July 1, 2022

राजस्थान के लोक देवता

                  जब भी हम लोक देवताओं का जिक्र करते हैं सबसे पहले यही सवाल मन में आता है की ये लोक देवता क्या होते हैं? किन को हम लोक देवता की श्रेणी में रखेंगे? लोक देवताओं की क्या क्या विशेषताएं है ? क्या ये सिर्फ राजस्थान में हो होते है अपितु सम्पूर्ण भारत मे भी हैं? इन्ही सब सवालों के जवाब आज हमें मिलेंगे इस ब्लॉग में।


            राजस्थान से संबंधित विषयों के इस भाग में आप जानेंगे लोक देवता जो बहुत ही मत्वपूर्ण विषय है | जिसके बारे में परीक्षा में अक्सर पूछा ही जाता है | आएये पहले जाने की लोक देवता होते कौन है ?

लोक देवता : इसका तात्पर्य उन महापुरूषों से है जिन्होंने अपने वीरोचित कार्य तथा दृढ आत्मबल द्वारा समाज में सांस्कृतियों मूल्यों की स्थापना, धर्म की रक्षा एवं जन-हितार्थ हेतु सर्वस्व न्यौछावर कर दिया तथा ये अपनी अलौकिक शक्तियों एवं लोक मंगल कार्य हेतु लोक आस्था के प्रतीक हो गये, लोक देवता कहलाए | जैसे गायों की रक्षा हेतु |

                        "धर जातं धरा पलटता , त्रिया देतां ताव,
                          ऐ तीन तिहाड़ा त्याग रा, काई रैंक काई राव || " 

            प्राचीन समय में कुछ ऐसे महापुरुषों ने जन्म लिया, उनमे ऐसा प्रतीत होता था की उनमे देवताओं के अंश है या किसी देवता के अवतार है उन्हें कालान्तर में विभिन्न समुदायों द्वारा पूजनीय मान लिया गया और वे साम्प्रदाय आज भी उन महापुरुषों की पूजा करते है | ये किसी क्षेत्र विशेष से तो संबंध रखते ही हैं साथ मे ये सम्पूर्ण भारत मे भी विद्यमान हैं। इसलिए ये राजस्थान के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी हैं। राजस्थान के प्रमुख लोक देवता की सूची कुछ इस प्रकार है:

सबसे पहले राजस्थान के पांच पीर हमें पता होने चाहियें :

पांच पीर :

        हिन्दू व इस्लाम धर्मी दोनों पूजते हैं |
        प्रचलित दोहा : " पाबू हडबू रामदे मांगलिया मेहा, पांचू पीर पधार ज्यो गोगा जी जेहा ||"
        पांच पीर : गोगाजी, पाबूजी, मेहाजी मंगलिया, हडबू जी सांखला और रामदेव जी तंवर|


1. रामदेवजी

            प्रसिद्ध दोहा : म्हे तो केवल पीर हाँ , थे पीरा रा पीर

            इनका जन्म भाद्रपद शुक्ल 2 / बाबैरी बीज / विक्रम सम्वत 1409 को उंडुकासमेर (बाड़मेर) में हुआ था | रामदेव जी तवंर वंशीय राजपूत थे। ये अर्जुन के वंशज भी कहलाते हैं | इनके पिता का नाम अजमाल जी तंवर, माता का नाम मैणादे व  पत्नी नैतल दे अमरकोट की राजकुमारी थी, जिसके कारण नैतल रा भरतार कहलाये | इनके गुरु का नाम बालिनाथ जी था |

            इनको पीरों के पीर, रामसापीर / रामापीर (मुस्लिमो द्वारा), कृष्ण के अवतार और  रुणिचा रा धणीया कहा जाता है| इनकी ध्वजा, नेजा कहताली हैं, नेजा सफेद या पांच रंगों का होता हैं | बाबा राम देव जी एकमात्र ऐसे लोक देवता थे, जो कवि भी थे। इनकी रचना चैबीस वाणियाँ कहलाती है जिसमें मारवाड़ी भाषा के साथ 24 बोलियों का उल्लेख है।

