राजस्थान राज्य कला व संस्कृति से भरपूर है, इसीलिए यहाँ की संकृति अभी राज्यों से निराली है | राजस्थान में अलग अलग जगहों पर अलग अलग अवसरों पर अलग अलग नृत्य किये जाते है | मौसम के आगमन, बच्चे के जन्म, विवाह व अन्य बहुत सारे विवाहों को मनाने के लिए जिन नृत्यों का प्रदर्शन किया जाता है, उन्हें हम लोक नृत्य के नाम से जानते है।
आपको जानकारी दें की राजस्थानी लोक नृत्य ऊर्जा से भरपूर हैं | इनमें कुछ नृत्य केवल पुरुषों, कुछ नृत्य केवल महिलाओं व कुछ स्त्री-पुरुष दोनों द्वारा किये जाते है | इनमें गीत के साथ साथ वाध्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है |
विशेष बिंदु :
- भरतमुनि को भारतीय इतिहास में भारतीय संगीत नृत्य तथा लोक नृत्य का जनक माना जाता है |
- इनके नृत्य पर नाट्य शास्त्र ग्रन्थ लिखा गया है |
- शास्त्रीय नृत्य : जिनका उल्लेख शास्त्र में हो | भारत में कुल 8 शास्त्रीय नृत्य है |
- कत्थक शास्त्रीय नृत्य : यह राजस्थान / उत्तर भारत का एकमात्र शास्त्रीय नृत्य है | कत्थक नृत्य की शुरुआत जयपुर घराने से मानी जाती है |
- जयपुर में कत्थक नृत्य की शुरुआत भानु जी ने की |
- जयपुर में कत्थक नृत्य हिन्दू शैली पर आधारित होता है |
- कत्थक का आधुनिक घराना या वर्तमान घराना लखनऊ (UP) है|
- लखनऊ में कत्थक नृत्य की शुरुआत अवध के नवाब वाजिद अलीशाह के काल में हुई |
- लखनऊ घरां मुस्लिम शैली पर आधारित है |
- वर्तमान में प्रसिद्ध कलाकार : बिरजू महाराज
- कत्थक नृत्य पौराणिक कथाओं पर आधारित होता है इसका दूसरा नाम मंगलमुखी होता है |
1. क्षेत्रीय नृत्य
2. सामाजिक व धार्मिक नृत्य
3. जनजातीय नृत्य
4. व्यावसायिक नृत्य
क्षेत्रीय नृत्य
1. ढोल नृत्य
यह जालौर का प्रसिद्ध नृत्य है | यह नृत्य संचालिया सम्प्रदाय द्वारा किया जाता है |इसमें शामिल चार जातियां हैं : ढोली, भील, माली, सांसी | इस नृत्य को भूतपूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास ने पहचान दिलाई | यह नृत्य ढोल की थाकना शैली पर आधारित है | विशेष रूप से यह शादी के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला समूह-नृत्य है।
2. डांग नृत्य
यह नृत्य नाथद्वारा (राजसमंद) का प्रसिद्ध नृत्य है | विशेष रूप से यह होली के अवसर पर किए जाने वाला नृत्य है।
3. बिंदौरी नृत्य
यह नृत्य झालावाड़ क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | विशेष रूप से यह होली व विवाह के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला समूह- नृत्य है।
4. बमरसिया नृत्य
यह नृत्य भरतपुर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | यह नृत्य होली के आस पास फसल को काटने की ख़ुशी में किया जाता है | इस नृत्य में बम नामक वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है | इस नृत्य के समय रसिया गीत गाया जाता है |
5. नाहर नृत्य
यह नृत्य मांडल (भीलवाड़ा) क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | इस नृत्य में पुरुषों द्वारा शेर की वेशभूषा में स्वांग किया जाता है। इस नृत्य की शुरुआत शाहजहाँ के मंडल आने पर हुई |
6. मछली नृत्य
