July 13, 2022

राजस्थान के प्रमुख मेले

 


            राजस्थान कला और संस्कृति से भरा हुआ प्रदेश है यहाँ हर माह में किसी न किसी प्रकार का आयोजन होता ही रहता है | आज जो हम जिक्र करने जा रहे हैं वह अपने आप में एक मत्वपूर्ण विषय है "राजस्थान के मेले" | राजस्थान राज्य के सभी जिलों में विभिन्न मेलों का आयोजन प्रति वर्ष होता है | यहां पर आयोजित होने वाले सभी मेले राजस्थान में नहीं बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध है।  राजस्थान का पशु मेला भी बहुत प्रसिद्ध मेला है। जिसे आप "प्रमुख पशु मेले" पर क्लिक कर के देख सकते हैं | तो आइए जाने राजस्थान के प्रमुख मेले (Rajasthan ke Pramukh Mele) :

कुछ तथ्य जो मेलों से जुड़े हुए हैं :

            राजस्थान में सर्वाधिक मेले भरे जाते हैं : डूंगरपुर
            राजस्थान में सर्वाधिक पशुमेले भरे जाते हैं : नागौर में

1. पुष्कर मेला - पुष्कर (अजमेर)
            यह राजस्थान का सबसे रंगीन मेला है , जो कार्तिक शुक्ल 11 से कार्तिक पूर्णिमा तक भरता है। मेरवाड़ा का सबसे बड़ा मेला है। इसका मुख्य आकर्षण "कालबेलिया नृत्य" है जिसकी प्रसिद्ध कलाकार गुलाबो है |
            यहाँ सर्वाधिक विदेशी पर्यटकों का आवागमन रहता है | इस मेले के साथ-2 प्रसिद्ध पशु मेले का भी आयोजन होता है जिसमें 
नागौरी गौवंश, बीकानेरी ऊंट तथा रैंडा नस्ल की गाय व गिर नस्ल का व्यापार होता है। 
            यहाँ पुष्कर सरोवर पर 52 घात हैं जहां कार्तिक पूर्णिमा को दीपदान किया जाता है | 
इस मेले को “तीर्थो का मामा” कहते है।

2. भर्तहरी का मेला - अलवर
            यह मेला भाद्रशुक्ल सप्तमी-अष्टमी को भरता हैं। इस मेले का आयोजन नाथ सम्प्रदाय के साधु भर्त्हरि की तपोभूमि पर होता हैं। भूर्त्हरि की तपोभूमि के कनफटे नाथों की तीर्थ स्थली कहते है। मत्स्य क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला है।
            यह सरिस्का अभ्यारण्य में भरा जाट है, जहां भर्तहरी का मंदिर  व गुफा है | यहाँ पर नाचना गणेश जी भी है जो काफी प्रसिद्ध है | इसे "कनफटे नाथों का कुम्भ" भी कहा जाता है |

3. बेणेश्वर धाम मेला - नवाटापरा (डूंगरपुर)
            यह मेला सोम, माही व जाखम नदियों के संगम पर भरता है। यह मेला माघ पूर्णिमा को भरता हैं। इस मेले को बागड़ का कुम्भ, बागड़ का पुष्कर, दक्षिणी राजस्थान का कुम्भ व आदिवासियों का कुम्भ भी कहते है। संत माव जी को बेणेश्वर धाम पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यहाँ पर खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है |

4. सीताबाड़ी का मेला - केलवाड़ा (बांरा)
            यह मेला ज्येष्ठ अमावस्या को भरता है। इस मेले को “सहरिया जनजाति का कुम्भ” कहते है। हाडौती अंचल का सबसे बडा मेला है।
नोट : राजस्थान में सहरिया जनजाति के लोग सर्वाधिक बारां जिले की शाहबाद व किशनगंज तहसील में रहते हैं |

5. घोटिया अम्बा माता का मेला - बांसवाडा
            यह मेला चैत्र अमावस्या को भरता है। इस मेले को “भीलों का कुम्भ” कहते है। महाभारत काल में पांडुवोंने 88000 ऋषिओं को भोजन कराया था | यहाँ प्रसिद्ध घोटेश्वर महादेव का मंदिर भी है |

