राजस्थान का इतिहास जैसे शौर्य गाथा से भरा हुआ है वैसे ही स्थापत्य कला में भी कभी भी विषय कम नहीं आंका गया है | पुराने समय में राजस्थान में राजा अपने आवास, रण या निवास के लिए दुर्ग का निर्माण करवाते थे। ये दुर्ग बहुत ही भव्य एवं इस प्रकार बनाए जाते थे की यहाँ से अपने शत्रुओं पर नजर भी रखी जा सके और अपने क्षेत्र की रक्षा आसानी से की जा सके। इन दुर्गों की स्थापत्य कला आज भी देखते ही बनती है।
राजस्थान के राजपूतों के नगरों और प्रासदों का निर्माण पहाडि़यों में हुआ, क्योकि वहां शुत्रओं के विरूद्ध प्राकृतिक सुरक्षा के साधन थे। यहां के राजा शुक्रनीति के अनुसार अपने दुर्गों का निर्माण करवाते थे | शुक्रनीति में दुर्गो की नौ श्रेणियों का वर्णन किया गया।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने राज्य सरकार द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने हेतु भेजे गए सात किलों में छह किलों को विश्व विरासत स्थलों में शामिल किया गया है | इनमें चित्तौड़गढ़ दुर्ग, रणथम्भौर दुर्ग (सवाई माधोपुर), कुम्भलगढ़ दुर्ग(राजसमंद), जैसलमेर दुर्ग, आमेर दुर्ग-आमेर (जयपुर), गागरोण दुर्ग(झालावाड़) शामिल हैं|
राजस्थान के दुर्गों के प्रकार (Rajasthan Types of Forts/Kile/Durg)
- एरण दूर्ग – खाई, कांटों तथा कठौर पत्थरों से युक्त जहां पहुंचना कठिन हो जैसे – रणथम्भौर दुर्ग।
- पारिख दूर्ग – जिसके चारों ओर खाई हो जैसे -लोहगढ़/भरतपुर दुर्ग।
- पारिध दूर्ग – ईट, पत्थरों से निर्मित मजबूत परकोटा -युक्त जैसे -चित्तौड़गढ दुर्ग
- वन/ओरण दूर्ग – चारों ओर वन से ढ़का हुआ जैसे- सिवाणा दुर्ग।
- जल/ओदक – पानी से घिरा हुआ जैसे – गागरोन दुर्ग
- गिरी दूर्ग – एकांत में पहाड़ी पर हो तथा जल संचय प्रबंध हो जैसे-कुम्भलगढ़ दुर्ग
- सैन्य दूर्ग – जिसकी व्यूह रचना चतूर वीरों के होने से अभेद्य हो यह दुर्ग माना जाता हैं
- सहाय दूर्ग – सदा साथ देने वाले बंधुजन जिसमें हो।
राजस्थान के महत्वपूर्ण दुर्ग (Rajasthan Famous Forts/Kile/Durg)
- यह चित्रकुट पहाड़ी पर बना, राजस्थान का प्राचीनतम गिरी दुर्ग है।
- इस दुर्ग का निर्माण चित्रांगन मौर्य ने 8 वीं सदी में करवाया।
- इस दुर्ग को राजस्थान का गौरव, राजस्थान के दक्षिण पूर्व का प्रवेशद्वार तथा दुर्गों का सिरमौर कहा जाता हैं।
- इस किले के बारे में कहा जाता है कि “गढ तो चित्तौड़गढ बाकी सब गढैया”।
- चित्तौडग़ढ़ दुर्ग क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग है।
- प्रथम साका - सन् 1303 ई. में मेवाड़ के महाराणा रावल रतनसिंह चित्तौड़ का प्रथम साका हुआ। इसमें महाराणा रावल रतनसिंह की पत्नी पद्मिनी के नेतृत्व में राजपूत स्त्रियों ने 'जौहर' किया व महाराणा रावल रतनसिंह के नेतृत्व में राजपूतों (सेनानायक गोरा व बादल सहित) ने 'केसरिया' किया| चित्तौडगढ़ को आक्रान्त करने वाला आक्रान्ता अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया। चित्तौडगढ़ के प्रथम साके/ युद्ध का आंखों देखी अलाउद्दीन का दरबारी कवि और लेखक अमीर ने अपनी कृति "तारीख -ए-अलाई" में प्रस्तुत किया।
