August 13, 2022

राजस्थान की लोकदेवियां

             जिस तरह आपने पूर्व अध्याय में लोक देवता का अध्यन किया ठीक उसी प्रकार इस अंक में आप लोक देवियों का अध्यन करेंगे | वैसे तो सम्पूर्ण राजस्थान में अगर लोक देवियाँ पढ़ें तो कोई अंत नहीं किन्तु परीक्षा की और से देखें तो हमें मुख्य लोक देवियों का ही अध्यन करना है | लोक देवियाँ या लोक देवता किसे कहते हैं ? ये सब आप लोक देवता के अध्याय में पढ़ चुके हैं | यहाँ जितना योगदान लोक देवताओं का है तो लोक देवियों का योगदान भी उससे कम नहीं है |



अगर अभी तक आपने लोक देवता के बारे में नहीं पढ़ा है तो निचे लिखे लिंक पर क्लिक करें |
यह भी देखें : राजस्थान के मत्वपूर्ण लोक देवता

विभिन्न राजवंशों की लोक देवियों हेतु एक प्रचलित दोहा :
                                        "आवड तूठी भाटियां, कामेही गोंडा,
                                        श्री बिरवड तूठी सिसोदिया, करणी राठौडा ||

1. हिंगलाज माता 
            यह एक मुख्य शक्ति पीठ है | इसका मुख्य मंदिर बलूचिस्तान (सिंध, पाकिस्तान) में है | यह चारण जाति की कुल देवी है |
            पाकिस्तान में मुस्लिम धर्म के लोग इसे नानी देवी के रूप में पूजते हैं | सिंध के मुसलमान इनकी यात्रा को नानी की हज कहते हैं |
            राजस्थान में हिंगलाज माता के प्रमुख मंदिर
                        - पुष्कर
                        - बिदासर (चुरू)
                        - मायरा की गुफा (उदयपुर)

2. आवड़ माता
            
इन्हें हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है।  इनका जन्म विक्रम संवत 808 चलकाना गाँव (बाड़मेर) में मामड जी चारण के घर हुआ | यह जैसलमेर के भाटी शासकों की कुल देवी है | इनको स्वांगिया माता के रूप में भी पूजा जाता है | इनका प्रतीक चिन्ह सोन चिड़ी है |कहा जाता है कि हकरा नदी पर गुस्सा आने पर आवड़ माता नदी का सारा पानी एक घूंट में पी गई थी।
            इनका उपनाम तेमडाराय भी है। इनका मंदिर भू-गांव (जैसलमेर) में है। इस स्थान पर आवड माता ने तेमड़े नामक राक्षस का वध किया था।

3. तनोट माता / तनोट  राय 
            इनका मंदिर 
तनोट (रामगढ़, जैसलमेर) भारत पाक सीमा (रेडक्लिफ) पर स्थित है | भाटी शासक महाराजा केहर ने अपने पुत्र तणु के नाम से तन्नौर नगर बसाकर तनोटिया देवी की स्थापना करवाई। वर्तमान में इसका रख रखाव BSF करती है | भारत पाक युद्ध के समय यह मंदिर बहुत चमित्कारी रहा | मंदिर के द्वार पर भारतीय सेना द्वारा विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया गया |

           इनको बहुत से उपनामों से जाना जाता है :
                        - थार की वैष्णो देवी
                        - BSF जवानो की कुल देवी
                        - सैनिकों की कुल देवी
                        - रुमाल वाली देवी