6. मानगढ़ धान का मेला - बांसवाडा
            यह मेला आश्विन पूर्णिमा को भरता है। 1913 में मानगढ़ पहाड़ी पर गोविंद गिरी के नेतृत्व में सम्पसभा का सम्मलेन हुआ जिस पर मेवाड़ भील कौर बटालियन द्वारा अंधाधुन गोलियां चलायी गयी जिसमें 1500 से अधिक भील शहीद हुए | इस घटना को राजस्थान का जलियावाला बाग़ हत्याकांड कहा जाता है | इसीलिए यह मेला  गोविंद गिरी की स्मृति मे भरता है।
            2013 में मानगढ़ में भील शहीद स्मारक की स्थापना की गयी | प्रतिवर्ष यहाँ शहीदों की स्मृति में मेला भरा जाता है |

7. मुकाम मेला - मुकाम-तालवा (नोखा, बीकानेर)
            यह मेला वर्ष में दो बार भरा जाता है | बिश्नोई सम्प्रदाय का मुक्तिधाम तथा मथुरा कहा जाता है | जांगल प्रदेश का सबसे बड़ा मेला है | संत जाम्भोजी का समाधि स्थल है |

8. कोलायत मेला / कपिल मुनि का मेला - कोलायत झील (बीकानेर)
            यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। मुख्य आकर्षण “कोलायत झील पर दीपदान” है। यहाँ पर 52 घात हैं | कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रणेता थे। यह संत कपिल मुनि की तपो भूमि है | कोलायत तीर्थ को तीर्थों का गुरु कहा जाता है |

9. मंचकुण्ड तीर्थ मेला - धौलपुर
            यह मेला भाद्रपद शुक्ल 6 को भरता है। इस मेले को तीर्थो का भान्जा कहते है। यह मेला मचकुंड सरोवर में भरा जाता है |

10. सैपऊ महादेव मेला - सैपऊ (धौलपुर)
            यह मेला महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण 13,14 को भरा जाता है |

11. जौहर मेला - चित्तौड़गढ़
            यह मेला चैत्र शुक्ल 11 को भरा जाता है | यह रानी पद्मावती की स्मृति में भरा जाता है |
            1303 में रावल रतन सिंह के शासन काल में अल्लौद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया | रानी पद्मिनी सहीत 16000 महिलाओं ने अग्नि जोहर किया जो राजस्थान का सबसे बड़ा जौहर कहलाता है |

12. मातृकुण्डिया / माता कुण्डालिनी का मेला  - राश्मी (चित्तौडगढ)
            यह मेला बौशाख पूर्णिमा को भरता है। इस मेले को राजस्थान का हरिद्वार कहते है। यहाँ माता कुण्डालिनी का प्रसिद्ध मंदिर है |

13. मीरा महोत्सव - चित्तौड़गढ़
            यह मेला शरद पूर्णिमा / अश्विन पूर्णिमा को भरा जाता है | यह मेड़ता व चित्तौड़गढ़ का प्रसिद्ध मेला है |
            मेड़ता को मीरा नगरी भी कहा जाता है | यहाँ चार भुजा नाथ मंदिर में मीरा महोत्सव का आयोजन होता है |
नोट : राजस्थान का दूसरा चार भुजा नाथ मंदिर गढ़बोर (राजसमन्द) व मीरा मंदिर (चित्तौड़गढ़) में है |

14. लोहार्गल मेला - लोहार्गल (झुंझुनू)
            यह मेला चैत्र मॉस की सोमवती अमावस्या को भरा जाता है | यह तीर्थ महाभारत कालीन केंद्र है | यहाँ पर पांडवों का मोक्ष हुआ था | इसकी 24 कौसी परिक्रमा प्रसिद्ध है | यहाँ एक प्राचीनतम सूर्या मंदिर भी है |