            इन्होने कामड़ पंथ की स्थपना की। इनके मेघवाल भक्त रिखिया कहलाते हैं | तेरहताली नृत्य कामड़ सम्प्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है। रामदेव जी ने मेघवाल जाति की डाली बाई को अपनी बहन बनाया। इनकी फड़ का वाचन मेघवाल जाति या कामड़ पथ के लोग करते है | इनका प्रतीक चिन्ह पगल्ये कहलाते है और इनके पगल्यों की पूजा की जाती है। इन्होने मूर्ती पूजा का विरोध किया | इनके लोकगाथा गीत ब्यावले कहलाते हैं। इनका भजन जागरण जम्मा जागरण कहलाता है | इनके पैदल यात्री जातरू कहलाते हैं | इनका घोडा नीला घोडा कहलाता है |

            राम देव जी का मेला भाद्र शुक्ल दूज से भाद्र शुक्ल एकादशी तक भरता है। यह साम्प्रदायिक सद्भावना का मेला है | मेले का प्रमुख आकर्षण तरहताली नृत्य (पादरला (पाली) से शुरुआत हुई) होता हैं। मांगी बाई (उदयपुर) तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यागना है। इन्होने मूर्ती पूजा का विरोध किया |

            प्रमुख स्थल : 
                    रामदेवरा (रूणिचा), पोकरण तहसील (जैसलमेर)
                                -    निर्माण 1931 में महाराजा गंगासिंह द्वारा करवाया गया |
                    छोटा रामदेवरा (राजकोट-गुजरात )
                    सुरताखेड़ा (चित्तोड़)
                    बिराठिया (अजमेर)
                    मसूरिया पहाड़ी मंदिर (जोधपुर)
                    खुन्दियास मंदिर (अजमेर)

2. गोगा जी

            प्रसिद्ध कहावत : गाँव गाँव खेजड़ी, गाँव गाँव गोगो

            गोगा जी जन्म भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगानवमी) / विक्रम सम्वत 1003 को  ददरेवा  (जेवरग्राम) राजगढ़ तहसील(चुरू) में हुआ था | इनके पिता का नाम जेवर सिंह चौहान व माता बाछलदे थी | इनकी पत्नी केलमदे जो पाबूजी की भतीजी थी जो सरियल से थी | इनके गुरु का नाम गुरु गौरखनाथ था | इनके घोड़े का नाम गोगा बापा नीले रंग का था |

            गोगा जी की समाधि गोगामेड़ी, नोहर तहसील (हनुमानगढ) में है। गोगामेंडी का निर्माण “फिरोज शाह तुगलक” ने करवाया। गोगा मेडी (मेडी गोगा जी के मंदिर को कहा जाता है) का आकार मकबरेनुमा हैं। धुरमेडी के मुख्य द्वार पर बिस्मिल्लाह अंकित है। वर्तमान स्वरूप (पुनः निर्माण) महाराजा गंगा सिंह नें कारवाया। इनका विशाल मेला भाद्र कृष्णा नवमी (गोगा नवमी) को गोगामेड़ी गाँव में भरता है।  इनकी शीर्ष मेडी (ददेरवा) तथा घुरमेडी-(गोगामेडी), नोहर मे  प्रमुख स्थल हैं। गोगाजी की ओल्डी(झोंपड़ी) सांचैर (जालौर) में है।

            लोग इन्हें सांपों के देवताजाहरपीर/जीन्दापीर (यह नाम महमूद गजनवी द्वारा दिया गयाव गौ रक्षक देवता के नाम से भी पुकारते हैं। इनके थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है। इनके मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय पशु मेला भी आयोजित होता है। यह पशु मेला राज्य का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला पशु मेला है। इनके भक्त सांकल लोकनृत्य व लोकगीतों में डेरू नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग करते है। किसान खेत में बुआई करने से पहले गोगा जी के नाम से राखड़ी हल तथा हाली दोनों को बांधते है।

