March 9, 2023

राजस्थान की जलवायु (ऋतुएं) - Part 1 (ग्रीष्म, वर्षा व शीतकाल ऋतु)

            जैसा कि आप सभी जानते हैं कि राजस्थान पूरे भारत मे एक अनूठा जिला है। जिस तरह क्षेत्रफल में सबसे बड़े राज्य का स्थान प्राप्त कर न.1 पर है ठीक उसी प्रकार इसकी जलवायु (Jalvaayu) भी अपने आप मे एक अलग स्थान रखता है। यह कर्क रेखा के समीप होने के साथ साथ अरावली जैसे पर्वत होने के कारण अपने आप को अलग स्थान पर पाता है। इसका अरावली पर्वत भी उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की तरफ फैला है|


    
        उत्तर-पश्चिमी भारत में जलवायु (Climate) आम तौर पर शुष्क या अर्ध-शुष्क है और वर्ष भर में काफी गर्म तापमान रहता है, साथ ही गर्मी और सर्दियों दोनों में चरम तापमान(Temperature) होते हैं। राजस्थान का अक्षांशीय विस्तार 23°3 उत्तरी अक्षांश से 30°12 उत्तरी अक्षांश तक है तथा देशांतरीय विस्तार 60°30 पूर्वी देशांतर से 78°19 पूर्वी देशांतर तक है। इन सब बिन्दुओं की चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं |

यह भी देखें : राजस्थान की स्थिति एवं विस्तार, विश्व में जलवायु स्थिति

जलवायु : यह स्थान विशेष पर वायुमंडलीय दशाओं का दीर्घकाल तक एक एक सामान बने रहने वाला स्वरुप है |

मौसम : यह वायुमंडलीय दशाओं का अल्पकालीन स्वरुप है |

ऋतुएं : सूर्य के स्थान परिवर्तन के कारण जब वायुमंडलीय दशाओं में परिवर्तन आता है तो उसे ऋतुएं कहा जाता है | विश्व के सन्दर्भ में अगर बात करें तो यह चार प्रकार कि दिखती है - ग्रीष्म, शीत, बसंत, शरद | भारत व राजस्थान में यह ग्रीष्म वर्षा व शीत ऋतू दिखती है |

सम जलवायु = ना ज्यादा सर्दी ना ज्यादा गर्मी



महत्वपूर्ण बिंदु

  • कर्क रेखा राजस्थान के दक्षिण अर्थात बांसवाड़ा जिले के मध्य (कुशलगढ़) से होकर गुजरती है इसलिए हर साल 15 जून को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले पर सूर्य सीधा चमकता है। 
  • राज्य का सबसे गर्म जिला चुरु जबकि राज्य का सबसे गर्म स्थल जोधपुर जिले में स्थित फलोदी है। 
  • इसी प्रकार राज्य में गर्मियों में सबसे ठंडा स्थल सिरोही जिले में स्थित माउंट आबू है इसलिए माउंट आबू को राजस्थान का शिमला कहा जाता है। 
  • पृथ्वी के धरातल से क्षोभ मंडल में जैसे-जैसे ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं तापमान कम होता है तथा प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर तापमान 1 डिग्री सेल्सियस कम हो जाता है। 
  • राजस्थान का गर्मियों में सर्वाधिक दैनिक तापांतर वाला जिला जैसलमेर है जबकि राज्य में गर्मियों में सबसे ज्यादा धूल भरी आंधियां श्रीगंगानगर जिले में चलती है राज्य में विशेषकर पश्चिमी रेगिस्तान में चलने वाली गर्म हवाओं को लू कहा जाता है।
  • राज्य का सबसे आर्द्र जिला झालावाड़ है जबकि राज्य का सबसे आर्द्र स्थल सिरोही जिले में स्थित माउंट आबू है जबकि सबसे शुष्क जिला जैसलमेर है।