4. करणी माता
            इनका जन्म विक्रम संवत 1444, अश्विन शुक्ल सप्तमी को सुआप गाँव जोधपुर में हुआ था | इनके पिता मेहाजी किनीया व माता देवल थी | इनके बचपन का नाम रिद्धि बाई था | इन्हें आवड माता का अवतार माना जाता है | इनका प्रतीक चील (संभली) है |
            इनका विवाह ‘साठीका गाँव’ के चारण बीठू केलु के पुत्र देवाजी बीठू से हुआ, किन्तु भोग-विलास से विरक्त होते हुए उन्होंने पति को समझाया और अपने पति का विवाह अपनी दूसरी बहिन गुलाब कुँवरी से करवाकर स्वयं देशनोक के समीप ‘जाँगठूँ के बीड़/ नेहदी’ ( नेहडी उस खेजडी का नाम है जहाँ बैठकर करणी माता ‘विलोवणा/दही मंथन’ किया करती थी ) नामक स्थान पर रहने लगी |
            इनको दाढ़ी वाली डोकरी, काबा वाली देवी, चूहों वाली देवी जैसे उपनामों से पुकारा जाता है | यह बीकानेर के राठौड़ों की कुल देवी/ईष्ट देवी है | 12 मई 1459 को राव जोधा ने करणी माता के हाथों से मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव रखवाई | 
            चुहों वाली देवी के नाम से प्रसिद्ध है। इसके मंदिर के पुजारी चारण समाज के लोग होते है | करणी माँ की गायों का ग्वाला दशरथ मेघवाल गायों की रक्षा करते हुए मरा था। गोधन पर आक्रमण करने वाले राव कान्हा का इन्होंने वध किया।

            प्रमुख मंदिर :

    • देशनोक (बीकानेर) - मुख्य मंदिर 
      यह मंदिर बीकानेर से 35 किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित है जो राष्ट्रीय राजमार्ग 89 पर स्थित है | बीकानेर शासक राव जैतसी तथा कर्ण सिंह ने इसका प्रारम्भिक निर्माण करवाया | इसके आधुनिक निर्माता महाराजा गंगा सिंह थे | इनका मेला चैत्र-आश्विन नवरात्रों में भरा जाता है |
      विशेषता : मंदिर को मठ या मंड कहा जाता है | इनके गीतों को चिरजा कहा जाता है| चूहों को काबा कहा जाता है व सफ़ेद या पवित्र काबा को धौला काबा कहा जाता है | यहाँ पर सावन-भादों नामक बड़े कडाहे रखे हुए हैं | 108 किलो का चांदी का दीपक है जिसे चांदी-रो-दीवलो कहा जाता है |
    • मंसापूर्ण करणी माता मंदिर (उदयपुर)
      इनका यह मंदिर पिछौला झील के किनारे बना हुआ है | राजस्थान का दूसरा रोप वे यही लगाय है | यहाँ सफ़ेद चीहे मिलते हैं |
    • धौलागढ़ वाली देवी (अलवर) - उपनाम : करणी माता  
      इसका निर्माण अलवर के राजा बख्तावर सिंह ने कराया |

5. जीण माता
            इनका जन्म धान्धू गाँव चुरू में हुआ | इनके बचपन का नाम जैयवंती बाई था | इनके भाई का नाम हर्ष था | यह शेखावटी क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय देवी है | सांभर (अजमेर) के चैहानों की कुलदेवी मानी जाती है। मीणा जाति की आराध्य देवी है व शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी कही जाती है | यहाँ अढाई प्याले शराब चढ़ाने की रस्म अदा की जाती हैं|  जीण माता को मधुमखियों की देवी कहा जाता है 
            रेवासा ग्राम (सीकर) में काजल शिखर पहाड़ी के निकट इसका मंदिर है जो सीकर से 25 KM दूर दक्षिण दिशा में है, इस पर जीण माता के भाई हर्ष भैरु का थान है । हर्ष पर्वत पर शिलालेख के अनुसार जीणमाता के मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान (प्रथम) के शासन काल में हरड़ ने 1064 ई. में करवाया। राजस्थान में सबसे लंबा गीत जीण माता का है | कनफटे जोगी केसरिया वस्त्र पहनकर, माथे पर सिन्दूर लगाकर, डमरू और सारंगी पर जीण माता के गीत गाते हैं | यह गीत करूण रस से ओत-प्रोत है जो ‘चिरंजा’ कहलाता है। जीण माता के मंदिर में अखंड ज्योत जलती है | वर्तमान में यहां बकरे के कान चढ़ाते हैं किंतु पहले बकरे की बाली दी जाती थी। मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने सेना भेजकर जीण माता के मंदिर को तुडवाना चाहा किन्तु वह असफल रहा | माता के मंदिर के निकल भंवराथल / भ्रमर माता है | जीण माता के मेले में मीणा जनजाति के लोग मुख्य रूप से भाग लेते है। माता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रों में लगता है।
            महाराजा महेशदान सिंह ने नागौर जिले के प्राचीन कस्बे मारोठ के पश्चिम में स्थित पर्वत की गुफा के भीतर जीण माता का एक छोटा किन्तु भव्य मंदिर बनवाया।