नोट : कबंध युद्ध - शीश काटने के बाद भी लड़ा गया युद्ध 

3. पाबु जी

            पाबु जी का जन्म संवत 1313 में जोधपुर ज़िले में फलौदी के पास कोलूमंड गाँव में हुआ था। इनका सम्बन्ध मारवाड़ के राठोड वंश से था | इनके पिता का नाम धांधलजी राठौड़ (इनके वंशज धान्धलोत राठौड़ कहलाए) व माता कमलादे (अप्सरा) थी | इनकी पत्नी सुप्यारदे / फूलांदे जो सूर्पनखा की अवतार थी और अमरकोट की राजकुमारी थी | इनकी घोड़ी का नाम केसर कालमी (देवल चारणी) था | राजस्थान में सर्वप्रथम ऊंट पाबूजी लेकर आये थे अपनी भतीजी के विवाह में दहेज हेतु अपने मित्र हरमल रैबारी से जो श्रीलंका के रहने वाले थे |

                    वंश क्रम :     राव सिहा => आस्थान => धांधल => पाबु जी

            इनके उपनाम : ऊँटों के रक्षक देवता, प्लेग रक्षक देवता, लक्ष्मण का अवतार, पाबू भालालां, कम्धजिया राठौड़, भुरज्याला, बायीं और झुकी हुई पग के देवता, गौ रक्षक देवता, रैबारी/चारण व नायक जाती के आराध्य देवता |

            देवल चारणी की गायों की रक्षा करते हुए वीर-गति को प्राप्त हुए। इसलिए इन्हें गायों, ऊंटों के देवता के रूप में मानते है। पशु के बीमार हो जाने पर ग्रामीण पाबूजी के नाम की तांती (एक धागा) पशु को बाँध कर मन्नत माँगते हैं। और ऊंट के बीमार हो जाने पर इनकी फड़ का वाचन नायक जाती के भोंपों द्वारा किया जाता है | फड़ के वाचन के समय रावणहत्था नामक वाद्य यंत्र उपयोग में लिया जाता है। 

            पाबु जी के लोकगीत पावड़े कहलाते है जिसमें माठ वाद्य का उपयोग होता है व धणी र वाचना का वाचन में सारंगी वाद्य का उपयोग होता है|  पाबु जी की फड़ राज्य की सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है | पाबु जी का प्रतीक चिन्ह हाथ में भाला लिए हुए अश्वारोही है। 

            ढेंचूं (फलौदी, जोधपुर) : इस स्थान पर पाबूजी जायल के राजा जींदराव खींची से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे | फिर इनके भतीजे झरड़ा जी ने जींदराव खींची को मारकर बदला लिया |

            इनका मंदिर कोलूमंड (फलौदी, जोधपुर) में चैत्र अमावस्या को मेला लगता है | मेहर जाती के मुस्लिम इनकी पूजा करते हैं | इनकी आराधना में थाली नृत्य किया जाता है | 

            पाबु जी  से सम्बंधित साहित्य : 
                        
पाबु प्रकाश (इनकी जीवनी) = आंशिया मोड़ जी द्वारा रचित
                        पाबूजी रा छंद = बीठू महा द्वारा रचित 
                        पाबू बत्तीसी  = रामनाथ कविया द्वारा रचित 
                        पाबूजी री वात = लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत द्वारा रचित 

4. हरभू (हडबू) जी

            प्रचलित दोहा : "हड्भू जी सांखला हरदम हाजिर गाँव बेंगटी मांही, दूजी देह म्हारी मानज्यो हाँ मौसेरा भाई ||"

            हरभू जी का जन्म स्थान भूण्डेल (नागौर) में है। सांखला राजपूत परिवार से जुडे हुए थे इसलिए इनके इष्ट देवता/अराध्य देव हैं | रामदेवी जी के मौसेरे भाई थे। इनके गुरू का नाम बालीनाथ जी था। इनके ही कहने पर इन्होने सस्त्रों का त्याग कर शास्त्रों को अपनाया | ये शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे।

            इनका मंदिर बेंगटी ग्राम (फलौंदी-जोधपुर) में है। इनके मंदिर में बैलगाड़ी की पूजा होती है| 

            मण्डोर को मुक्त कराने के लिए हरभू जी ने राव जोधा को कटार भेट की थी। मण्डोर को मुक्त कराने के अभियान में सफल होने पर राव जी ने वेंगटी ग्राम हरभू जी को अर्पण किया था।

5. मेहा जी

            इनका जन्म तापू गाँव जोधपुर में हुआ | इनके पिता का नाम कीतू करनोत व मात मायाड दे थी | इनका सम्बन्ध गुहिल राजवंश से है | इनके घोड़े का नाम किरड़ काबडा था | 