15. खाट्टू श्याम जी मेला - खाट्टू गाँव (सीकर)
            यह मेला फाल्गुन शुक्ल 11,12 को भरा जाता है | इसे शीश का दानी व कलयुग का श्याम भी कहा जाता है | यहाँ बर्बरीक के मुख की पूजा की जाती है | यह एक लक्खी मेला है |

16. चुन्धी तीर्थ का मेला - जैसलमेर
            यह मेला भाद्रपद शुक्ल 4 को भरा जाता है | यह श्री गणेश जी से संबंधित मेला है। इस मंदिर में गणेश जी को शेर पर सवार दिखाया गया है।
नोट :  “हेरम्भ गणपति मंदिर” बीकानेर में है।

17. कपालेश्वर महादेव मेला - बाड़मेर 
            इस मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में होता है | इसे मारवाड़ का कुम्भ व राजस्थान का अर्धकुम्भ कहा जाता है |

18. परशुराम महादेव मेला - पाली
            यह मेला महाशिवरात्रि / फाल्गुन कृष्ण 13,14 को भरा जाता है | यहाँ चूने से स्वत: शिवलिंग का निर्माण होता है | इसे राजस्थान का अमरनाथ कहा जाता है |

19. गौर का मेला - सिरोही
            यह मेला वैशाख पूर्णिमा को भरता है। इस मेले को ‘ गरासिया जनजाति का कुम्भ’ कहते है। इसमें गरासिया जनजाति की युवतियां व युवक प्रेमविवाह करते हैं |

20. हल्दी घाटी मेला - राजसमन्द
            यह मेला 18 या 21 जून को भरा जाता है |

21. वीरपुरी मेला - मंडोर (जोधपुर)
            यह मेला श्रावण मॉस के अंतिम सोमवार को भरा जाता है |

22. नागपंचमी मेला - मंडोर (जोधपुर)
            यह मेला श्रावण कृष्ण पंचमी को भरता है। श्रावण कृष्ण पंचमी को नाग पंचमी भी कहते है।
नोट : मंडोर में ३३ करोड़ देवी देवताओं की साल या वीरों की साल हॉल ऑफ़ हीरोज प्रसिद्ध है | 33 करोड़ देवी देवताओं का मंदिर जूनागढ़ (बीकानेर) में हैं |

23. बेंतमार मेला - जोधपुर 
            यह मेला बैशाख कृष्ण 3 (धींगा गवर वाले दिन) भरा जाता है | इसे महिला उत्थान का प्रतीक माना जाता है |

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24. भूरिया बाबा/ गोतमेश्वर मेला - अरणोद (प्रतापगढ़)
            यह मेला वैशाख पूर्णिमा को भरता हैं। इस मेले को “मीणा जनजाति का कुम्भ” कहते है।

25. चौथ माता का मेला - चौथ का बरवाडा (सवाई माधोपुर)
            यह मेला माध कृष्ण चतुर्थी को भरता है। इस मेले को “कंजर जनजाति का कुम्भ” कहते है।

26. साहवा का मेला - चूरू
            यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। सिंख धर्म का सबसे बड़ा मेला है।

27. चन्द्रभागा मेला - झालरापाटन (झालावाड़)
            यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। चन्द्रभागा नदी पर बने शिवालय में पूजन होता हैं। इस मेले के साथ-साथ पशु मेला भी आयोजित होता है, जिसमें मुख्यतः मालवी नसल का व्यापार होता है।

28. रामदेव मेला - रामदेवरा (जैसलमेर)
            इस मेले का आयोजन रामदेवरा (रूणिचा) (पोकरण) में होता है। इस मेले में आकर्षण का प्रमुख केन्द्र तेरहताली नृत्य है जो कामड़ सम्प्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है।

29. बीजासणी माता का मेला - लालसोट (दौसा)
            यह मेला चैत्र पूर्णिमा को भरता है।

30. कजली तीज का मेला - बूंदी
            यह मेला भाद्र कृष्ण तृतीया को भरता है।

31. लोटियों का मेला - मण्डौर (जोधपुर)
            यह मेला श्रावण शुक्ल पंचमी को भरता है।

