राजस्थान में क्रांतिकारी आंदोलनों को बढ़ावा देने के लिए प्रजामंडलों ने अहम् भूमिका निभाई है | प्रजामण्डल भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय रियासतों की जनता के संगठन हुआ करते थे। 1920 के दशक में प्रजामण्डलों की स्थापना तेजी से हुई। वास्तविकता को समझें तो प्रजामण्डल का अर्थ होता है 'जनता का समूह'।
भारतीय के अनुरूप पहलू
भारतीय रियासतों का शासन व्यवस्था ब्रिटिश नियंत्रण वाले भारतीय क्षेत्र से भिन्न थी तथा अनेक रियासतों के राजा प्रायः अंग्रेजों के मुहरे के समान व्यवहार करते थे। शुरुआती दौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देशी रियासतों में आन्दोलन के प्रति उदासीन रही तथा रियासतों को अपने अभियान से अलग रखा था। परन्तु जैसे-जैसे रियासतों की जनता में निकटवर्ती क्षेत्रों के कांग्रेस चालित अभियानों से जागरूकता बढ़ी, उनमें अपने कल्याण के लिए संगठित होने की प्रवृत्ति बलवती हुई, जिससे प्रजामंडल बने।
हरिपुरा अधिवेशन (1938) में कांग्रेस की नीति में परिवर्तन आया। रियासती जनता को भी अपने-अपने राज्य में संगठन निर्माण करने तथा अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करने की छूट दे दी गयी।
राजस्थान में ही किसलिए ?
1920 के दशक में ठिकानेदारों और जागीरदारों के अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे। इस कारण किसानों द्वारा विभिन्न आंदोलन चलाये जा रहे थे, साथ ही देश भर में गांधी जी के नेतृत्व में देश भर में स्वतंत्रता आन्दोलन भी चल रहा था और इन्ही सब आन्दोलनों के कारण ही जनता में साहस बढ़ा और उन्होंने मंडल बना कर अत्याचारों के विरूद्ध आन्दोलन शुरू कर दिए जो समयानुसार "प्रजामण्डल आंदोलन" कहलाये।
राजस्थान में प्रजामण्डलों की स्थापना के तीन मुख्य उद्देश्य थे :
1920 के दशक में ठिकानेदारों और जागीरदारों के अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे। इस कारण किसानों द्वारा विभिन्न आंदोलन चलाये जा रहे थे, साथ ही देश भर में गांधी जी के नेतृत्व में देश भर में स्वतंत्रता आन्दोलन भी चल रहा था और इन्ही सब आन्दोलनों के कारण ही जनता में साहस बढ़ा और उन्होंने मंडल बना कर अत्याचारों के विरूद्ध आन्दोलन शुरू कर दिए जो समयानुसार "प्रजामण्डल आंदोलन" कहलाये।
राजस्थान में प्रजामण्डलों की स्थापना के तीन मुख्य उद्देश्य थे :
1. उत्तरदायी शासन की मांग
2. संविधान का निर्माण
3. मूल अधिकारों की मांग
राजस्थान से सम्बंधित विशेष पहलु
- 1927 में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का गठन बम्बई में हुआ | जिसके अध्यक्ष दीवान रामचन्द्र राव थे व उपाध्यक्ष विजय सिंह पथिक थे |
- नोट : विजय सिंह पथिक का मूल नाम भूप सिंह था |
- राजपुताना मध्य भारत के सचिव रामनारायण चौधरी थे |
- 1928 में राजपुताना देशी राज्य लोक परिषद् का गठन हुआ | जिसका प्रथम अधिवेशन 1931 में पुष्कर (अजमेर) में किया गया जिसकी अध्यक्षता रामनारायण चौधरी ने की |
- 1938 में कोंग्रेस का हरिपुरा अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बॉस ने की थी | जिसमे मुख्य रूप से प्रान्त स्तर पर भी राजनैतिक संगठन जा सकते हैं और प्रजामंडलों को स्वीकृति जैसी बातों चर्चा की |
राजस्थान के प्रमुख प्रजामंडल
1. जयपुर प्रजामण्डल
यह राजस्थान का प्रथम प्रजामंडल था | इसमें सर्वप्रथम जागृति लाने वाले अर्जुन लाल सेठी थे | इस प्रजामंडल की स्थापना 1931 को हुई |
मूल उद्देश्य : समाज सुधार और खादी का प्रचार