- द्वितीय साका - 1534-35 ई. में शासक विक्रमादित्य कर्मावती अथार्थ कर्णावती विक्रमादित्य की माता इस समय गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तब कर्मावती ने हुमायु से सहायता हेतु राखी भेजी पर हुमायूं सहायतार्थ नहीं आ सके | युद्ध के उपरान्त महाराणी कर्णावती ने जौहर किया।
- तृतीय साका - सन् 1567- 68 में उदय सिंह चित्तौड़ का शासन जयमल फत्ता को सौंपकर स्वयं उदयपुर गए | तब अकबर के आक्रमण से जयमल राठौड़ और पता सिसोदिया की किले की रक्षा करते हुए वीरगति होने पर राजपूत स्त्रियों ने जौहर किया |
- बीठली पहाड़ी पर बना होने के कारण इस दुर्ग को गढ़बीठली के नाम से जाना जाता है।
- यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है। यह दुर्ग पानी के झालरों के लिए प्रसिद्ध है
- इस दुर्ग का निर्माण अजमेर नगर के संस्थापक चैहान नरेश अजयराज/अजयपाल ने करवाया जो 2865 फीट ऊंची पहाड़ी पर निर्मित है।
- 17वीं सदी में शाहजहाँ के एक सेनापति बीठलदास द्वारा इस किले की मरम्मत करवाई गयी |
- मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज (राणा सांगा के भाई) पृथ्वी राज (उड़णा पृथ्वी राज) ने अपनी तीरांगना पत्नी ताराबाई के नाम पर इस दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा।
- रूठी रानी (राव मालदेव की पत्नी) आजीवन इसी दुर्ग में रही। रूठी रानी का वास्तविक नाम उमादे भटियाणी था।
- तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण विशप हैबर ने इसे “राजस्थान का जिब्राल्टर ” अथवा “पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर” कहा है।
- इतिहासकार हरबिलास शारदा ने “अखबार-उल-अखयार” को उद्घृत करते हुए लिखा है, कि तारागढ़ कदाचित भारत का प्रथम गिरी दुर्ग है।
- तारागढ़ के भीतर सबसे ऊँचे भाग पर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरान साहेंब (तारागढ़ के प्रथम गवर्नर मीर सैयद हुसैन खिंगसवार) की दरगाह स्थित है।
- इस दुर्ग का निर्माण देवसिंह हाड़ा/बरसिंह हाड़ा ने 1354 ई. में करवाया जो कि घने जंगलों की पहाड़ी पर स्थित है।
- तारे जैसी आकृति के कारण इस दुर्ग का नाम तारागढ़ पड़ा। इसे बूंदी का किला भी कहते हैं |
- यह दुर्ग “गर्भ गुंजन तोप” के लिए प्रसिद्ध है।
- भीम बुर्ज और रानी जी की बावड़ी (राव अनिरूद्ध सिंह) द्वारा इस दुर्ग मे स्थित हैं
- रंग विलास (चित्रशाला) इस दुर्ग में स्थित हैं। रंग विलास चित्रशाला का निर्माण उम्मेद सिंह हाड़ा ने किया।
- इतिहासकार किप्ल्रिन के अनुसार इस किले का निर्माण भूत-प्रेत व आत्माओं द्वारा किया गया। तारागढ दुर्ग (बूंदी) भित्ति चित्रण की दृष्टि से समृद्ध किया जाता है। इसे तिलस्मी किला भी कहा जाता है|
- सवाई माधोपुर जिले में स्थित यह दुर्ग अरावली की घिरा हुआ एरण दुर्ग है।
- विशाल पर्वत पर स्थित होते हुए भी दूर से देखने पर यह दुर्ग दिखाई नहीं देता है जबकि इसके ऊपर से शत्रु को आसानी से देखा जा सकता है।
- इस दुर्ग का प्रवेश द्वार नौलखा दरवाजा कहलाता है|
- इस दुर्ग का प्रारंभिक नाम रंत:पुर (रण की घाटी में स्थित नगर) था| "रण" उस पहाड़ी का नाम है जो इस दुर्ग से कुछ नीचे स्थित है तथा "थंभ" उस पहाड़ी का नाम है जिस पर यह दुर्ग स्थित है इसी वजह से इस दुर्ग का नाम रणथम्भोर पडा|
- किन्तु "हम्मीर रासो" के अनुसार इस दुर्ग का प्रारंभिक नाम "रणस्तम्भपुर" था|
- यह दुर्ग 18वीं सदी में जगत/जयंत द्वारा निर्मित दुर्ग है।