    राजस्थान में जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

    1. अक्षांशिय स्थिति : अक्षांशिय दृष्टिकोण से राजस्थान उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है |साथ ही यहाँ उपोष्ण उच्च दाब की स्थिति भी मिलटी है |
    2. समुद्र से दूरी : तटीय भागों में सम जलवायु दिखाई देती है इसलिए तापान्तर न्यूनतम होता हिया | किन्तु राजस्थान समुद्र से 300 km से भी अधिक दूर है | ऐसे में यहाँ तापान्तर की अधिकता देखी जाती है विशेषकर पश्चिमी राजस्थान में | सागर से दूर जाने पर वर्षा की मात्र भी कम हो जाती है |
    3. समुद्रतल से ऊँचाई : ऊँचाई पर जाने के साथ तापमान में कमी आती है (1000 मीटर ऊँचाई पर 6.5 सेल्सियस या 165 मीटर ऊँचाई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान )| जिसकी वजह से पर्वतीय भागों में शीतोष्ण जलवायु मिलती है किन्तु राजस्थान में पर्वतीय भाग 1% है |
    4. अरावली पर्वत की स्थिति व दिशा : अरावली अरब सागर की शाखा के समानांतर स्थिति है जिसकी वजह से यह शाखा सर्वाधिक जलवाष्प लाने पर भी वर्षा नहीं कर पाती | अरावली बंगाल की खाड़ी की शाखा के अवरोध के रूप में स्थित है जिसकी वजह से पूर्वी राजस्थान में मानसूनी वर्षा होती है जबकि पश्चिमी राजस्थान शुष्क रह जता है |
    5. वनस्पति का आवरण : यह जलवायु को सम (moderate/repeat) कर देता है |

    तापमान (बढेगा) = वायुदाब (घटेगा)
    [वायुदाब की चाल High Pressure to Low Pressure]

    राजस्थान में ऋतुएं

    ग्रीष्मकाल ऋतु (Ritu) (मध्य मार्च से 15 जून)


    तापमान 

                ग्रीष्म ऋतू में तापमान में अधिकता देखि जाती है ऐसा सूर्य के लम्बवत होने के कारण होता है | यहाँ का औसत तापमान 30 से 36 डिग्री सेल्सियस देखा जा सकता है | पश्चिमी राजस्थान में यह रेट की वजह से 48 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुँच जाता है |


    • 42 डिग्री सेल्सियस : यह रेखा राजस्थान के उत्तर पश्चिम भाग में हनुमानगढ़ एवं गंगानगर जिले से गुजरती है |
    • 40 डिग्री सेल्सियस : यह रेखा राजस्थान के पश्चिमी एवं पूर्वी भाग से गुजरती है | क्षेत्र : झुंझुनू, चुरू, नागौर, पाली, जालौर एवं बाड़मेर के पूर्वी भाग से | इसी के साथ यह रेखा अलवर, अजमेर, जयपुर, टोंक, बूंदी, कोटा होते हुए झालावाड से गुजरती है |
    • 36 डिग्री सेल्सियस : यह रेखा राजस्थान के दक्षिण के वनस्पति आच्छादित क्षेत्र से गुजरती है जिसमें डूंगरपुर, उदयपुर, चितौडगढ़, राजसमन्द, पाली एवं सिरोही जिले आते हैं |
    • 32 डिग्री सेल्सियस : यह रेखा राजस्थान के उदयपुर व सिरोही के पर्वतीय क्षेत्रों से गुजरती है |

    वायुदाब 

                तापमान की अधिकता के कारण वायुदाब कम दिखाई देता है | इस समय सम्पूर्ण भारत का न्यूनतम वायुदाब राजस्थान में दिखाई देता है | इस समय समदाब रेखाओं की स्थिति निम्न प्रकार से दिखाई देती है:


    • 997 mb : यह जैसलमेर, बीकानेर से गुजरती है |
    • 998 mb : यह राजस्थान के अर्धशुष्क भागों से गुजरती है - बाड़मेर, जालौर, जोधपुर, नागौर, चुरू, हनुमानगढ़, जिले से |
    • 999 mb : यह जालौर, पाली, राजसमन्द, भीलवाडा, टोंक एवं सवाई माधोपुर जिले से गुजरती है |
    • 1000 mb : यह उदयपुर, प्रतापगढ़, कोटा, झालावाड, सिरोही जिले से गुजरती है |.

    आद्रता एवं पवनें 

                ग्रीष्म ऋतू में अत्यधिक तापमान की वजह से सतह उष्ण हो जाती है एवं वायु का संवहन स्वरुप दिखाई देता है | यही स्वरुप स्थानीय रूप में लू कहलाता है (अभिवहन) |

                नोट :  ग्रीष्म ऋतू में मानसून पूर्व से होने वाली वर्षा -
                        (1) आम्र वर्षा - केरल व कर्नाटक 
                        (2) चैरी ब्लोसम (फूलों की वर्षा) - केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक (कोफ़ी उत्पादन क्षेत्र)
                        (3) काल बैशाखी - पश्चिम बंगाल में 
                        (4) बारदोली छीड़ा - असम

                राजस्थान में ग्रीष्म ऋतू के अंतर्गत अत्यधिक तापमान एवं संवहन के कारण आंधियां व भम्भूलिये (Viril) भी विकसित है - सर्वाधिक (27 दिन गंगानगर), न्यूनतम (3 दिन झालावाड) |