- 1927 में "चरखा संघ" की स्थापना की गयी जिसके संस्थापक जमना लाल बजाज थे |
- 1931 में "जयपुर प्रजामण्डल" की स्थापना की गयी जिसके संस्थापक कर्पूरचन्द पाटनी व सहायक जमनालाल बजाज थे ।
- 1936 में जयपुर प्रजामण्डल का पुनगर्ठन हुआ | जिसके अध्यक्ष चिरंजीलाल मिश्र व उपाध्यक्ष जमना लाल बजाज को बनाया गया। इसके सचिव हीरालाल शास्त्री व संयुक्त सचिव कर्पूरचन्द पाटनी थे |
- 9 मई 1938 में जयपुर प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन हुआ जिसके अध्यक्ष जमना लाल बजाज को बनाया और कस्तूरबा गांधी ने भी इनका साथ दिया था। इसी के साथ शेखावाटी किसान सभा का भी जयपुर प्रजामण्डल में विलय हुआ |
- इसकी बाद में रियासती आदेश जारी हो गए और जयपुर प्रजामण्डल पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया |
- 1939 में जयपुर प्रजामण्डल का कार्यालय आगरा में स्थानांतरित कर लिया गया | इसी वर्ष जयपुर प्रजामण्डल का पंजीकरण किया जिसकी अध्यक्षता हीरालाल शास्त्री ने की | इसी दौरान हीरालाल शास्त्री ने "सपनो आयो" गीत की रचना की जो उन दिनों बहुत लोकप्रिय रहा |
नोट : 1930 में हीरालाल शास्त्री ने "प्रलय प्रतीक्षा नमो नम:" प्रत्यक्ष जीवन पुस्तक की रचना की | - 16 सितम्बर 1942 में एक जेन्टलमेट्स समझौता हुआ, जो जयपुर प्रजामण्डल के तत्कालीन अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री व रियासती प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल के मध्य हुआ। जिसमें यह तय किया गया की जयपुर प्रजामण्डल, भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग नहीं लेगा। इसी के विरोध में 1942 में ही आजाद मोर्चा का गठन कर लिया गया जिसका नेतृत्व बाबा हरिश्चन्द्र कर रहे थे | इसमें रामकरण जोशी, गुलाबचंद कासलीवाल, दौलतमंद भंडारी व हंस डी रॉय जैसे सदस्य भी शामिल थे |
नोट : मिर्जा इस्माइल आधुनिक जयपुर के निर्मात माने जाते हैं | - फिर जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर यह गठन 1945 को जयपुर प्रजामण्डल में विलय हो गया | इसी वर्ष सवाई मानसिंह-II द्वारा द्विसदनीय व्यवस्थापिका प्रतिनिधि सभा की स्थापना की गयी |
- 15 मई 1946 को एक मंत्रिमंडल का गठन किया गया जिसके सदस्य रामकरण जोशी, गुलाबचंद कासलीवाल, दौलतमंद भंडारी व हंस डी रॉय थे |
- जयपुर प्रजामण्डल में सत्याग्रह के दौरान महिलाओं का नेतृत्व दुर्गा देवी शर्मा ने किया |विशेषत: 5 अप्रैल 1931 को मोतीलाल दिवस व 12 मार्च 1939 को जयपुर दिवस मनाया गया |
2. जोधपुर प्रजामंडल
जोधपुर प्रजामंडल के संथापक जयनारायण व्यास के सहयोग से 1934 को इसकी स्थापना हुई |
- 1918 में "मारवाड़ हितकारिणी सभा" का गठन किया गया जिसके संस्थापक चांदमल सुराना थे | इसका पुनर्गठन 1923 में हुआ |
- 1920 में "मारवाड़ सेवा संघ" की स्थापना जयनारायण व्यास व चांदमल सुराना द्वारा की गयी | इसी दौरान एक मापतौल आन्दोलन की भी शुरुआत हुई |
- 1929 में "मारवाड़ लोक राज्य परिषद्" का गठन किया गया, जिसके संस्थापक जयनारायण व्यास थे | इसका प्रथा अधिवेशन 1931 में पुष्कर (अजमेर) में हुआ | इसकी अध्यक्षता में चान्द्करण शारदा सुराना, कस्तूरबा गांधी व काका कालेकर भी शामिल थे |
- फिर 10 मई 1931 को जयनारायण व्यास ने मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना की |
- 1932 को सवाधीनता दिवस के दिन छग्गनराज जौपासनी वाला ने जोधपुर में भारतीय झंडा फहराया |
