005 में वसुंधरा द्वारा भरतपुर संभाग को 7वां नया संभाग के रूप में जोड़ दिया गया |

    इस तरह राजस्थान को प्रशासनिक दृष्टि से कुल 7 संभागों में बांटा गया :

    1. बीकानेर संभाग- बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू
    2. जयपुर संभाग- जयपुर, दौसा, सीकर, अलवर, झुंझुनू
    3. भरतपुर संभाग- भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर
    4. अजमेर संभाग- अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक, नागौर
    5. कोटा संभाग- कोटा, बुंदी, बांरा, झालावाड़
    6. उदयपुर संभाग- उदयपुर, राजसंमद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा,चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़
    7. जोधपुर संभाग- जोधपुर, जालौर, पाली, बाड़मेर, सिरोही, जैसलमेर

    संभागों से पूछे गए गत वर्षों में महत्वपूर्ण बिंदु

    • क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा संभाग – जोधपुर
    • क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा संभाग – भरतपुर

    • जनसँख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा संभाग – जयपुर
    • जनसँख्या की दृष्टि से सबसे छोटा संभाग – कोटा

    • सर्वाधिक साक्षर संभाग – जयपुर
    • सबसे ज्यादा जिलों वाला संभाग – जोधपुर, उदयपुर
              चार संभाग ऐसे हैं जिनमे 4 जिले हैं : बीकानेर, अजमेर, भरतपुर, कोटा
              दो संभाग ऐसे हैं जिनमे 6 जिले हैं : जोधपुर, उदयपुर
              *जयपुर एकमात्र ऐसा संभाग जिसमे 5 जिले हैं |

    • सर्वाधिक नदियों वाला संभाग – कोटा
    • सबसे कम नदियों संभाग - बीकानेर

    • सभी संभागों को सीमा को छूने वाला संभाग – अजमेर
    • अन्तर्राष्ट्रीय सीमा को छूने वाले संभाग – जोधपुर व बीकानेर
    • ना तो अंतर्राष्ट्रीय ना ही अंतर्तज्यीय सीमा को छूने वाला संभाग – अजमेर


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    Published on: 15/06/2022
    Updated on: --/--/----


    June 8, 2022

    भारतीय जनगणना (2011) में राजस्थान का स्थान || Census of Rajasthan - 2011

                राजस्थान से सम्बंधित इस भाग में जनगणना का वर्णन किया जा रहा है, जो पूर्ण रूप से सरकारी आंकड़ो पर आधारित है | ये सभी आंकड़े अगस्त 2022 तक के वर्तमान आंकड़े हैं | इस ब्लॉग में आपके लिए परीक्षा के लिए जो जरूरी आंकड़े रहेंगे वो ही अंकित किये जा रहे हैं इसलिए सिर्फ यहीं आंकड़े अक्सर परीक्षा में आते हैं जो घुमा फिराकर पूछ लिए जाते हैं |

    आइये जाने :
    • कौन सा जिला है सबसे आगे साक्षरता में ?
    • कौन से जिले का लिंगानुपात है सबसे कम ?
    • कौन से शहर में हैं सबसे ज्यादा महिलाएं हैं ?

                आंकड़ों को पढने से पहले उन पहलुओं की और नजर डालें जो इन आंकड़ों का आधार है :

    जनसंख्या (Population): किसी राज्य अथवा देश में एक निश्चित समय पर उपस्थित जनसमूह को अर्थात उनकी कूल संख्या को जनसंख्या कहा जाता है | इससे सम्बंधित सिधांत माल्थस का है | इनके अनुसार जनसंख्या गुणात्मक रूप से बढती है जबकि संसाधन गणितीय रूप में |

    जनगणना (Census): यह देश अथवा राज्य में उपस्थित जनसमूह से जुडी विशेषताओं जिनमे कुल जनसंख्या, लिंगानुपात, घनत्व इत्यादि का अध्यन करती है |वर्तमान समय में मानव की साक्षरता दर, शहरी नगरीय अनुपात, धार्मिक जनसँख्या, जातिगत जनसँख्या एवं आर्थिक पहलू मत्वपूर्ण हो गए हैं |