    वर्षा ऋतु (Varsha Ritu) (15 जून से सितम्बर)


                इस समय ग्रीष्म ऋतू के तापमान एवं वायुदाब की दशाएं ही दिखाई देती हैं | जिसकी वजह से हिन्द महासागर की पवनें भारतीय भू भाग की और आकर्षित होती हैं | इन्हीं पवनों को मानसूनी पवनें कहा जाता है | जिससे जुड़े निम्नलिखित पहलू हैं - 

    (1) ग्रीष्म ऋतू के अत्यधिक तापमान का मुख्य कारण सूर्य का लम्बवत होना है | सूर्य जहां लम्बवत होकर निम्नदाब का क्षेत्र बनाता है उसे ITCZ भी कहा जाता है |

            ITCZ = Inter Tropical Convergence Zone (अंतर उष्णकटिबंध अभिसरण क्षेत्र)

    (2) भारतीय भू भाग पर बने ITCZ की ओर दक्षिण गोलार्ध की व्यापारिक पवने आकर्षित होती हैं | यही पवनें उतरी गोलार्ध में दक्षिण पश्चिम मानसून के रूप में केरल से प्रवेश करती हैं |

    (3) राजस्थान की दक्षिणी पश्चिमी मानसून की दोनों शाखाओं की उपस्थिति दिखाई देती है अर्थार्त (i) अरब सागर की शाखा (ii) बंगाल की खाड़ी की शाखा 

    (i) अरब सागर की शाखा 


    • यह शाखा सर्वप्रथम राजस्थान में प्रवेश करती है |
    • सामान्यत: यह झालावाड जिले से राज्य में आती है |
    • यह शाखा 15 जून को राजस्थान में पहूँचती है |
    • यह शाखा अरावली के समानांतर गमन करती है |
    • इस शाखा से राज्य के दक्षिण जिलों में ही वर्षा हो पाती है |
    • राजस्थान में सर्वाधिक नमी (जलवाष्प) इसी से आता है |
    (ii) बंगाल की खाड़ी की शाखा 


    • यह शाखा मेघालय, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, UP, दिल्ली के उपरान्त राजस्थान में प्रवेश करती है |
    • राज्य में इसका प्रवेश प्राय: धौलपुर जिले में होता है |
    • यह पूर्वी दिशा में आने के कारण पूर्वयी कहलाती है |
    • यह शाखा राजस्थान की कुल मानसूनी वर्षा का 90% प्रदान करती है |
    • इस शाखा के द्वारा ही पश्चिमी राजस्थान में बीकानेर (25 सेंटीमीटर) एवं जैसलमेर (5 सेंटीमीटर) वर्षा होती है |
    • यह शाखा प्राय: 15 जुलाई को राज्य में प्रवेश करती है |

    विविध तथ्य:


    • 50 सेंटीमीटर समवर्षा रेखा राजस्थान को दो बराबर भागों में बांटती है |
    • राजस्थान में मानसूनी पवनों की उपस्थिति 48 दिन आबू पर्वत, 40 दिन झालावाड व 38 दिन बांसवाडा में दिखाई देती है |
    • राज्य का सर्वाधिक आर्द्र स्थान आबू पर्वत है एवं आर्द्र जिला झालावाड है |
    • राजस्थान का सबसे शुष्क जिला जैसलमेरशुष्क स्थान फलौदी (जोधपुर) है |
    • राजस्थान में झालावाड, बरान, कोटा, चितौडगढ़, भीलवाडा, राजसमन्द, उदयपुर, डूंगरपुर एवं बाँसवाड़ा जिलों में दोनों शाखाओं में वर्षा होती है |
    • राजस्थान में सबसे शुष्क माह मई का होता है एवं सबसे आर्द्र महिना अगस्त का होता है |
    • राजस्थान में वायुमंडल की अस्थिरता सर्वाधिक अप्रैल माह में मिलती है जबकि वायुमंडल की स्थिरता सर्वाधिक अक्टूबर माह में दिखाई देती है |
    • राज्य में दक्षिण पूर्व से उत्तर पस्ग्चिम की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा घटती जाती है | प्राय: यह 100 सेंटीमीटर से 10 सेंटीमीटर के बीच दिखाई देती है |
    • राजस्थान में औसत वर्षा 57 सेंटीमीटर  होती है |


    शीतकाल ऋतु (Sheetkaal Ritu) (अक्टूबर से फरवरी)