32. डोल मेला - बांरा
            यह मेला भाद्र शुक्ल एकादशी को भरता है। इस मेले को श्री जी का मेला भी कहते हैं ।

33. फूल डोल मेला - शाहपुरा (भीलवाडा)
            यह मेला चैत्र कृष्ण एकम् से चैत्र कृष्ण पंचमी तक भरता है।

34. अन्नकूट मेला - नाथद्वारा (राजसंमंद)
            यह मेला कार्तिक शुक्ल एकम को भरता है। अन्नकूट मेला गोवर्धन मेले के नाम से भी जाना जाता है।

35. भोजनथाली परिक्रमा मेला - कामा (भरतपुर)
            यह मेला भाद्र शुक्ल दूज को भरता है।

36. श्री महावीर जी का मेला - चान्दनपुर (करौली)
            यह मेला चैत्र शुक्ल त्रयोदशी से वैशाख कृष्ण दूज तक भरता है। यह जैन धर्म का सबसे बड़ा मेला है। मेले के दौरान जिनेन्द्ररथ यात्रा आकर्षण का मुख्य केन्द्र होती है।

37. ऋषभदेव जी का मेला - धूलेव (उदयपुर)
            मेला चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतलाष्टमी) को भरता है। ऋषभदेव जी को केसरिया जी, आदिनाथ जी, धूलेव जी, तथा काला जी आदि नामों से जाना जाता है।

38. चन्द्रप्रभू का मेला - तिजारा (अलवर)
            यह मेला फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को भरता हैं यह भी जैन धर्म का मेला है।

39. बाड़ा पद्य्पुरा का मेला - जयपुर
            यह भी जैन धर्म का मेला है।

40. रंगीन फव्वारों का मेला - डींग (भरतपुर)
            यह मेला फाल्गुन पूर्णिमा को भरता है।

41. डाडा पम्पा राम का मेला - विजयनगर (श्रीगंगानगर)
            यह मेला फाल्गुन माह मे भरता है।

42. बुढ़ाजोहड़ का मेला - डाबला,रायसिंह नगर (श्री गंगानगर)
            श्रावण अमावस्या को मुख्य मेला भरता है।

43. वृक्ष मेला - खेजड़ली (जोधपुर)
            यह मेला भाद्र शुक्ल दशमी को भरता है। भारत का एकमात्र वृक्ष मेला है।

44. डिग्गी कल्याण जी का मेला - टोंक
            कल्याण जी विष्णु जी के अवतार माने जाते है। कल्याण जी का मेला श्रावण अमावस्या व वैशाख में भरता है।

45. गलता तीर्थ का मेला - जयपुर
            यह मेला मार्गशीर्ष एकम् (कृष्ण पक्ष) को भरता है। रामानुज सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गलता (जयपुर) में स्थित है।

46. गणगौर मेला - जयपुर
            यह मेला चैत्र शुक्ल तृतीया को भरता है। जयपुर का गणगौर मेला प्रसिद्ध है। बिन ईसर की गवर, जैसलमेर की प्रसिद्ध है। जैसलमेर में गणगौर की सवारी चैत्र शुक्ल चतुर्थी को निकाली जाती है।

47. राणी सती का मेला - झुंझुनू
            यह मेला भाद्रपद अमावस्या का भरता था। इस मेले पर सती प्रथा निवारण अधिनियम -1987 के तहत् सन 1988 को रोक लगा दी गई।

48. त्रिनेत्र गणेश मेला - रणथम्भौर (सवाई माधोपुर)
            यह मेला भाद्र शुक्ल चतुर्थी को भरता है।

49. खेतला जी का मेला - पाली
            यह मेला चैत्र कृष्ण एकम् को भरता है।


            यदि उपरोक्त विषय के विवरण में कोई त्रुटी नजर आये तो हमें निचे कमेंट से अवगत जरूर करायें, ताकि भविष्य हेतु इसमें सुधार किया जा सके |


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