            भारत में जनगणना का इतिहास

    • सर्वप्रथम ऋग्वेद से जोड़कर देखा जाता है |
    • चाणक्य के अर्थशास्त्र व अबुल फजल की आईने अकबरी में भी जनगणना का उल्लेख है |
    • मेयो ने शुरूआत की =1872 में [सर्वप्रथम जनगणना]
    • सुव्यवस्थित जनगणना की = 1881 में [लार्ड रिप्पन ने]
    • वर्तमान 2011 तक 15 वी व सुव्यवस्थित 14 वी और आजादी बाद की 7 वी  की जा चुकी है |
    • विषय : यह केंद्र सूची का विषय है (केवल केंद्र सरकार को अधिकार)
    • अनुच्छेद 246 व 7वी अनुसूची (69) में उल्लेखित है |
    • केंद्र सरकार द्वारा : जनगणना कानून 1948 में व जनगणना नियम 1990 में बना |

    जनांककीय (Demography): इसमें जनसंख्या से जुड़े विभिन्न पहलुओं का अध्यन वर्तमान एवं भविष्य की योजनाओंएवं रूप रेखाओं को देखकर किया जाता है | यह सिद्धांत थोमसन एवं नोटेस्टीन महोदय ने दिया | इनके अनुसार भारतीय एवं राजस्थान की जनसंख्या तीसरे चरण में हैं |

    राजस्थान की जनगणना से सम्बंधित मुख्य बिंदु :

    • कुल जनसँख्या : 6.86 करोड़(6,85,48,437)
    • नगरीय जनसँख्या : 1.70 करोड़ (1,70,48,085) [कुल जनसँख्या का 24.9%]
      महिला = 89,09,250 (25.1%)
      पुरुष = 81,38,835 (24.7%)
    • ग्रामीण जनसँख्या : 5.15 करोड़ (5,15,00,352) [कुल जनसँख्या का 75.1%]
      महिला = 2,66,41,747 (74.9%)
      पुरुष = 2,48,58,605 (75.3%)
    • कुल पुरुष : 3.56 करोड़
    • कुल महिला : 3.30 करोड़


                        राजस्थान की कुल आबादी भारत की कुल आबादी की 5.66% है जो राज्यों के की दृष्टि में 2011 के अनुसार 8वें पायदान पर है
    परन्तु वर्तमान समय में 7वें स्थान पर है |

    आएये जाने राजस्थान की जनसँख्या धर्मानुसार कैसी है :

    1. हिन्दू = 88.49%
    2. मुस्लिम = 9.07%
    3. सिख = 1.27%
    4. जैन = 0.91%
    5. इसाई = 0.14%
    6. बौद्ध = 0.02%
    7. नास्तिक = 0.01%
    8. अन्य (पारसी, यहूदी आदि) = 0.10%

     

    जिलेवार विवरण


    1. जनसंख्या : (करोड़ में)


                वह जिला जो कुल जनसंख्या का सर्वाधिक % शहरी क्षेत्र में निवास करता है : कोटा (60.3%)

    • 0-6 आयु वर्ग की जनसँख्या = 1,06,49,504 (15.4%)
    • शहरी जनसँख्या : 22,34,621
      पुरुष = 11,92,577
      महिला = 10,42,044
    • ग्रामीण जनसँख्या : 84,14,883
      पुरुष = 44,46,599
      महिला = 39,68,284
    • 0-6 आयु वर्ग की सर्वाधिक जनसँख्या वाला जिला = जयपुर (9,29,926)
    • 0-6 आयु वर्ग की न्यूनतम जनसँख्या वाला जिला = जैसलमेर (1,30,463)


    2. जनसँख्या वृद्धि दर : (प्रतिशत में) : 2001-2011 वर्ष हेतु


                वर्तमान में जनसँख्या वृद्धि (निरपेक्ष) दर 21.3% है | यदि दशकीय आधार पर देखें तो निम्न बिंदु इसको परिभाषित करते हैं :

    • 1921 - नकारात्मक वृद्धि दर दिखाई दी | ऐसा महामारी सूखा एवं अकाल के कारण था इसे महान जनान्ककीय विभाजक भी कहा जाता है |
    • 1951 - इसमें कमी आने का कारण विभाजन था | इसे द्वितीय जनांककीय विभाजन कहा जाता है | इस समय वृद्धि दर 15.2% थी |
    • 1970 - यह दशक जनसंख्या विष्फोट का दशक कहलाता है |
    • 1981 - यहाँ सर्वाधिक जनसंख्या वृद्धि दर देखने को मिली 32.4%
    • 1991 - इसकी कमी आना शुरू हुई जो 2011 तक 7% की हो गयी |