नोट: कुछ पुस्तकों में 994 ई. में रणथम्बन देव द्वारा निर्मित है| - 1301 ई. में यहाँ राणा हम्मीर तथा अलाउद्दीन खिलजी के बीच युद्ध हुआ था | राणा हम्मीर के बारे में एक दोहा प्रचलित है
"सिंघगमन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै इक बार |
तिरिया, तेल, हम्मीर हठ चढ़े न दुजी बार ||" - यह किला सुरक्षात्मक दृष्टि से अद्वितीय स्थान रखता है|
- अबुल फजल ने इस दुर्ग के लिए लिखा है कि ”रणथम्भौर दुर्ग पहाड़ी प्रदेश के बीच में स्थित है इसलिए लोग कहते हैं कि अन्य दुर्ग नंगे है जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।”
- राठौड़ों के शौर्य के साक्षी मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव राव जोधा द्वारा मई, 1459 में रखी गई।
- मेहरानगढ़ दुर्ग 400 मीटर ऊँची चिडि़या-टूक पहाडी पर बना है इसलिए इसे चिड़ियाटून्क भी कहा जाता है।
- मोर जैसी आकृति के कारण यह किला म्यूरघ्वजगढ़ कहलाता है। इसे गढ़चिंतामणि व जोधपुर का किला नाम से भी जाना जाता है |
- दुर्ग के लिए प्रसिद्ध पंक्ति – ”जबरों गढ़ जोधाणा रो”
- ब्रिटिश इतिहासकार किप्लिन ने इस दुर्ग के लिए कहा है कि – इस दुर्ग का निर्माण देवताओ,फरिश्तों, तथा परियों के माध्यम से हुआ है।
- विदेशी आक्रान्ताओं से देश की उत्तरी पश्चिमी सीमा की रक्षा करने के कारण यहाँ के शासकों को उत्तर भड़ किवाड़(उत्तरी सीमा का प्रहरी) के विरुद्ध से विभूषित किया जाता था|
- सूर्य की रौशनी में स्वर्णिम आभा बिखेरने के कारण यह सोनार किला कहलाता है|
- यह दुर्ग धान्व (मरूस्थल) व गिरी श्रेणी का दुर्ग है। यह दुर्ग चारों ओर से रेट के ऊँचे टीलों से घिरा हुआ है | उदाहरणार्थ जैसलमेर, बीकानेर व नागौर के दुर्ग |
- यह दुर्ग 250 फीट ऊँची तिखूणी पहाड़ी/ त्रिकुट पहाड़ी/ गोहरान पहाड़ी पर बना है व इसकी आकृति त्रिभुजाकार होने से इसे त्रिकूट्गढ़ कहा जाता है।
- दुर्ग के अन्य नाम – गोहरानगढ़ (पहाड़ी का नाम गोरहरा होने के कारण), जैसाणागढ़ (राजस्थानी लोक काव्य में)
- स्थापना -राव जैसल भाटी के द्वारा 1155 ई. (संवत 1212 से 1219 तक सात वर्षों) में हुआ।
- दुर्ग निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ है।
- पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण स्वर्णगिरि कहलाती है।
- इस किले में 99 बुर्ज है।
- यह दुर्ग राजस्थान में चित्तौड़गढ के पश्चात् सबसे बडा फोर्ट है।
- जैसलमेर दुर्ग की सबसे प्रमुख विशेषता इसमें ग्रन्थों का एक दुर्लभ भण्डार है जो जिनभद्र कहलाता है। सन् 2005 में इस दुर्ग को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल किया गया।
- ऑस्कर विजेता ”सत्यजीतरे” द्वारा इस दुर्ग फिल्म फिल्माई गई।
- अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा है कि केवल पत्थर की टांगे ही यहां पहुंचा सकती है।
- पहला साका – दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलज्जी व भाटी शासक मूलराज के मध्य युद्ध हुआ।
- द्वितीय साका – फिरोज शाह तुगलक के आक्रमण रावल दूदा व त्रिलोक सिंह के नेतृत्व मे वीरगति प्राप्त की।
- तीसरा साका – जैसलमेर का तीसरा साका जैसलमेर का अर्द्ध साका राव लूणसर में 1550ई. में हुआ।
- आक्रमणकर्ता कन्द शासक अमीर अली था।