    लौटता हुआ मानसून (अक्टूबर - नवम्बर)
    • सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह में जब सूर्य विषुवत रेखा पर उपस्थित होता है तो भारतीय भू भाग से मानसूनी पवनें पीछे की और हट जाती है | ऐसे में मानसून की विदाई होती है | इस समय मानसून का प्रत्यावर्तन काल भी कहलाता है | जो मुख्यतः अक्टूबर - नवम्बर माह में दिखाई देता है |
    • इस समय निम्नलिखित जलवायु विशेषताएं दिखाई देती है :
      (1) इस समय मानसून या वर्षा ऋतू की आर्द्रता वायुमंडल में रहती है साथ ही तापमान में भी अधिकता होती है | इसलिए यह उमस, क्वार, कार्तिक की उष्मा व अक्टूबर हीट का समय होता है |
      (2) मानसून के प्रत्यावर्तन काल में ही उत्तर पूर्व मानसून से कोरोमंडल तट पर वर्षा होती है
      (3) इसके समय अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का विकास होता है जैसे गुलाब, ताउते आदि | इनसे ही कई बार नमी आकर राजस्थान में वर्षा होती है |

    शीत ऋतू (दिसंबर - फरवरी)

    • इस समय सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में लम्बवत होता है जिसकी वजह से राजस्थान में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं | सूर्य की किरणों के प्रवर्तित होने के कारण ही तापमान में कमी आती है |
    • औसत तापमान = 10 से 20 डिग्री सेल्सियस रहता है |
    • परन्तु :
      (i) आबू पर्वत खंड पर ऊँचाई/उच्चावच के कारण तापमान में कमी दिखाई देती है एवं तापमान हिमांक के निचे चला जाता है |
      (ii) चूरू (फतेहपुर क्षेत्र में भी) तापमान हिमांक के निचे चला जाता है क्योंकि यहाँ -
           - बालू रेट की उपस्थिति/अधिकता
           - वनस्पति का अभाव
           - नदियों व नहरों का अभाव (जलवाष्प की कमी)
    • शीत ऋतू में समताप रेखाएं निम्न प्रकार से दिखाई देती है |


      (I) 6 डिग्री सेल्सियस - झुंझुनू, सीकर, नागौर, चुरू व बीकानेर
      (II) 8 डिग्री सेल्सियस - अरावली के साथ साथ, अलवर, जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, राजसमन्द, पाली, नागौर, जोधपुर, होते हुए जैसलमेर से गुजरती है |
      (III) 10 डिग्री सेल्सियस - बाड़मेर, जालौर, जोधपुर, सिरोही से गुजरती है | साथ ही पूर्वी राजस्थान में करौली, सवाई माधोपुर, बूंदी, कोटा, झालावाड एवं बारां जिले से गुजरती है |
    वायुदाब (Pressure) [Temperature (Low) = Pressure (High)]
    • शीत ऋतू में तापमान की कमी के कारण वायुदाब अधिक दिखाई देता है |
    • शीत ऋतू समदाब (Isobar) रेखाएं निम्न प्रकार से दिखाई देती हैं :
      (I) 1019 mb - यह राजस्थान के उत्तर पश्चिम में झुंझुनू, सीकर, चुरू, बीकानेर से गुजरती है |
      (II) 1018 mb - यह राजस्थान के मध्य में पूर्व पश्चिम से गुजरती है विशेषकर जैसलमेर, जोधपुर, नागौर, अजमेर, भीलवाडा, बूंदी, कोटा एवं बारां जिले से गुजरती है |
      (III) 1017 mb - यह राजस्थान के दक्षिण भाग विशेषकर उदयपुर, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ व झालावाड से गुजरती है |

    शीत ऋतू में पवनें एवं वर्षा (आर्द्रता)

    • शीत ऋतू में पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) के कारण वर्षा होती है |
    • इस शीतकालीन वर्षा को "मावठ" कहा जाता है जो रबी की फसल में सहायक होती है |
    • पश्चिमी विक्षोभ में 60 डिग्री अक्षांश पर चलने वाली Jet Stream का योगदान होता है, जो सूर्य के दक्षिणायन (दक्षिण गोलार्ध में) होने पर 60 डिग्री अक्षांश से 30 डिग्री अक्षांश पर आ जाती है |
    • यह Jet Stream हिमालय से टकराकर दो भागों में बंट जाती है |
    • इसी Jet Stream के द्वारा सतह पर निर्वात निर्मित किया जाता है जिसकी ओर पछुआ पवनें आकर्षित होती हैं एवं 25 से 50 सेंटीमीटर वर्षा करती है विशेषकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में | 


    राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण हेतु यहाँ क्लिक करें : Click Here


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