            मांगलिया राजपूतों के ईष्ट देव थे। इनका मुख्य मंदिर बापणी गांव (जोधपुर) में स्थित है व मेला भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (कृष्ण जन्माष्टमी) को भरा जाता है। इनके मंदिर के पुजारी को भोपा कहा जाता है जो जो राजपूत जाति के होते हैं |

            गायों की रक्षा करते हुए राणागदेव भाटी शासक से लड़ते हुए बलिदान दिया | 

6. वीर तेजा जी

            इनका जन्म माघ शुक्ला चतुर्दशी वि.स. 1074 में खरनाल (नागौर) के धौल्या गोत्र जाट वंश में  हुआ। इन्हें जाटों का अराध्य देव कहते है। इनकी माता का नाम राजकुंवरी व पिता ताहड़ जी थे | इनकी बहन का नाम राजल (बुन्गरी माता) था | इनकी घोड़ी का नाम लीलण (सिगारी) थे | तेजाजी का विवाह पनेर नरेश रामचन्‍द की पुत्री पैमल से हुआ था | 

            इनके उपनाम : जाटों का अराध्य देव, कृषि कार्यो का उपकारक देवता, गायों का मुक्ति दाता, काला व बाला का देवता, सांपो के देवता, वचन सिद्ध देवता। अजमेर में इनको धोलियावीर के नाम से जानते है। इनका प्रतीक चिन्ह "हाथ में तलवार लिए अश्वारोही" है। सहरिया जनजाति के घरों में इनका थान होता है | 

            इनका कार्यक्षेत्र हाडौती क्षेत्र रहा है। तेजाजी अजमेर क्षेत्र में लोकप्रिय है। 

            खरनाल (नागौर) में इनका मुख्य मंदिर है | इनके पुजारी घोडला कहलाते है। बांसी दुगारी (बूंदी) इनका पवित्र स्थल व कर्मा भूमि है | सैंदरिया में तेजाजी को नाग देवता ने डसा था। सुरसरा (किशनगढ़ अजमेर) में तेजाजी वीर गति को प्राप्त हुए। पेमल की सहेली लाछां गुजरी की गायों को मेर के मीणाओं से छुडाने के लिए संघर्ष किया व वीर गति को प्राप्त हुए। भावन्ता (नागौर) में भी इनका पवित्र स्थल है |

            परबतसर (नागौर) में ” भाद्र शुक्ल दशमी (तेजा दशमी) ” को इनका मेला आयोजित होता है।तेजाजी के मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय वीर तेजाजी पशु मेला आयोजित होता है। इस मेले से राज्य सरकार को सर्वाधिक आय प्राप्त होती है। 2011 में तेजा जी पर डाक टिकेट जारी की गयी थी | 

7. देवनारायण जी

            इनका जन्म मालासेरी गाँवआशीन्द (भीलवाडा) में हुआ। इनका बचपन का नाम उदयसिंह थान था | इनके पिता का नाम संवाई भोज एवं माता साढू खटाणी थी । इनका विवाह राजा जयसिंह (मध्यप्रदेष के धार के शासक) की पुत्री पीपलदे से हुआ। इनके घोडे़ का नाम लीलागर था।

            गुर्जर जाति के आराध्य देव है। गुर्जर जाति का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन है। देवनारायण जी विष्णु का अवतार माने जाते है। इन्हें चमत्कारी लोक पुरूष, राज्य क्रान्ति का जनक, इंटों का स्वामी (इंट व नीम के पत्ते चढ़ाए जाते हैं), वैज्ञानिक व चिकित्सक देवता जैसे उपनामों से पूजा जाता है | इनकी फड राज्य की सबसे लम्बी गाथा वाली, सबसे पुरानी, सर्वाधिक चित्रांकन (इसमें सर्प व घोड़ी को हरे रंग से दरसाया गया है) फड़ है। फड़ वाचन के समय “जन्तर” नामक वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है। इनकी 

            मुख्य मेंला भाद्र शुक्ल सप्तमी को भरता हैं। इनके मत्वपूर्ण स्थान में सवाई भोज मंदिर (आशीन्द ) भीलवाडा में व देव धाम (इस स्थान पर सर्वप्रथम देवनारायणजी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया था।) जोधपुरिया (टोंक) में है। अन्य स्थानों में देवमाली मंदिर ब्यावर अजमेर व देवडूंगरी मंदिर (निर्माण मेवाड़ के राणा सांगा ने करवाया) चित्तोड़ में है |