गढ़ दिल्ली, गढ़ आगरा, अधगढ़ बीकानेर।
भलो चिणायों भाटियां, गढ ते जैसलमेर।
- यह दुर्ग स्थल श्रेणी का है।
- मुगल सम्राट अकबर द्वारा 1570 में निर्मित है।
- इस दुर्ग को ”अकबर का दौलतखाना” के रूप में जाना जाता है। अंग्रेज शासकों ने इसे मैग्जीन बना दिया।
- पूर्णतः मुस्लिम स्थापत्य कला पर आधारित है।
- अकबर ने हल्दीघाटी के युद्ध की रणनीति यहीं बनाई थी।
- सर टाॅमस ने सन् 1616 ई. में जहांगीर को अपना परिचय पत्र इसी दुर्ग में प्रस्तुत किया।
- सन 1908 में इसे राजपूताना संग्रहालय का नाम दिया गया। अंग्रेजों से भारत को आजादी के बाद से इसका नाम राजकीय संग्रहालय रखा गया। वर्तमान में इस किले का नाम अजमेर का किला और संग्रहालय कर दिया है|
- यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- इसका निर्माण 1150 ई. में दुल्हराय कच्छवाह ने करवाया। राजा मानसिंह-I ने वर्ष 1592 में इसका निर्माण आरंभ किया था।
- जयपुर से पहले कछवाहा राजपूत राजवंश की राजधानी आमेर ही थी।
- प्रमुख मंदिर :- शीला माता का मंदिर, सुहाग मंदिर, जगत सिरोमणि मंदिर
- प्रमुख महल :- शीश महल, दीवान-ए-खाश, दीवान-ए-आम
- दीवान-ए-आम का निर्माण मिर्जा राजा जय सिंह द्वारा किया गया।
- यह दुर्ग चिल्ह का टिला नामक पहाड़ी पर बना हुआ है।
- इस दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जययसिंह ने करवाया। लेकिन महलों का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया।
- इस दुर्ग में तोप ढ़ालने का कारखाना स्थित है।
- सवाई जयसिंह निर्मित जयबाण तोप पहाडि़यों पर खडी सबसे बड़ी तोप मानी जाती है।
- आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरागांधी ने खजाने की प्राप्ति के लिए किले की खुदाई करवाई।
- विजयगढ़ी भवन (अंत: दुर्ग) कच्छवाह शासकों की शान है।
- आमेर के किले से जयगढ़ के किले तक की यह सुरंग इस उद्देश्य से बनायी गयी थी कि युद्ध के समय में राज परिवार के लोग आसानी से आमेर के किले से जयगढ़ के किले में पहुँच सकें, जो कि आमेर के किले की तुलना में अधिक दुर्जेय है।
- इस दुर्ग का निर्माण 1734 में सवाई जयसिंह नें किया।
- किले के भीतर विद्यमान सुदर्शन कृष्ण मंदिर दुर्ग का पूर्व नाम सूदर्शनगढ़ है।
- नाहरसिंह भोमिया के नाम पर इस दुर्ग का नहारगढ़ रखा गया।
- राव माधों सिंह-II ने अपनी नौ प्रेयसियों के लिए एक किले का निर्माण नाहरगढ़ दुर्ग में करवाया। इसमें एक जैसे 9 महल बने हुए हैं | इस दुर्ग के पास जैविक उद्यान स्थित है।
- झालावाड से 5 km दूर इस दुर्ग का निर्माण 7-8वीं सदी में परमार वंश की डोड शाखा के शासक बीजलदेव ने करवाया।
- डोडा राजपूतों के अधिकार के कारण यह दुर्ग डोडगढ/ धूलरगढ़ नामों से जाना गया।
- महमूद खिलजी-I ने इसका नाम "मुस्तफाबाद" रखा |
- जालिमसिंह झाला ने विशाल परकोटे का निर्माण करवाया जो उन्ही के नाम पर जालिमकोट कहलाता है |
- “चौहान कुल कल्पद्रुम” के अनुसार खींची राजवंश का संस्थापक देवन सिंह उर्फ धारू ने अपने बहनोई बीजलदेव डोड को मारकर धूलरगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा उसका नाम गागरोण रखा। यह खींची चौहानों की राजधानी था |
- यह दुर्ग बिना किसी नीव के मुकंदरा पहाड़ी की सीधी चट्टानों पर खड़ा अनूठा किला है।