                पुरुष संख्या में वृद्धि = 20.8%
                महिला संख्या में वृद्धि = 21.8%
                ग्रामीण में = 19%
                शहरी में = 29%

    3. क्षेत्रफल : (वर्ग किलोमीटर में)

            राजस्थान का कुल क्षेत्रफल 3,42,239 है जो भारत का 10.41% है | अगर वर्गमील में देखें तो क्षेत्रफल 1,32,139 बन जाता है | इसके तुलनात्मक राज्यों में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं गुजरात है किन्तु इसके अलावा सभी से लगभग दुगुने से अधिक दिखता है |



     

    4. जनसँख्या घनत्व:     

    जन घनत्व प्रतिवर्ग किलोमीटर में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या को प्रकट करता है |

    2011 की जनगणनानुसार देखें तो 200 व्यक्ति /वर्ग किमी दिखाई देते हैं | और यही राजस्थान में तीन ऐसे जिले जिनका जन. घनत्व 100 से भी कम है = जैसलमेर (17), बीकानेर(78) और बाड़मेर(92) और 18 ऐसे जिले हैं जिनका घनत्व राज्य के घनत्व से अधिक है |


     

    5. लिंगानुपात:

             यह समाज में उपस्थित जनसंख्या का लैंगिक अनुपात है स्त्री एवं पुरुष की संख्या को अनुपात में दर्शाता है। 

             यह अनुपात प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों को दर्शाता है जिसके द्वारा समाज के वैचारिक स्थिति अर्थव्यवस्था के स्वरूप रोजगार के प्रवृत्ति बाजार में उपभोक्ताओं की मांग एवं आपूर्ति इत्यादि को प्रकट करता है। 

            1905 में 905 था वहीं 1951 में 911 हो गया। वर्तमान में यह 928 है।

            राजस्थान में सबसे न्यूनतम लिंगानुपात 1921 में 876 दिखाई दिया था।

                    सामान्य लिंगानुपात: 928
                    शहरी लिंगानुपात = 914 
                    ग्रामीण लिंगानुपात = 933

                    0-6 आयु वर्ग का लिंगानुपात: 888

                    0-6 आयु वर्ग की जनसँख्या = 1,06,49,504 (15.4%)
                    शहरी लिंगानुपात : 874
                    ग्रामीण लिंगानुपात : 892


    6. साक्षरता दर:

    यह एक सामाजिक पक्ष है जिसके आधार पर आर्थिक एवं सामाजिक विकास को मापा जा सकता है |

    2011 के अनुसार राजस्थान में साक्षरता दर 66.10% है जो 1911 की तुलना में 22 गुना अधिक है और 1951 की तुलना में 8 गुना अधिक है |

    सामान्य साक्षरता दर की तुलना में पुरुष साक्षरता दर 79.2% जबकि महिला साक्षरता दर 52.1% दिखाई देती है |

              सामान्य साक्षरता दर  = 66.10%


                              शहरी = 79.7%          ग्रामीण = 61.4%


                      पुरुष साक्षरता दर = 79.2%


                    शहरी = 87.9%                ग्रामीण = 76.2%


                      महिला साक्षरता दर = 52.1%

                     शहरी = 70.7%          ग्रामीण = 45.8%

    7. राजस्थान में अनुसूचित जाति व जनजाति

              
                अनुसूचित जाति (SC) = 1,22,21,593 (17.8%)



     

                अनुसूचित जनजाति (ST) = 92,38,534 (13.8%)



     

    8. राजस्थान में शहर व ग्रामीण में जिलों में जनसँख्या की विविधता :



     

       






                  उपर्युक्त सभी आंकड़े केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़े है | इनमें यदि कोई त्रुटी नजर आये तो कमेंट जरूर करें ताकि उसमें सुधार किया जा सके | यदि यह आपको लाभप्रद लगे तो भी कमेंट जरूर करें ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके |



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