            1992 में भारत सरकार द्वारा इनकी फड़ पर 5 रु का टिकट भी जारी किया जा चुका हैें |

8. देवबाबा जी

            इनका जन्म नगला जहाज (भरतपुर) में हुआ व इनका प्रसिद्ध मंदिर भी यहीं पर बना हुआ है | इनका मेला भाद्र शुक्ल पंचमी को भरा जाता है। ये गुर्जर जाति के आराध्य देव है। इन्हें ग्वालों का पालन हारा के उपनाम से भी पूजा जाता है।

9. वीर कल्ला जी राठौड़

            इनका जन्म सामियाना गाँव, मेडता (नागौर) में हुआ। इनके पिता का नाम अचलसिंह / आससिंह व माता स्वेत कँवर थी | इनकी पत्नी वाग्गड़ देश की राजकुमारी कृष्णा थी | इनके गुरु का नाम योगी भैरवनाथ था और कुलदेवी नागनेच्या माता थी | इनको शेषनाग का अवतार, कमधज,  चार भुजाओं वाले देवता जैसे उपनामों से पूजा जाता है | मीरा बाई इनकी बुआ थी।

            24 फरवरी 1568 ई. में चित्तौडगढ़ के तृतीय साके के दौरान अकबर से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। चित्तोडगढ़ के भैरव पोल के निकल इनकी चार खम्बों की छतरी है | 

            इनकी मुख्य पीठ रणेला (चित्तोड़) में है जहां आश्विन शुक्ल नवमी को मेला भरा जाता है | इनके मंदिर के पुजारी को "किरणधारी" कहा जाता है | इन्हें योगाभ्यास और जड़ी-बूटियों का ज्ञान था।दक्षिण राजस्थान में वीर कल्ला जी की ज्यादा मान्यता है।

10. मल्ली नाथ जी

            इनका जन्म तिलवाडा (बाडमेर) में हुआ। इनके पिता का नाम रावल सलखा व माता जाणीदे था | इनकी पत्नी रानी रूपादे थी | रानी रूपादे का मंदिर मालाजाल बाड़मेर है |

            इनका मेला चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक लूणी नदी के किनारे तिलवाड़ा (बाड़मेर) नामक स्थान पर भरता हैं। यह मेला मल्लीनाथजी के राज्याभिषेक के अवसर से वर्तमान तक आयोजित हो रहा हैं। इस मेले के साथ-साथ पशु मेला भी आयोजित होता है। यहाँ विशेषतः थारपारकर व कांकरेज नस्ल का व्यापार होता है। यह देसी महीनों के अनुसार सर्वप्रथम आयोजित होने वाला पशु मेला है | 

            बाड़मेर का गुड़ामलानी नामक जगह का नामकरण मल्लीनाथजी के नाम पर ही हुआ हैं।

11. डूंगजी- जवाहर जी

            इनका वस्वस्त्विक नाम डूंगर सिंह व जवाहर सिंह है | इनका जन्म पाटोदा गाँव सीकर में हुआ | 

            इन्हें 1857 की क्रान्ति का देवता कहा जाता है | ये अमीरों व अंग्रेजों से धन लूट कर गरीब जनता में बांट देते थे। इन्हें राजस्थान का रॉबिनहुड कहा जाता है | शेखावटी क्षेत्र के लोकप्रिय देवता हैं।

नोट : राजस्थान में लूट करने वाले लोग धाडवी कहलाते हैं | 

12. बिग्गा जी/वीर बग्गा जी

            इनका जन्म जांगल प्रदेश (बीकानेर) में रिडी गाँव के जाट परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम रावमोहन व माता का नाम सुलतानी है | जाखड़ समाज के कुल देवता माने जाते है। मुस्लिम लुटेरों से गाय छुडाते समय वीरगति को प्राप्त हुए इसलिए इन्हें गौ रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।