6. शीतला माता
            शीतला माता का प्राचीन मंदिर उदयपुर में हैं किन्तु मुख्य मंदिर चाकसू (जयपुर) में है। जयपुर के मंदिर का निर्माण जयपुर शासक माधो सिंह ने शील डूंगरी पर करवाया | इसमें खंडित प्रतिमा की पूजा की जाती है | यह माता राठौड़ों की इष्ट देवी है |
            इनका चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतला अष्टमी) के दिन मेला भरता है। इनका वाहन गधा हैं व पुजारी-कुम्हार समाज के लोग होते है | इसलिए इस दिन गधों का मेला भरा जाता है | शीतला अष्टमी के दिन ही माता के लिए बास्योड़ा/बासडिया प्रसाद बनाया जाता हैं | इस दिन खेजड़ी की पूजा होती है |
            इन्हें चेचक की देवी, बच्चों की पालनहार या संरक्षिका माता, सेढ़ल माता, स्वच्छता की देवी व किसानों की आराध्य देवी जैसे उपनामों से पुकारा जाता है।
नोट : इसी दिन मारवाड़ में घुडला पर्व मनाया जाता है।

7. नाग्नेच्या माता
            यह माता राठौड़ों की कुलदेवी है | इसे पंखोणी माता या चक्रेश्वरी माता भी कहा जाता है | इसकी 18 भुजाएं वाली मूर्ति है जिसे राव बीका ने बीकानेर में स्थापित करवाई थी।
            मारवाड़ शासक राव धूहड़ कर्नाटक से लुम्बा ऋषि के आशीर्वाद से यह मूर्ति मारवाड़ लेकर के आये | कर्नाटक में इस माता को चक्रेश्वरी माता के रूप में पूजते हैं | राठौड़ों के राजचिन्ह पर चील के रूप में माता का प्रतीक होता था |सबसे पहला मंदिर व प्राचीन मंदिर नागाणा गाँव, बाड़मेर में स्थित है |फिर राव जोधा इस स्थान से मूर्ती ले जाकर मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थापित करवाता है |माता की मूर्ती नीम की लकड़ी से बनी हुई है | इसलिए राठौड़ नीम के वृक्ष को पवित्र मानते हैं | राव बीका ने बीकानेर में इस माता का मंदिर बनवाया |

8. शीला माता
            शीला माता का प्रमुख मंदिर आमेर (जयपुर ) दुर्ग में स्थित हैं | इस माता के मंदिर का निर्माण आमेर के कच्छवाह शासक मानसिंह प्रथम द्वारा करवाया गया। मानसिंह यह मूर्ति बंगाल के राजा केदारनाथ को पराजित कर जस्सोर नामक स्थान से अष्टभुजी भगवती की मूर्ति लेकर आये थे। इसलिए यह कच्छवाह वंश की आराध्य देवी है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप मिर्जाराजा जयसिंह द्वारा करवाया गया। 
चैत्र आश्विन नवरात्रों में मेला भरा जाता है और नवरात्रों में मंदिर में ढाई प्याला शराब चढ़ती है और प्रसाद में चरणामृत के रूप में शराब दी जाती है। इनका उपनाम अन्नपूर्णा देवी है।