- गागरोण दुर्ग कालीसिंध व आहु नदियों के संगम (सामेलणी स्थल) पर बना जल श्रेणी का दुर्ग है।
- विद्वानों के अनुसार इसे पृथ्वीराज ने अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ “वेलिक्रिसन रूकमणी री” गागरोण में रहकर लिखा।
- अकबर ने गागरोण दुर्ग बीकानेर के राजा कल्याणमल पुत्र पृथ्वीराज को जागीर में दे दिया जो एक भक्त कवि और वीर योद्धा था।
- 21 जून 2013 को यूनेस्को ने इसको विश्व विरासत स्थलों में शामिल किया गया है | इस किले की स्थिति ऐसी है की की 2-4 km दूर से तो पता ही नहीं चलता की यहाँ कोई किला भी है |
- प्रथम साका – सन् 1423 ई. में अचलदास खींची (भोज का पुत्र) तथा मांडू के सुलतान अलपंखा गौरी (होंशगशाह) के मध्य भीष्ण युद्ध हुआ। जीत के बाद दुर्ग का भार शहजाते जगनी खां को सौपा गया। गागरोज के प्रथम साके का विवरण शिवदास गाढण द्वारा लिखित पुस्तक ‘ अचलदास खींची री वचनिका’ में मिलता है।
- दूसरा साका – सन् 1444 ई. में वाल्हणसी खीची व महमूद खिलजी के मध्य युद्ध हुआ। पाल्हणसी खींची को भीलो ने मार दिया (जब वह दुग् में पलायन कर रहा था) कुम्भा द्वारा भेजे गए धीरा (घीरजदेव) ने नेतृत्व में केसरिया हुआ और ललनाओं ने जौहर किया। महमूद खिलजी ने विजय के उपरांत दुर्ग का नाम बदल कर मुस्तफाबाद रखा।
- अरावली की तेरह चोटियों से घिरा, जरगा पहाडी पर (1148 मी.) ऊंचाई पर निर्मित गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने वि. संवत्1505 ई. में अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की स्मृति में बनवाया।
- इस दुर्ग का निर्माण कुम्भा के प्रमुख शिल्पी मण्डन की देखरेख में हुआ।
- इस किले की ऊंचाई के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि ”यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।”
- कर्नल टाॅड ने इस दुर्ग की तुलना (सुदृढ़ प्राचीर, बुर्जों, कंगूरों के कारण) “एस्टुकन” से की है।
- इस दुर्ग के चारों और 36 कि.मी. लम्बी दीवार बनी हुई है। दीवार की चैड़ाई इतनी है कि चार घुडसवार एक साथ अन्दर जा सकते है। इस लिए इसे ‘भारत की महान दीवार’ भी कहा जाता है।
- कुम्भलगढ दुर्ग के भीतर उपरी भाग में एक लघु दुर्ग भी स्थित है, जिसे सीढ़ी चढ़ाई के कारण कटारगढ़ कहते है, जो महाराणा कुम्भा का निवास स्थान रहा है। इसी दुर्ग को मेवाड़ की आंख कहते है और इसी में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। उदा ने यहीं मामादेव के कुंड के निकट कुम्भा की हत्या की थी |
- दुर्ग के अन्य नाम – कुम्भलमेर कुम्भलमेरू,कुंभपुर, कमलमीर, मच्छेद्र और माहोर।
- इस दुर्ग में ‘झाली रानी का मालिका’ स्थित है। इसमें झालिबाब बावड़ी और मामादेव का कुंड स्थित है|
- यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- इस दुर्ग का निर्माण विजयपाल सिंह यादव ने करवाया।
- अन्य नाम-शोणितपुर, बाणपुर, श्रीपुर एवं श्रीपथ है।
- अपनी दुर्भेद्यता के कारण बादशाह दुर्ग व विजय मंदिर गढ भी कहलाता है।
- इस दुर्ग में समुद्रगुप्त द्वारा खडा किया गया एक विजय स्तम्भ (वरिक विष्णुवर्धन विजय स्तम्भ) भी है जो राजस्थान का पहला विजय स्तम्भ है |
- यह दुर्ग गिरी तथा वन दोनों श्रेणी का दुर्ग है।
- कुमट झाड़ी की अधिकता के कारण इसे कुमट दुर्ग भी कहते है।