- 1934 में जयनारायण व्यास ने "मारवाड़ प्रजामण्डल" की स्थापना जोधपुर में कर दी एवं भंवरलाल सर्राफ को मारवाड़ प्रजामण्डल का अध्यक्ष बनाया गया। इसमें अभाय्लाल जैन व अचलेश्वर प्रसाद ने भी साथ दिया था |
नोट : जयनारायण व्यास को शेर-ए-राजस्थान कहा जाता है | - 10 मार्च 1936 में जवाहरलाल नेहरू जोधपुर आये | इसी दिन शिक्षा दिवस जोधपुर 21 जून को व कृष्णा दिवस बम्बई को मनाने की घोषणा की गयी |
- 1936 में "अखिल भारतीय देसी राजस्थान लोक परिषद्" का अधिवेशन कराची में हुआ जिसके महामंत्री जयनारायण व्यास थे | जोधपुर के महाराजा गंगासिंह ने जोधपुर के प्रधानमन्त्री डोनाल्ड फिल्ड को पात्र लिखकर जयनारायण व्यास पर जोधपुर में प्रवेश करने पर प[रतिबंध लगाया |
- 1937 में मारवाड़ प्रजामण्डल को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।
- इसके बाद 1938 में रणछोड़ दास गट्टानी की अध्यक्षता में मारवाड़ लोक परिषद् का गठन हुआ। जिसके बाद में 1940 में जयनारायण व्यास ने अध्यक्षता की |
- मारवाड़ लोक परिषद् में महिमा देवी किंकर के नेतृत्व में महिलाओं ने भाग लिया।
- 1942 में मारवाड़ लोक परिषद् ने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया। इसी दौरान जयनारायण व्यास को सिवाणा दुर्ग में व अन्य को जालौर दुर्ग में नजरबन्द कर दिया गया | फिर 10 मार्च 1942 को मारवाड़ स्वाधीनता दिवस व 25 सितम्बर 1942 को दमन विरोधी दिवस मनाया जाने की घोषणा की |
- 1945 को जवाहरलाल नेहरू की सलाह पर हनुवंत सिंह द्वारा सी एस वेंकेटाचारी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया |
- 3 मार्च 1948 को जयनारायण व्यास के नेतृत्व (CM) में एक मिलीजुली लोकप्रिय सरकार का गठन किया गया।
- 30 मार्च 1949 को जोधपुर रियासत का राजस्थान में विलय हो गया।
- राजस्थान का राजनैतिक गतिविधियों के लिए गठित पहला प्रजामंडल मारवाड़ प्रजामंडल है |
- जयनारायण व्यास ने कहा है की जोधपुर सरकार ने नाजियों जैसा दमन किया है एवं नागरिक स्वतंत्रता का दमन ही जो नाजीवाद है |
जोधपुर प्रजामंडल में भाग लेने वाली महिलाएं :
- सूरज देवी माथुर जो मथुरादास माथुर की पत्नी थी
- कृष्णा कुमारी जो अचलेश्वर प्रसाद की पत्नी थी
- रमा देवी जो जयनारायण व्यास की पुत्री थी
- सावित्री देवी
- महिमा देवी किंकर
नोट :
1. शारदा एक्ट : 1929 में अजमेर में हरविलास शारदा के प्रयासों से बालविवाह नियंत्रण हेतु बनाया गया | जिसमें न्यूनतम आयु 18 वर्ष पुरुष की व 14 वर्ष महिला की निर्धारित की गयी |
2. राजस्थान का पहला हिंदी दैनिक समाचार पत्र "राजस्थान सरकार" जिसे 1889 में अजमेर से मुंशी समर्थदान चारण द्वारा शुरू किया गया |
सर्वहितकारिणी सभा का गठन
इसका गठन चुरू में हुआ था जिसके संस्थापक कन्हैयालाल ढूंढ व अध्यक्ष स्वामी गोपाल दास थे | कन्हैयालाल ढूंढ ने दलितों के लिए कबीर पाठशाला व बालिका शिक्षा के लिए कन्या विद्यालय की स्थापना की |
26 जनवरी 1930 को चुरू के धर्मस्तूप पर चन्दनमल बहड एवं स्वामी गोपाल दास ने भारतीय झंडा फहराया |
3. बीकानेर प्रजामण्डल
बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना 4 अक्टूबर, 1936 को हुई थी |
- इसके संस्थापक मघाराम वैध, सुरेन्द्र कुमार शर्मा व मीणालाल बिहरा थे | किन्तु इसके अध्यक्ष लक्ष्मी देवी आचार्य को बनाया गया |