नोट : कुण्डा ग्राम को हाथी गांव के रूप में विकसित किया गया है।

9. घेवर माता 
            इस माता की प्रसिद्धि इस बात पर भी है की यह माता बिना पति के सती होने वाली देवी है | इसी माता के हाथों राज्समंध झील की नींव राखी गयी थी | इसलिए इनका मंदिर राजसमन्द झील के किनारे बना हुआ है | इस बात का उल्लेख राजसमन्द झील के किनारे लगी राज्प्रसस्ती से भी मिलता है |

10. कैला देवी/ कैला माता
            इनका मंदिर त्रिकूट पर्वत, करौली में है। प्रचलित कथाओं के अनुसार माता भगवान् श्री कृष्ण की बहन मानी जाती है इसीलिए यह माता यादव/जादौन वंश की कुल देवी है। माता अंजना माता के रूप में भी पूजी जाती है | माता का प्रमुख भगत बोहरा भगत था जिसकी छत्री माता के मंदिर के निकट ही बनी हुई है |
            मंदिर के सामने प्रांगण में गणेश जी व भैरव जी की मूर्तियां हैं जिन्हें प्राकृत बृज भाषा में 'लांगुरिया' कहते हैं। गूजरों में अधिक मानी जाने वाली इस देवी के मंदिर की प्रमुख विशेषता कनक दंडवत है। भक्तों द्वारा लांगूरिया भक्ति गीत व घुटक्कन नृत्य मेले का प्रमुख आकर्षण है जो माता के भक्तों द्वारा किया जाता है। माता का यह मेला चैत्र शुक्ल अष्टमी को भरा जाता जिसे लक्खी मेला भी कहा जाता है।
            करौली स्थित इनका दिव्य मंदिर का निर्माण नरेश गोपालसिंह ने करवाया |

11. शाकम्भरी माता
            शाकम्भरी माता का मुख्य मंदिर उदयपुर वाटी (झुँझुनु) में है। किन्तु माता का प्राचीन मंदिर सांभर झील (जयपुर) में हैं जिसे देवयानी तीर्थ भी कहा जाता है | खण्डेलवाल समाज व चौहानों की कुल देवी मानी जाती हैं। अकाल के समय शाक /सब्जियों को खिलाकर लोगों का पेट भरने के कारण शाक /सब्जियों की रक्षक देवी या सकराय माता भी कहा जाता है |

12. राणी सती माता
            इनका मंदिर झुंझुनू में है। इन्हें दादी जी के उपनाम से भी जाना जाता है। इनका वास्तविक नाम नारायणी बाई अग्रवाल है। इनके पति का नाम तनधनदास (हिसार के नवाब से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए) है। इनके परिवार में 11 सतियां हुई। यह अग्रवाल जाती की कुल देवी है | भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता था।

नोट : राज्य सरकार द्वारा इनके मेले पर प्रतिबन्ध लगाया गया |

13. नारायणी माता
            इनका मंदिर बरखा डूंगरी, राजगढ़ तहसील (अलवर) मे है। नाई समाज की कुल देवी मानी जाती हैं। मीणा समाज की अराध्य देवी मानी जाती है। इनका वास्तविक नाम कर्मेली बाई है | इनका मेला बैशाख शुक्ल ग्यारस (11) को भरा जाता है |

नोट : इनकी पूजा को लेकर नै व् मीणा जाती के बीच विवाद चल रहा है |

14. आई माता
            इनका जन्म गुजरात के अम्बापुर में हुआ | इनका वास्तविक नाम जीजीबाई था | 
सिरवी समाज की कुल देवी है। यह लोक देवता रामदेवजी की शिष्या थी | इनके द्वारा आई पंथ चलाया गया, जिसके अनुयायी 11 नियमों का पालन करते हैं | 
            इनका मुख्य मंदिर बिलाडा (जोधपुर) में है। इनके पुजारी सिरवि जाती के लोग होते हैं | इनके मंदिर थान/ दरगाह/बढेर कहलाते है। मान्यता है की इनके दीपक से केसर टपकती है |