- जालौर से 30 km दूर बाड़मेर की सीमा पर स्थित सिवाना में इस दुर्ग का निर्माण राजा राजभोज के पुत्र श्री वीरनारायण पवांर ने विक्रम संवत 1011 में छप्पन की पहाडि़यों में करवाया जो अपनी विशालता के कारण प्रसिद्ध है।
- यह दुर्ग अपने दुर्भेध स्वरुप के कारण संकटकाल में मारवाड़ के राजाओं की शरणस्थली रहा|
- पहला साका – सन् 1308 ई. में शीतलदेव चैहान के समय आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण सांका हुआ।
- दूसरा साका – वीर कल्ला राठौड़ के समय अकबर से सहायता प्राप्त मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण के कारण साका हुआ। यह साका सन 1565 ई. में हुआ।
- परमार शासकों द्वारा सुकडी नदी के किनारे निर्मित हैं।
- यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- यह दुर्ग सोन पहाडी पर स्थित दुर्ग है।
- इसे सुवर्णगिरी, सोनगढ़ व कनकाचल भी कहा जाता है |
- इस दुर्ग में संत मलिकशाह पीर की दरगाह में भरने वाला ऊर्ष जो धार्मिक एकता एवं हिन्दू मुस्लिम समन्वय का प्रतीक है।
सन् 1311 ई. में कान्हड देव चैहान के समय अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया। इस आक्रमण में कान्हडदेव चैहान व उसका पुत्र वीरदेव वीरगति को प्राप्त हुुए तथा वीरांगनाओं ने जौहर कर लिया। इस साके की जानकारी पद्मनाभ द्वारा रचित कान्हडदेव में मिलती है।
- चम्बल नदी के किनारे यह एक उन्नत पहाड़ी के शिखर भू-भाग पर स्थित है।
- यह वन प्रदेश का पहाड़ी दुर्ग है।
- बयाना के महाराजा विजयपाल के एक पुत्र मदनपाल (मण्डपाल) ने मंडरायल को आबाद किया और वहां एक किले का निर्माण सम्वत 1184 के लगभग करवाया था जो आज भी खंडहर स्थित में मौजूद है।
- इस दुर्ग को ”ग्वालियर दुर्ग की कुंजी” कहा जाता है।
- मंडरायल दुर्ग मर्दान शाह की दरगाह के लिए प्रसिद्ध है।
- बामणी व चम्बल नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण यह दुर्ग जल श्रेणी का दुर्ग है।
- भैंसरोडगढ़ दुर्ग को “राजस्थान का वेल्लोर” कहते है।
- इस दुर्ग का निर्माता भैसाशाह व रोडावारण को माना जाता है।
- इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया।
- यह दुर्ग जल श्रेणी का दुर्ग है।
- मांडलगढ़ दुर्ग बनास, बेडच व मेनाल नदियों के संगम पर स्थित है।
- यह दुर्ग सिद्ध योगियों का प्रसिद्ध केन्द्र रहा है।
- यह दुर्ग एक प्रकार से मेवाड़ का प्रवेश द्वार रहा है।
- चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण के समय अकबर ने यह किला जीता था।
- विश्वप्रसिद्ध हल्दीघाटी युद्ध से पहले मुगल सेना ने इसी दुर्ग में पड़ाव डाला था। मेवाड़ के महाराणा राजसिंह जी ने पुनः इस दुर्ग पर अधिकार स्थापित किया। बाद में मेवाड़ के मंत्री अगरचंद जी ने यहां 2 जलस्रोत भी बनवाये।
- घग्धर नदी के मुहाने पर बसे इस, प्राचीन दुर्ग को ”उत्तरी सीमा का प्रहरी” कहा जाता है।
- इस दुर्ग का निर्माण श्रीकृष्ण की 90वीं पीढ़ी में जन्मे जैसलमेर के भाटी राजा के पुत्र भूपत ने अपने पिता की स्मृति में सन् 295 ई. में करवाया था।
- भटनेर दुर्ग धान्वन श्रेणी का दुर्ग है जो वर्तमान में भग्न व जर्जर अवस्था में है।
- तैमूर लंग ने इस दुर्ग के लिए कहा कि ”उसने इतना व सुरक्षित किला पूरे हिन्तुस्तान में कहीं नही देखा।” तैमूरलग की आत्मकथा ”तुजुक-ए-तैमूरी“ के नाम से है।