नोट : बीकानेर की "थोथी पोथी" पुस्तक का प्रकाशन भी लक्ष्मी देवी आचार्य ने ही किया |बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना बीकानेर से बाहर कलकत्ता में हुई | - उदयपुर में आयोजित अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद् के 7वें अधिवेशन में नेहरू ने बीकानेर के लिए कहा - "जहां शादी की कुमकुम पत्रीराज्य द्वारा सेंसर की जाती है तथा परदे की आड़ में जनता पर अत्याचार किया जाता है, उस राज्य का शासक इंसान नहीं हैवान है" |
- 22 जुलाई 1942 में रघुवरदयाल गोयल ने बीकानेर राज्य लोक परिषद् का गठन किया |
- महाराजा शार्दुल सिंह के काल में 26 अक्टूबर 1944 को दमन विरोधी दिवस भी मनाया गया |
मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना 24 अप्रैल 1938 को साहित्य कुटीर, उदयपुर में हुई |
- मेवाड़ प्रजामण्डल के संस्थापक माणिक्यलाल वर्मा जिन्हें महामंत्री बनाया गया था व अन्य में बलवंतसिंह मेहता को अध्यक्ष और भूरेलाल बया को उपाध्यक्ष बनाया गया ।
नोट : माणिक्य लाल वर्मा की प्रसिद्ध पुस्तक "मेवाड़ का वर्तमान शासक" है जिसे महाराणा भूपाल सिंह की आलोचनाओ हेतु लिखा गया था | - मेवाड़ रियासत के प्रधानमंत्री धर्मनारायण काक ने 24 सितम्बर 1938 को मेवाड़ प्रजामंडल पर प्रतिबन्ध लगाया गया | इसके बाद माणिक्यलाल वर्मा फिर से अजमेर में अस्थायी कार्यालय स्थापित करते हैं |
- 4 अक्टूबर 1938 को भीलवाड़ा के रमेशचंद्र व्यास ने सत्याग्रह किया जिससे ये मेवाड़ के प्रथम सत्याग्रही कहलाये |
- 1939 में वर्मा को गिरफ्तार कर कुम्भलगढ़ दुर्ग में डालाकर नजरबन्द कर दिया जाता जिसका महात्मा गांधी ने अपने अखबार हरिजन में विरोध किया |
- 1940 में वर्मा को जेल से रिहा कर दिया गया |
- 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री टी विजय राघवाचारी ने 22 फरवरी को इस प्रजामंडल से प्रतिबन्ध हटा दिया |
- 25-26 नवम्बर 1941 में मेवाड़ प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन उदयपुर की शाहपुरा हवेली में माणिक्य लाल वर्मा की अध्यक्षता में हुआ, जिसका उद्घाटन जे.बी. कृपलानी ने किया।इसमें विजय लक्ष्मी पंडित ने भी भाग लिया और इससे मोहन लाल सुखाडिया का उदय हुआ| फिर मेवाड़ हरिजन संघ का गठन किया गया |
- भारत छोडो आन्दोलन के दौरान नारायणी देवी वर्मा जो माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी थी और भगवती देवी विश्नोई जो प्यारेलाल विश्नोई की पत्नी थी जेल में गयी थी |
- फिर भूरेलाल बया को उदयपुर के सराडा किले में नजरबन्द कर दिया गया |
नोट : उदयपुर के सराडा किले को "मेवाड़ का कालापानी" कहते हैं | - 1942 में "राजाओं अंग्रेजो का साथ छोडो" का नारा दिया गया |
- 9 अगस्त 1942 को शुरू किये गए भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण मेवाड़ प्रजामंडल को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।
- 31 दिसम्बर 1945 को अखिल भारतीय राज्य लोक परिषद् का 7वां अधिवेशन सालोटीया मैदान, उदयपुर में आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरु व कश्मीर के शेख अब्दुल्लाह ने की थी |
- मेवाड़ सरकार ने पांच सदस्यों की निर्मात्री सभा का गठन किया जिसके अध्यक्ष ठाकुर गोपाल सिंह थे |
- 2 मार्च 1947 को मेवाड़ के महाराणा ने नवीन संविधान बनाने की घोषणा की |
- अप्रैल 1947 को K M मुंशी को संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया व 23 मई 1947 को निर्माण कर लागू किया |
5. बूंदी प्रजामण्डल
बूंदी प्रजामण्डल की स्थापना 1931 को हुई जिसके संस्थापक कांतिलाल, ऋषिदत मेहता व नित्यानंद नागर थे |