15. आशापुरा माता
            इनके मंदिर नाडौल (पाली), पोकरण (जैसलमेर), मोदरा/महोदरा (जालौर) में स्थित है। किन्तु इनका मुख्य मंदिर भडोंच (गुजरात) में बना हुआ है | यह मंदिर चौहान शासक विग्रहराज-II ने बनवाया |यह माता नाडौल तथा जालौर के सोनगरा चैहानों की कुल देवी मानी जाती है।
            जालौर में इस माता को आशापुरा माता भी कहा जाता है | 
मोदरां मंदिर (जालौर से 40 KM दूर) में बड़ा पेट होने के कारण महोदरी माता / महिषासुर मर्दिनी / मोदरा माता कहा जाता है। बिस्सा जाती के लोग इस माता की पूजा करते हैं तथा अपनी कुलदेवी मानते हैं | इस जाति की महिलाएं अपने हाथों पर मेहंदी नहीं लगाती |

16. दधिमती माता 
            इसका मंदिर गोठ मांगलोद (नागौर) में है | यह माता दाधिची ब्राह्मणों की कुल देवी है | यह मंदिर गुर्जर प्रतिहार काल की महामारु शैली में निर्मित है | यहाँ पर अधर शिला पीठ है | यहाँ देवी के मुख की पूजा की जाती है | इसका मेला चैत्र नवरात्रों में भरा जाता है |

17. सच्चिया माता
            इनका मंदिर औंसिया (जोधपुर) में है। इनके मंदिर का निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासक उपलदेव ने करवाया था। यह औसवाल समाज की कुल देवी मानी जाती है। यह मंदिर महामारु शैली में निर्मित है।
            
औंसिया का प्राचीन नाम उपकेशपट्टनम था। इसे राजस्थान का भुवनेश्वर कहा जाता है। यह स्थान प्राचीन सूर्य मंदिर व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

18. ब्रह्माणी माता
            इस माता का मंदिर सोरसण (बांरा) में स्थित है। विश्व का एक मात्र मंदिर है जहां देवी की पीठ की पूजा व पीठ का ही श्रृंगार किया जाता है।

19. स्वांगिया / सांगियाजी / सुग्गा माता
            यह माता जैसलमेर की माता है। जैसलमेर को राज्य चिन्ह स्वांग देवी द्वारा दिया गया था। जैसलमेर के राजचिन्हों में सबसे ऊपर पालम चिड़िया (शगुन चिड़िया) देवी का प्रतीक है। यह माता भाटी वंश की कुल देवी है। इसमें स्वांग का अर्थ भाला होता  है। माता का मंदिर गजरूप सागर के किनारे स्थित है। यह आवड़ देवी का ही रूप मानी जाती है।
20. ज्वाला माता 
            इस माता का मंदिर जोबनेर (जयपुर ) में स्थित है | यह माता खंगारोत राजपूतों की कुलदेवी है |

21. जिलाणी माता 
            इनका मंदिर अलवर के बहरोड़ कस्बे की बावड़ी के समीप स्थित है | इस देवी ने अलवर क्षेत्र के हिन्दुओं को मुसलमान बनने से रोका था | इसे अलवर क्षेत्र की लोक देवी के रूप में मान्यता प्राप्त है | यहाँ प्रतिवर्ष 2 बार मेला लगता है |

22. चामुंडा माता 
            यह माता प्रतिहार वंश की इन्दा शाखा की कुल देवी है | इनकी प्राचीन मूर्ति जोधपुर के निकट चामुंडा गाँव में थी |
            राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग में चामुंडा माता का मंदिर बनवाया , जो की इनकी आराध्य देवी थी | 1857 में इस मंदिर पर बिजली गिरने के कारण यह क्षतिग्रस्त हो गया था | फिर मारवाड़ के राजा तख़्त सिंह ने इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया | भाद्रपद शुक्ल 13 को चामुंडा माता मंदिर का जीर्णोधार दिवस मनाया जाता है |
            1965 में भारत-पाक युद्ध के समय यह मंदिर चमत्कारी रहा | 2008 में भगदड़ मचने के कारण इसमें 250 लोगों की मौत हुई थी व इस घटना की जांच हेतु जसराज चौपडा सिमिति का गठन किया गया था |
            पृथ्वी राज चौहान III ने पुष्कर झील के किनारे चामुंडा माता का मंदिर बनवाया |