            इनका प्रसिद्ध मंदिर बिग्गा गाँव बीकानेर में भरा जाता है | 

13. पंचवीर जी

            शेखावटी क्षेत्र के लोकप्रिय देवता और शेखावत समाज के कुल देवता है। अजीतगढ़ (सीकर) में इनका प्रसिद्ध मंदिर है।

14. पनराज जी

            इनका जन्म नगा ग्राम (जैसलमेर) में हुआ। इनका सम्बन्ध क्षत्रिय परिवार से था |

            काठौड़ी ग्राम के ब्राह्मणों की गाय छुडाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इनका मंदिर पनराजसर (जैसलमेर) में है। इनको जैसलमेर क्षेत्र के गौरक्षक देवता के रूप में पूजते है।

15. मामादेव जी

            इन्हें बरसात के देवता के रूप में पूजा जाता है। ये पश्चिमी राजस्थान के लोकप्रिय देवता है। इनके मंदिरों में मूर्ति के स्थान पर लकड़ी के बनें तौरण होते है। इनको खुश करने के लिए भैंसे की बली दी जाती है।

16. इलोजी जी

            इन्हें छेडछाड़ वाले देवता के रूप में पूजा जाता है | जैसलमेर पश्चिमी क्षेत्र में लोकप्रिय हैं | पश्चिमी राजस्थान में बाँझपन मिटाने के लिए इनकी पूजा की जाती है |

            इनका प्रसिद्ध मंदिर इलोजी (जैसलमेर ) में है। चैत्र कृष्ण 1 या धुलंडी के दिन बाड़मेर में इनकी सवारी निकाली जाती है |

17. तल्लीनाथ जी / वीर फत्ता जी 

            इनका जन्म सांथू गांव (जालौर) में हुआ व वास्तविक नाम गागदेव राठौड़ था। इन्होने शेरगढ (जोधपुर) ढिकान पर शासन किया था । 

            इनके गुरु का नाम जलन्धरनाथ (जालन्धर नाथ ने ही गागदेव को तल्लीनाथ का नाम दिया था) था | पंचमुखी पहाड़ जो पांचोटा / सांथू ग्राम (जालौर) के पास है इस पर घुडसवार के रूप में इनकी मूर्ति स्थापित है। इनके मंदिर परिसर को "ओरण" कहा जता है | सांथू गांव में प्रतिवर्ष भाद्रपद सुदी नवमी को मेला लगता है।

18. भोमिया जी

            भूमि / ग्राम  रक्षक देवता के रूप में गांव-गांव में पूजे जाते है।

19. केसर कुवंर जी

            गोगा जी के जयेष्ट पुत्र थे | इनके थान / खेजड़ी पर सफेद ध्वजा फहराते है। इन्हें साँपों का रक्षक देवता भी कहते हैं | इनका मंदिर खेजड़ी वृक्ष के निचे होता है |

20. झरड़ा जी 

            इनके पिटा का नाम बूडोजी था | ये पाबूजी के भतीजे थे | इन्होने जिन्दराव को मारकर पाबूजी की ह्त्या का बदला लिया था |

            इनके प्रमुख मंदिर कोलूमंढ, जाजवा (बाड़मेर ) में रूपनाथ जी का व कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) में बाबा बालकनाथ जी का है |

21. खाकल देव उदयपुर के निवासी थे |

22. आलम जी लोक देवता का वास्तविक नाम जैतमलोत राठोड है | 

23. खेत्रपाल जी को क्षेत्र रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है |

24. भूरिया बाबा 

            ये मीणा जनजाति के आराध्य देवता हैं | इनका मेला गोत्मेस्वर (प्रतापगढ़) सूकड़ी नदी के दायें किनारे की ओर भरा जाता है |

25. आदिवासीयों के लोक देवता घोडा बावसी हैं |

26. हरिराम बाबा 

            इन्हें साँपों के रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है | इनका मंदिर झोरडा गाँव नागौर में है | इनके मंदिर में साँपों की बाम्बी की पूजा होती है | इनका प्रतीक चिन्ह "चरण कमल" है | इनका मेला भाद्रपद शुक्ल पंचमी को भरा जाता है |

            

इस भाग में उल्लेखित लोक देवता की सम्पूर्ण जानकारी परीक्षानुसार है | यदि कोई त्रुटी नजर आये तो अवगत करायें ताकि उसमे सुधार किया जा सके |




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