- इस दुर्ग में शेर खां की मनार स्थित है।
- महमूद गजनवी ने विक्रम संवत् 1058 (1001 ई.) में भटनेर पर अधिकार कर लिया था।
- 13 वीं शताब्दी के मध्य में गुलाम वंश के सुल्तान बलवन के शासनकाल में उसका चचेरा भाई शेर खां यहां का हाकिम था।
- 1398 ई. में भटनेर को प्रसिद्ध लुटेरे तैमूरलंग के अधीन विभीविका झेलनी पड़ी।
- बीकानेर के चौथे शासक राव जैतसिंह ने 1527 ई. में आक्रमण कर भटनेर पर पहली बार राठौडों का आधिपत्य स्थापित हुआ। उसने राव कांधल के पोत्र खेतसी को दुर्गाध्यक्ष नियुक्त किया।
- हुमायू के भाई कामरान ने भटनेर पर आक्रमण किया।
- सन् 1805 ई. में महाराजा सूरतसिंह द्वारा मंगलवार को जाब्ता खां भट्टी से भटनेर दुर्ग हस्तगत कर लिया। भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रखा गया।
- इस दुर्ग का निर्माण सन् 1733 ई. में राजा सूरजमल ने करवाया था।
- मिट्टी से निर्मित यह दुर्ग अपनी विशिष्ट स्थापत्य शैली एवं अजेयता (लार्ड लेक भी इसे नहीं जीत पाए) के लिए प्रसिद्ध है।
- किले के चारों ओर 100 फीट चौड़ी और 60 फीट गहरी सुजान गंगा नहर बनाई गई जिसमे पानी लाकर भर दिया जाता था। यह दुर्ग के बाहर चारों ओर मिटटी से बनी ऊँची दीवारें हैं |
- यह दुर्ग पारिख श्रेणी का दुर्ग है।
- मोती महल, जवाहर बुर्ज व फतेह बुर्ज (अंग्रेजों पर विजय की प्रतीक है।)
- सन् 1805 ई. में अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक ने इस दुर्ग को बारूद से उडाना चाहा लेकिन असफल रहा।
- इस दुर्ग में लगा अष्टधातू का दरवाजा महाराजा जवाहर सिंह 1765 ई. में ऐतिहासिक लाल किले से उतार लाए थे।
- धान्व श्रेणी के इस दुर्ग का निर्माण 1739 ई. में ठाकुर कुशाल सिंह ने करवाया।
- महाराजा शिवसिंह के समय अपनी आजादी और अस्मिता की रक्षा के लिए इस दुर्ग में बारूद खत्म होने पर यहां से चांदी के गोले दागे गए।
- यह किला 9 बुर्जों में विभक्त है|
- यह दुर्ग धान्व श्रेणी का दुर्ग हैं जिसका पुराना नाम चिंतामणि व इसे जमीन का जेवर भी कहा जाता था। इसे बीकानेर का किला भी कहते हैं |
- लाल पत्थरों से बने 1078 गज की परिधि में फैले इस भव्य किले का निर्माण बीकानेर के प्रतापी शासक रायसिंह ने करवाया। वस्तुतः बीकानेर के पुराने गढ़ (बीका की टेकरी) की नींव राव बीका जी ने 1485 ई. में रखी |
- इस दुर्ग को अधगढ़ किला कहते हैं।
- इस दुर्ग में जैइता मुनि द्वारा रचित रायसिंह प्रशस्ति स्थित है।
- सूरजपोल की एक विशेष बात यह है कि इसके दोनों तरफ 1567 ई. के चित्तौड़ के साके में वीरगति पाने वाले दो इतिहास प्रसिद्ध वीरों जयमल मेडतियां और उनके बहनोई आमेर के रावत पता सिसोदिया की गजारूढ मूर्तियां स्थापित है।
- नागौर दुर्ग के उपनाम नागदुर्ग, नागाणा व अहिच्छत्रपुर है।
- इस दुर्ग का निर्माण चैहान वंश के शासक सोमेश्वर ने किया।
- अमर सिंह राठौड़ की वीर गाथाएं इस दुर्ग से जुडी है।
- नागौर दुर्ग को एक्सीलेंस अवार्ड मिला है।
- दूसरी शताब्दी में नागवंशियों ने नागौर का किला बनवाया उनका पुनः निर्माण मोहम्मद बाहलीम जो गज़निवेट्स के गवर्नर उन्होंने करवाया जिनकी ऊंची दीवारों और बड़े परिसर के लिए प्रसिद्ध है।