23. जमुवाय माता 
            इस माता का मंदिर जमुआ रामगढ़ (जयपुर) में स्थित है, इसका प्राचीन नाम मांच था | इसे ढूंढाड़ का पुष्कर कहा जाता है | इसको बुढवाय माता, अन्नपूर्णा माता, अम्बा माता जैसे उपनामों से भी पुकारा जाता है | इनका मेला चैत्र-आश्विन के नवरात्रों में भरा जाता है | नवरात्रों में प्रसाद के रूप में चावलों का भात व् लापसी चढ़ाई जाती है |
            इस मंदिर का निर्माण दुल्हेराय द्वारा करवाया गया जो कच्छवाह वंश का संस्थापक माना जाता है |
इस माता को 
कच्छवाह वंश की कुल देवी माना जाता है | इनके मंदिर में मदिरा पान व बलि नहीं दी जाती |

24. कैवाय माता 
            इसका मंदिर किनसरिया गाँव (परबतसर, नागौर) की सिणहडिया पहाड़ी पर स्थित है | यह दहिया या दाहिमा राजपूतों की कुलदेवी है | इनका प्राचीन मंदिर राजाचच्च ने बनवाया | मारवाड़ शासक अजित सिंह ने आधुनिक मंदिर का निर्माण करवाया |

25. बिरवडी माता
            इसका मंदिर चित्तौड़ दुर्ग में स्थित है जिसका निर्माण हम्मीर सिसोदिया ने करवाया था | यह माता सिसोदिया वंश की कुलदेवी है | इसको अन्नपूर्णा माता भी कहा जाता है | 1326 में माता के आशीर्वाद से ही हम्मीर चित्तौड़ पर अधिकार करता है | 

26. सुंधा माता 
            इसे चामुंडा माता भी कहा जाता है | इसे अधटेश्वरी माता आधा शरीर होने के कारण जैसे उपनाम से भी जानी जाती है | इस माता का मंदिर जसवंतपुरा (जालौर) के सुंधा पर्वत पर स्थित है| 
            2007 में सुंधा पर्वत पर राजस्थान का प्रथम रोप वे संचालित हुआ | यह माता देवल राजपूत व श्रीमाली ब्राह्मणों की कुल देवी है | 

नोट : भीनमाल जालौर -> श्रीमाली ब्राह्मणों की अधिकता के कारण प्राचीनकाल में श्रीमाल कहा जाता था| 

27. त्रिपुरा सुन्दरी माता 
            इसका उपनाम तुरताई माता है और इसका मंदिर बांसवाडा में स्थित है | यह पांचाल जाति की कुल देवी है | यह वसुंधरा राजे सिंधिया की भी कुल देवी है | इस मंदिर में देवी की 18 भुजाओं युक्त महिषासुर मर्दनी प्रतिमा है |

28. विरातरा माता 
            इनका मंदिर चोहटन (बाड़मेर) में स्थित है जो भोपों की कुल देवी है | इनका अन्य नाम वान्कल माता है |

29. सुगाली माता 
            इस माता को 1857 की क्रान्ति की देवी कहा जाता है | यह आउआ (पाली) के ठाकुर कुशल सिंह चाम्पावत की कुल देवी है | इसको 10 सिर व 54 हाथ वाली देवी के उपनाम से भी जाना जाता है | इसकी मूर्ती वर्तमान में राजपुताना म्यूजियम अजमेर में है जो की पहले वागड़ संग्रहालय में थी | 