यह नृत्य बाड़मेर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | इस नृत्य की शुरुआत हंसी ख़ुशी के साथ व समापन दुःख के साथ किया जाता है |
7. खारी नृत्य
यह नृत्य अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | यह दुल्हन की विदाई के समय उनकी सहेलियों द्वारा किया जाता है |
8. चारकुला
यह नृत्य भरतपुर,अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | यह नृत्य महिलाएं सिर पर बर्तन/घड़ा के ऊपर दीपक जलाकर करती है।
9. पेजण नृत्य
यह नृत्य वागड़ (डूंगरपुर, बांसवाड़ा) क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | विशेष रूप से दीपावली के अवसर पर किया जाता है।
10. कच्छी घोड़ी नृत्य
यह शेखावाटी तथा नागौर क्षेत्र में किया जाने वाला पुरुष प्रधान नृत्य है | इसमें नृतक बांस की कच्छी घोड़ी बनाकर दुल्हे के रूप में नृत्य करता है | दो पंक्तियों में चार चार पुरुषों द्वारा यह नृत्य किया जाता है | इस नृत्य के समय फूल की पंखुड़ियों के खुलने तथा जोड़ने की प्रक्रिया सा प्रतीत होता है |
इस नृत्य के समय ढोल व झांझ वाद्ययंत्र के साथ लसकरिया गीत गाये जाते हैं | इस नृत्य के प्रसिद्ध कलाकार झवंरमल गहलोत(जोधपुर) व गोविन्द पारिक (निवाई, टोंक) हैं |
11. गीदड़ नृत्य
यह शेखावाटी क्षेत्र में होली के अवसर पर होली से पूर्व डांडा रोपण से होली के सप्ताह भर बाद तक पुरुषों द्वारा किया जता है।
12. चंग नृत्य
यह शेखावाटी क्षेत्र में किया जाता है और यहाँ इसे धमाल कहा जाता है | होली के अवसर पर पुरुषों के समूह में चंग वाद्ययंत्र के साथ किया जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य के समय फाग गीत गाये जाते हैं |
13. कबूतरी नृत्य - चुरू क्षेत्र
14. जिंदाद नृत्य - शेखावाटी क्षेत्र
15. लूर/ल्हूर नृत्य - झुंझुनू का अत्यधिक अश्लील नृत्य है |
1. घूमर नृत्य
यह मारवाड़, जयपुर का लोकप्रिय नृत्य है | यह राजस्थान का लोक नृत्य है इसलिए इसे नृत्यों का सिरमोर कहा जाता है | यह राजस्थान के लोक नृत्यों की आत्मा है। इसे राजवाड़ी नृत्य कहा जाता है |
यह मांगलिक अवसरों पर महिलाओं द्वारा किया जाता है | इसका सर्वाधिक प्रचलन गणगौर के उत्सव पर होता है | घूमर नृत्य की ले तथा गीत 'सवाई' कहलाती है | घूमर नृत्य 'कहर की ताल' पर किया जाता है |
यह अत्यधिक धीमी गति के साथ व नजाकत से अंगों का संचालन करते हुए किया जाता है |
2. अग्नि नृत्य
यह कतरियासर (बीकानेर) का प्रसिद्ध नृत्य है | बीकानेर के जसनाथी सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा फतै-फतै के उद्घोष के साथ जलते अंगारोंं पर किया जाता है। इसमें अंगारों के ढेर को धूना व नृतक को नचनिया कहा जाता है | बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने इस नृत्य को शरण दी |
3. डांडिया नृत्य - यह मारवाड़ का प्रसिद्ध नृत्य है जिसे नवरात्रों के अवसर पर महिलाओं द्वारा किया जाता है |
4. थाली नृत्य - पाबूजी
5. सांकल नृत्य - गोगाजी
6. तेजा नृत्य - तेजाजी
7. घुटक्कण नृत्य - कैला मैया
8. तेरहताली नृत्य
यह नृत्य बाड़मेर, जैसलमेर, डीडवाना (नागौर) का प्रसिद्ध नृत्य है | इस नृत्य का उद्गम पादरला गाँव (पाली) से है | रामदेव जी की आराधना में कामड़ जाती की महिलाओं द्वारा 13 मंजिरे (9 दायें पैर, 2 कलाई, 2 कोहनी पर) तथा 13 ताल के साथ किया जाता है | इसका प्रमुख वाद्ययंत्र तन्दुरा (चौतारो) है |