- किले के बारे में कहा जाता है कि इस किले को अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य को उपहार में दिया था।
- परमार वंश के शासकों द्वारा 900 ई. के आसपास निर्मित किया गया।
- इस दुर्ग को आबु का किला भी कहते हैं। प्राचीन शिलालेखों और साहित्यिक ग्रंथों में आबू पर्वत को ‘अर्बदगिरि अथवा ‘अर्बुदाचल’ कहा को गया है |
- सन् 1452 ई. में महाराणा कुंभा ने इस प्राचीन दुर्ग के भग्नावशेषों पर एक नए दुर्ग का निर्माण करवाया
- इस पर्वत पर अचलेश्वर महादेव’ का मंदिर है इसलिए इस दुर्ग को अचलगढ़ कहते हैं
- यह किला धौलपुर से पांच किलोमीटर की दूरी पर चम्बल नदी के किनारे खारों के बीच स्थित है।
- इस दुर्ग का निर्माण कुशाण वंश के शासन काल में करवाया था। इस किले का निर्माण धौलपुर नरेश मालदेव ने 1532 ई. के आसपास करवाया था।
- शेरशाह सूरी ने इस दुर्ग पर आक्रमण किया और इसका पुनर्निर्माण करवाकर इसका नाम शेरगढ़ रखा।
- यह किला “दक्खिन का द्वार गढ” नाम से प्रसिद्ध है।
- महाराजा कीरतसिंह द्वारा निर्मित “हुनहुंकार तोप” इसी दुर्ग में स्थित है।
- हाडौती क्षेत्र का यह दुर्ग कोशवर्धन दुर्ग के नाम से भी प्रसिद्ध है।
- यह दुर्ग परवन नदी के किनारे स्थित है।
- इस दुर्ग का निर्माण जोधपुर के राजा मालदेव ने 1540 ई. में करवाया और शेरशाह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया | तभी से इसका नाम शेरगढ़ पड़ गया |
- इस दुर्ग के मुख्य द्वार पर अष्ट धातु की एक बेशकीमती तोप स्थित है |
- इस किले का निर्माण ठाकुर कर्णसिंह ने करवाया।
- चौमूँ की स्थापना 1595 ई. मे हुई थो जो कि जयपुर से 133 वर्ष पूर्व बसा था |
- इस किले के उपनाम- चैमूहांगढ़, धाराधारगढ़ तथा रधुनाथगढ।
- इस दुर्ग की स्थापना सवाई राजा जय सिंह-I ने की थी।
- राज्य में अकाल पड़ने पर जय सिंह जी ने इस किले का निर्माण कार्य शुरु करवाया, जिससे इलाके के लोगों को काम तथा मेहनताना मिलता रहे।
- इस किले में औरंगजेब ने अपने भाई दाराशिकोह को कैद करके रखा था।
29. बाला दुर्ग (अलवर)
- ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस किले को हसन खां मेवाती ने 1550 ई. में बनवाया था |
- यह गिरी दुर्ग 'आँख वाला किला' (प्राचीन में गोले बरसाने हेतु बने छेदों के कारण) भी कहलाता है |
- 244 साल पहले राव राजा प्रताप सिंह ने बिना युद्ध लडे किले पर कब्जा किया और अलवर बसाया | तब से किले पर कभी युद्ध नहीं लड़ा गया | इसीलिए इसे बला यानी कुंवारा किला नाम मिला |
- एक बार मुग़ल बादशाह बाबर यहाँ एक रात के लिए ठहरे थे |
राजस्थान के अन्य दुर्ग (Rajasthan Other Forts/Kile/Durg)
- कोटडा का किला – बाडमेर
- खण्डार दुर्ग - सवाई माधोपुर
- शारदा तोप इस दुर्ग में ही स्थित है। - माधोराजपुरा का किला – जयपुर
- कंकोड/कनकपुरा का किला – टोंक
- शाहबाद दुर्ग – बांरा
- नवलवान तोप इस दुर्ग में स्थित है। - बनेडा दुर्ग – भीलवाडा
- बसंतगढ़ किला – सिरोही
- एक ब्रह्माजी का मंदिर भी है।
- वर्ष 628 ईस्वी में यहां वर्मलाट का शासन था। उसी दौरान यहां बावडिय़ों का निर्माण भी हुआ।
- यहां एक प्राचीन सूर्य मंदिर है। - तिमनगढ़ किला – करौली
- बसंती नामक किले का निर्माण राणा कुम्भा ने करवाया था |
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