February 28, 2023

राजस्थान के प्रतीक चिन्ह

            यूँ तो राजस्थान अपने आप में एक विविध कौशल से भरा पूरा राज्य है| इसकी अनेकों विशेषताएं हैं| इसकी जितनी तारीफ़ की जाए उतनी ही कम है| जिस तरह भारत देश का राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु इत्यादि बातों का विशेषत: वर्णन होता है ठीक उसी प्रकार राजस्थान भी इन चर्चाओं से हटा नहीं है| तो आएये जाने इसके बारे में विशेष बातें| 


            जिस तरह राजस्थान अपने आप में विशेष है उसी प्रकार इसका दिवस भी विशेष ही है | राजस्थान दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है | 30 मार्च 1949 वृहत् राजस्थान नामक संघ के निर्माण के समय से 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाने लगा |

1.राजस्थान का राज्य पक्षी - गोडावन

            गोडावन को 21 मई 1981 को राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया था| गोडावन का वैज्ञानिक नाम कोरियोटिस नाइग्री सेप्स है| गोडावन को अनेक उपनामों से भी जाना जाता है जैसे हिंदी में सोहन चिड़िया या हुकना या गुधनमेर, सामान्य भाषा में मालमोरड़ी, अंग्रेजी भाषा में ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड नाम से प्रसिद्ध है| यह बहुत ही शर्मीले स्वभाव का पक्षी है जो एकान्तप्रिय स्थानों में रहना पसंद करता है| यह एक बड़ी चिड़िया है जो कुछ कुछ युवा शुतुरमुर्ग जैसी लगती है| यह मूलतः अफ़्रीकी पक्षी है जो आकार में बहुत बड़ा और भारी होता है| अत: यह वृक्षों पर नहीं बैठता है इसलिए जल के निकट घास का घौसला बनाकर रहता है | यह मुलतः अफ्रीका का पक्षी है। इसका ऊपरी भाग का रंग नीला होता है व इसकी ऊँचाई 4 फुट होती है।


            गोडावन के कृत्रिम प्रजनन हेतु जोधपुर जन्तुआलय प्रसिद्ध है| गोडावन का घर/शरण स्थली सेवण घास को कहते है| गोडावण का प्रजनन काल अक्टूबर-नवम्बर का महिना माना जाता है।गोडावन का प्रिय भोजन तारामीरा फसल है जो एक तिलहन फसल है| गोडावन सर्वाधिक मात्रा मे राष्ट्रीय मरू उधान (जैसलमेर), सोंकलिया (अजमेर) तथा सोरसन (बारां) मे पाया जाता है| 


2. राजस्थान का राज्य पशु - चिंकारा 

            चिंकारा को 21 मई 1981 को राज्य पशु का दर्जा दिया गया था| चिंकारा का वैज्ञानिक नाम गजेला-गजेला है| यह “एन्टीलोप” प्रजाती का एक मुख्य जीव है। चिंकारा को छोटा हिरण, एण्टीलोप व भारतीय कुरंग आदि नामों से जाना जाता है| चिंकारा- राजस्थान का राज्य पशु है | चिकारों के लिए नाहरगढ़ अभ्यारण्य जयपुर प्रसिद्ध है। राजस्थान का राज्य पशु ‘चिंकारा’ सर्वाधिक ‘मरू भाग’ में पाया जाता है ।


            चिंकारा नाम से एक तत् वाध्य यंत्र है जो कि अलवर व भरतपुर जिलो मे ग्रासिया जाति के द्वारा बजाया जाता है| 

नोट: चिकोरा- पश्चिमी राजस्थान मे हिड़ की लकड़ी से बनाये जाने वाले दीपको को कहते है और चितौरा- राजस्थान मे चित्रकारो को कहते है|


3. राजस्थान का वन्य जीव पशु - ऊँट

            ऊँट को 30 मार्च 2014 को वन्य जीव पशु का दर्जा दिया गया था व 19 सितम्बर 2014 को अधिसूचना जारी कर रेगिस्तान के जहाज ऊँट को पशुधन श्रेणी में राजकीय पशु (Domestic State Animal) का दर्जा दिया है | ऊँट का वैज्ञानिक नाम कैमेलस है| राजस्थान मे सर्वाधिक ऊँट बीकानेर मे पाये जाते है| भारत मे प्रथम ऊँटनी दुध डेयरी बीकानेर मे खोली गयी थी| भारत मे सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय मोहमद बिन कासिम को दिया जाता है| राजस्थान मे सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को दिया जाता है व राजस्थान मे ऊँट के बिमार होने पर पाबूजी कि पूजा कि जाती है या फड़ बांची जाती है| 