30. बाण माता / बायण माता 
            यह माता गुहिल वंश की कुल देवी है | इसका मुख्य मंदिर नागदा (उदयपुर) में है जिसका निर्माण बप्पारावल ने करवाया था | इसका दूसरा मंदिर केलवाडा (उदयपुर) में है जिसका निर्माण महारावल लक्षमण सिंह द्वारा करवाया गया था |

31. तुलजा भवानी माता 
            इसका मंदिर चित्तौडगढ दुर्ग में है जिसका निर्माण दासी पुत्र बनवीर ने करवाया था | इसलिए यह बनवीर की कुलदेवी है | यह छत्रपति शिवाजी की भी कुल देवी है |

32. आवरी माता
            इसका मंदिर निकुम्भ (चितौड़) में है | यह मंदिर गंभीरी व बेडच नदियों के किनारे पर स्थित है |यह बच्चों की संरक्षिका माता कहलाती है |

33. अर्बुदा माता 
            इसका मंदिर माउन्ट आबू, सिरोही में है | इसे पहाड़ों की रानी व राजस्थान की वैष्णो देवी जैसे उपनामों से जाना जाता है |

34. लटियाल माता 
            इसका मंदिर फलौदी (जोधपुर) में स्थित है | इसका मंदिर खेजड़ी के वृक्ष के निचे है जिसके कारण इनका उपनाम "खेजड बेरी राय भवानी" पड़  गया | यह कल्लों की कुल देवी है |

35. क्षेमंकरी माता / खीवंल माता / शुभंकरी माता 
            यह माता शौलंकी राजपूतों की कुलदेवी है | इसका प्राचीनतम मंदिर भीनमाल (जालौर) में है | इस माता के अन्य मंदिर माउन्ट आबू (सिरोही) व फलौदी (जोधपुर) में है | 

36. अन्ता माता 
            यह माता ऊँटों की रक्षक देवी कहलाती है जो की अन्ता, बारां  जिले में स्थित है |

37. इडाणा माता 
            इस देवी द्वारा अग्नि स्नान किया जाता है जो उदयपुर में स्थित है |

38. बिजासण माता 
            इसका मंदिर इन्द्रगढ, बूंदी में है |

39. इंद्र माता 
            इसका मंदिर खुडद गाँव, नागौर में है | यह माता करणी माता के अवतार के रूप में पूजी जाती है | इस देवी की पुरुष वेश में ही पूजा होती है |

40. पथवारी माता 
            यह पथिक रक्षक देवी कहलाती है | इसे तीर्थ यात्रा की देवी भी कहा जाता है | इसका मंदिर गाँव के बाहर खेजड़ी के वृक्ष के नीचे होता है |

41. नकटी माता 
            इसका मंदिर जयपुर के जयभवानिपुरा गाँव में है |

42. छींक माता 
            इस माता का मंदिर जयपुर में है|

43. छींछ माता 
            इस माता का मंदिर बांसवाडा में है |

44. ज्वालामाता 
            इस माता का मंदिर जोबनेर (जयपुर) में स्थित है | यह माता खंगारोत राजपूतों की कुल देवी है |

45. ब्राह्मणी माता 
            इनका मंदिर सोरसन (बारां) में है | इस माता की पीठ की पूजा व पीठ का ही श्रृंगार होता है |

46. चौथ माता 
            इसका मंदिर चौथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर) में स्थित है | इसका मेला कार्तिक कृष्ण चौथ को भरा जाता है | यह माता कंजर जाती की कुल देवी है | 

47. मादाणा माता 
            इस माता का अम्न्दिर कोटा में स्थित है | यह माता हाडा चौहानों की कुल देवी है | इस माता की कृपा से तांत्रिक पीड़ितों का उपचार होता है | 


उपरोक्त विषय में उल्लेख करते समय शब्दों में यदि कोई त्रुटी रह जाए तो कृपया अवगत करायें ताकि समयानुसार इसमें सुधार किया जा सके |


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