यह एकमात्र ऐसा नृत्य है जो बैठकर किया जाता है | इस नृत्य को महाराजा गंगा सिंह जी ने शरण दी थी | इसके प्रसिद्ध कलाकार मांगीबाई, मोहनी, नारायणी, रामीबाई व लक्ष्मणदास कामड़ हैं |
1. भवाई नृत्य
यह नृत्य भवाई जाति में सर्वाधिक लोकप्रिय है | इस नृत्य में अंगो के संचालन के साथ चमत्कारी क्रियाएं की जाती हैं | इस नृत्य के जनक ब्यावर (केन्कड़ी) के बागोजी जाट व नागोजी जाट थे |
इसमें कलाकार सिर पर 7-8 मटके रखकर कलात्मक अदाकारियाँ करता है। भवाई में वोरा-वोरी सूरदास, शंकरिया, ढोला-मारू, आदि प्रसंग होते हैं। इसके प्रसिद्ध कलाकार पुष्पा व्यास (पहली महिला नृतक), अस्मिता काला (155 घड़े सिर पर रखकर किया), श्रेष्ठा सोनी (लिटिल वंडर), रूप सिंह राठोड, रेखा शर्मा, तारा शर्मा आदि हैं |
2. कालबेलिया
यह नृत्य कालबेलिया जाती में प्रचलित है | यह राजस्थान में सर्प पकड़ने वाली जाती है | गुलाबो ने कालबेलिया नृत्य को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई। इस जनजाति का मुक्य वाद्ययंत्र बीन/पूंगी है |
यह नृत्य राजस्थान का एकमात्र ऐसा नृत्य है जिसे UNESCO (पेरिस) की विश्व धरोहर सूची में 2010 में शामिल किया गया है | आमेर के निकट हाथी गाँव में इसका ट्रेनिंग सेंटर खोला गया है |
इसके प्रसिद्ध कलाकारों में गुलाबो (पद्मश्री), कंचन सपेरा, लीला सपेरा, कमली, राजकी आदि शामिल हैं |
इस जाती के मुख्यतः चार नृत्य हैं (Trick : बाई पास) :
- बागड़िया नृत्य – स्त्रियों द्वारा भीख मांगते समय किया जाता है |
- इण्डोणी नृत्य – स्त्री पुरुषों द्वारा पूँगी व खंजरी वाद्य पर किया जाने वाला वृताकार नृत्य जो इण्डोणी गीत के साथ किया जाता है | यह एक कपल डांस या युगल नृत्य है |
- पणिहारी नृत्य – पणिहारी गीत के साथ युगल-नृत्य।
- शंकरिया नृत्य – कालबेलियों का आकर्षक प्रेमकथा आधारित युगल-नृत्य। गुलाबो इसकी प्रसिद्ध नृत्यांगना है |
1. गरासिया
- वालर नृत्य – यह गरासिया जाती का प्रमुख नृत्य है | यह नृत्य बिना किसी वाद्य यंत्र के स्त्री-पुरुषों द्वारा दो अर्द्धवृतों में धीमी गति से किया जाता है।
- कूद नृत्य – गरासिया स्त्री-पुरुषों द्वारा तालियों की ध्वनि पर बिना वाद्य यंत्र का नृत्य।
- जवारा नृत्य – होली दहन के समय पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
- लूर नृत्य – लूर गौत्र की स्त्रियों द्वारा वधू पक्ष से रिश्ते की मांग करने का नृत्य।
- मोरिया नृत्य – विवाह के अवसर पर पुरुषों का समुह नृत्य।
- मांदल नृत्य – मांगलिक अवसरों पर स्त्रियों का वृताकार नृत्य।
- रायण नृत्य – मांगलिक अवसरों पर पुरुषों का नृत्य।
- गौर नृत्य– गणगौर पर स्त्री-पुरुषों का सामूहिक नृत्य।
- गवरी(राई) नृत्य - यह नृत्य भीलों का मुख्य नृत्य है और मेवाड़ क्षेत्र में सर्वाधिक प्रचलित है | यह शिव पार्वती को समर्पित है | इसे लोक नाट्यों का सिरमौर कहा जाता है | यह शिव व भस्मासुर की कथा पर आधारित है। गवरी उत्सव पार्वती की आराधना में 40 दिन चलता है। शिव को पुरिया और मसखरे को कुटकुड़िया कहा जाता हैं।
- नेजा नृत्य – होली अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाता है।