            ऊँटो का देवता पाबूजी को कहते है| राजस्थान मे ऊँट पालने के लिए रेबारी/राईका जाति प्रसिद्ध है| ऊँट कि खाल पर चित्र बनाने (मिनाकारी) कि कला को ऊस्ता कला कहते है व यह कला बीकानेर की प्रसिद्ध है तथा इस कला के लिए बीकानेर का हिसामुद्दीन ऊस्ता का परिवार प्रसिद्ध है| राजस्थान मे ऊँट की खाल से बने जल पात्र को कोपी कहते है| ऊँट का श्रृंगार गीत गोरबंद है| ऊँट के नाक मे डाली जाने वाली सजावटी वस्तु को गिरबाण कहते है| भारत मे सर्वप्रथम ऊँट सैना बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने बनाई थी जिसे गंगा रिसाला के नाम से जाना गया था |


4. राजस्थान का राज्य पुष्प - रोहिड़ा के फूल

            रोहिड़ा के फूल को 31 अक्टूबर 1983 को राज्य पुष्प का दर्जा दिया गया था | रोहिड़ा का वैज्ञानिक नाम टिकोमेला ऐंडूलेटा है | रोहिड़ा को विभिन्न उपनामों से पुकारा जाता है जिनमे मुख्यतः - 1. मरू शोभा, 2. रेगिस्तान के सागवान | फर्नीचर व औषधि निर्माण के लिए प्रसिद्ध इस पेड़ का फैलाव राज्य के अधिकतर भागों में होने के कारण ही इसे रेगिस्तान का सागवान कहते हैं | जोधपुर जिले मे रोहिड़ा के फूल को मारवाड़ टीक के नाम से जाना जाता है | यह मुख्यतः राज्य के पश्चिमी भाग में पाया जाता है | 


5. राजस्थान का राजकीय वृक्ष - खेजड़ी 

            खेजड़ी के वृक्ष को 31 अक्टूबर 1983, में राज्य वृक्ष घोषित किया गया था | खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस सिनेरेरिया है | खेजड़ी को "रेजिस्तान का कल्पवृक्ष""राजस्थान का गौरव" कहा जाता है | भारतीय धर्म ग्रंथों में में इसे "शमी" कहा जाता है | स्थानीय भाषा में इसको "जांटी" भी कहते हैं | इसकी पत्तियों के चारे को स्थानीय भाषा में "लूम" कहते हैं | इसकी छाल से दवा बनायी जाती है | इसकी फली से  सब्जी बनायी जाती है जिसे "सांगरी" कहते हैं |


6. राजस्थान का राज्य गीत - केसरिया बालम पधारो नी म्हारे देश 

            मांगी बाई उदयपुर कि प्रसिद्ध मांड गायीका थी जिन्होने राजस्थान मे सर्वप्रथम केसरिया बालम गीत गाया था | मांड राग कि उत्पती जैसलमेर से हुई है | अल्ला जिल्ला बाई राजस्थान कि सुप्रसिद्ध मांड गायीका है जिसे राजस्थान कि मरू कोकिला के नाम से जाना जाता है | अल्ला जिल्ला बाई मुल रूप से बीकानेर की है।

 


7. राजस्थान का राज्य खेल - बास्केट बॉल

            बास्केट बाॅल को सन् 1948 मे राज्य खेल का दर्जा दिया गया था | बास्केट बाॅल मे कुल 7 खिलाड़ी होते है (जिनमे से 5 खिलाड़ी ही खेलते है) | राजस्थान बास्केट बाॅल संघ का का मुख्यालय अजमेर मे है | अर्जुन पुरुस्कार खेल जगत का सबसे बड़ा पुरुस्कार है | अर्जुन पुरुस्कार पाने वाला प्रथम राजस्थानी खिलाड़ी खुशीराम है जिसे सन् 1967 मे बास्केट बाॅल के लिए यह पुरुस्कार मिला था | 


8. राजस्थान का राज्य/लोक नृत्य - घूमर 

            राजस्थान मे घूमर नृत्य सर्वाधिक गणगौर के अवसर पर किया जाता है | घूमर नृत्य जयपुर व मारवाड़ (जोधपुर) क्षेत्र का प्रसिद्ध है | राजस्थान मे अविवाहित महिलाओ के द्वारा किया जाने वाला घूमर नृत्य झूमर कहलाता है तथा जब झूमर को विवाहित महिलाएँ करती है तब इसे घूमर कहते है | घूमर नृत्य मे माँ सरस्वती कि पूजा/अराधना कि जाती है |

घूमर के उपनाम- 1. लोक नृत्यो कि आत्मा 2. राज्य कि आत्मा 3. राजस्थान का सिरमौर



9. राजस्थान का शास्त्रीय नृत्य - कत्थक नृत्य

            राजस्थान का शास्त्रीय नृत्य कत्थक हैं, कत्थक का उद्गम जयपुर व लखनऊ को माना जाता हैं, जयपुर को कत्थक का आदिमघराना व पुराना घराना के नाम से जाना जाता हैं।

            कत्थक के प्रवर्तक भानू जी महाराज थे जो जयपुर घराने के प्रसिद्ध कलाकार थे, वर्तमान में इसके प्रवर्तक बिरजू जी महाराज हैं। कत्थक नृत्य मांगलिक अवसर पर किया जाता हैं इसलिए इसे मंगलमुखी नृत्य के नाम से भी जाना जाता है। कत्थकली दक्षिणी भारत का नृत्य हैं।



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