- हाथीमना नृत्य – विवाह के अवसर भील पुरुषों द्वारा बैठकर किया जाता है।
- युद्ध नृत्य – दो दलों द्वारा युद्ध का अभिनय करते हुए किया जाता है जिसमें युद्ध की क्रियाएं जैसा होता है।इस नृत्य के समय भीलों का रणघोष फाईरे फाईरे किया जाता है | वर्तमान में राज्य सरकार ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया |
- द्विचक्री नृत्य – विवाह वह मांगलिक अवसरों पर पुरुष बाहरी वृत और महिलाएं अंदर के वृत में नाचती है।
- घूमरा नृत्य – मांगलिक अवसरों पर भील महिलाओ द्वारा ढोल व थाली पर किया जाने वाला नृत्य।
- गैर नृत्य – होली के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक वृताकार नृत्य।
- मावलिया नृत्य – नवरात्रों में उदयपुर के कथोड़ी पुरुषों द्वारा किया जाने वाला समूह नृत्य।
- होली नृत्य – होली के अवसर पर कथौड़ी महिलाओं द्वारा किया जाने वाला समुह नृत्य।
4.सहरिया (जंगली)
- शिकारी नृत्य – बाँरा जिले के सहरिया पुरुषों द्वारा शिकार का अभिनय करते हुए किया जाता है। राज्य सरकार ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया है |
- लहँगी नृत्य – सहरिया पुरुषों का सामूहिक नृत्य है।
- इंद्रपरी नृत्य - इस नृत्य के समय मुखौटा पहना जाता है |
- झेला नृत्य - फसल को काटने की ख़ुशी में किया जाने वाला नृत्य है |
- सांग नृत्य
- चकरी नृत्य – यह हाड़ौती क्षेत्र में प्रसिद्ध है। कंजर बालाओ (कुंवारी कन्या) द्वारा अत्यधिक तेज गति से किया जाने वाला चक्राकार नृत्य है | इसके प्रसिद्ध कलाकारो में शान्ति, फुलवा व फिलमा है |
- धाकड़ नृत्य – कंजरो द्वारा झाला पाव की विजय की खुशी में किया जाने वाला युद्ध नृत्य।
- चरी नृत्य – किशनगढ़ (अजमेर) क्षेत्र में गुर्जर महिलाएं मांगलिक अवसरों पर सिर पर चरी बर्तन से दीपक जलाकर नृत्य करती है फलकूबाई प्रसिद्ध चरी नृत्यांगना है।
- रणबाजा व रतवई नृत्य – यह अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है | स्त्री-पुरुषों द्वारा मिलकर मांगलिक अवसरों पर किया जाता है | मेव स्त्रियां सिर पर इण्डोणी व खारी नृत्य करती है और पुरुष अलगोजा व टामक बजाते है। यह अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है |
- झूमर नृत्य - हाडोती का प्रसिद्ध नृत्य जिसे स्त्रियों द्वारा त्योहारों व मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।
- घुड़ला नृत्य- मारवाड़ क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य जिसमें लड़कियाँ नाचती हुई घर-घर तेल मांगती है।
- बम नृत्य - भरतपुर, अलवर क्षेत्र में होली पर ढ़ाईं-तीन फुट ऊंचे नगाड़े पर पुरुषों द्वार किया जाने वाला समुह-नृत्य है।
- लांगुरिया नृत्य - करौली में कैला देवी के मेले में किया जाने वाला नृत्य।
- सूकर नृत्य – यह नृत्य दक्षिण राजस्थान में सूकर देवता का मुखौटा लगाकर दक्षिणी पहाड़ी के आदिवासियों द्वारा किया जाता है ।
- ढप नृत्य – शेखावाटी क्षेत्र में बसंत पंचमी पर किया जाता है।
- चोगोला नृत्य – डूंगरपुर में होली पर स्त्रियों-पुरुषों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक नृत्य।
- रण नृत्य – मेवाड़ के पुरुष हाथों में तलवार लेकर करते है।