- इन्होने जन जागृति हेतु विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया, शराब की दुकानों के आगे धरना दिया व प्रभात फेरियां निकाली |
- 1937 में ऋषिदत मेहता को 3 वर्ष के लिए निष्काषित कर दिया गया | फिर वो अजमेर चले गए | इसके बाद बृज सुन्दर शर्मा ने नेतृत्व किया |
- 19 जुलाई 1944 को ऋषिदत मेहता ने हरिमोहन माथुर की अध्यक्षता में बूंदी राज्य लोक परिषद् का गठन किया | इसी समय ब्यावर से "राजस्थान" नामक साप्ताहिक समाचार पत्र भी निकाला |
- बूंदी के महाराव बहादुर सिंह ने उत्तरदायी शासन की मांग को स्वीकार किया |
6. हाडौती प्रजामंडल
हाडौती प्रजामंडल की स्थापना 1934 में हुई जिसके संस्थापक नयनूराम शर्मा थे | इन्होने बेगार विरोधी आन्दोलन चलाया |
7. धौलपुर प्रजामण्डल
स्वामी श्रधानंद की प्रेरणा से 1936 में इसकी स्थापना हुई | कृष्णदत्त पालीवाल, जौहरी लाल इंदु व ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु ने इसके गठन अपना योगदान दिया |
8. शाहपुरा प्रजामण्डल
शाहपुरा प्रजामण्डल की स्थापना माणिक्य लाल वर्मा के सहयोग से 18 अप्रेल 1938 को हुई | जिसके संस्थापक रमेशचंद्र मेहता, लादूराम व्यास (अध्यक्ष), अभय सिंह डांगी व गोकुल लाल असावा थे |
राजस्थान में सबसे पहले उत्तरदायी शासन की स्थापना शाहपुरा रियासत में ही हुई थी । जिसके शासक सुदर्शन देव व प्रधानमन्त्री गोकुल लाल असावा थे |
9. अलवर प्रजामण्डल
अलवर प्रजामण्डल की स्थापना 1938 में हरिनारायण शर्मा व कुंजबिहारी द्वारा की गयी थी।
- 1939 में इसके रजिस्ट्रेशन के बाद सरदार नत्थामल इसके अध्यक्ष बने।
- इसका प्रथम अधिवेशन 16,17 जनवरी 1944 को भवानी शंकर शर्मा की अध्यक्षता में किया गया था |
- इसने भारत छोडो आन्दोलन में भाग नहीं लिया |
- मास्टर भोलेनाथ ने अलवर से ही "गैर जिम्मेदार मिनिस्टरों कुर्सी छोडो" आन्दोलन चलाया गया |
- हरिनारायण शर्मा ने कई संगठन स्थापित किये - वाल्मीकि संघ, आदिवासी संघ, अस्पृश्यता निवारण संघ |
10. करौली प्रजामण्डल
18 अप्रैल, 1939 (स्त्रोत RBSE 10th) में त्रिलोकचंद माथुर, चिरंजीलाल शर्मा व कुंवर मदन सिंह द्वारा स्थापित की गयी।
- इन्होने 1927 का करौली किसान आन्दोलन का नेत्रित्व भी किया था |
- इसका सरकार से कोई विशेष संघर्ष नहीं हुआ क्योंकि उत्तरदायी शासन की मांग न के बराबर थी |
- त्रिलोकचंद माथुर की मृत्यु के बाद चिरंजीलाल शर्मा अध्यक्ष बने |
11. भरतपुर प्रजामण्डल
भरतपुर रियासत में अंग्रेज सरकार की दमनकारी निति की विरोध में 1928 में भरतपुर राज्य प्रजा संघ की स्थापना की गयी।
इसके बाद में भरतपुर प्रजामण्डल की स्थापना 1938 में की गयी | जिसके संस्थापक जुगल किशोर चतुर्वेदी, मास्टर आदित्येन्द्र, गोपीलाल यादव (अध्यक्ष) व किशनलाल जोशी थे | इसकी स्थापना रेवाड़ी (हरियाणा) में की गयी |
नोट : जुगल किशोर चतुर्वेदी को "राजस्थान का नेहरू" कहा जाता है | इनका "वैभव" नामक समाचार पत्र काफी लोकप्रिय रहा |
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान प्रजामण्डल के अधिकांश नेताओं को गिरफ्तार किया गया। महिलाओं का नेतृत्व श्रीमती सरस्वती बोहरा कर रही थी।
12. कोटा प्रजामण्डल
कोटा प्रजामण्डल की स्थापना 1939 में की गयी जिसके संस्थापक पंडित नयनू राम शर्मा व अभिन्न हरी थे | इसका प्रथम अधिवेशन 1939 में मागरोल बारां में हुआ जिसकी अध्यक्षता पंडित नयनू राम शर्मा ने की |
नोट : पंडित नयनू राम शर्मा ने 1918 में प्रजा प्रतिनिधि सभा की स्थापना की |
पंडित नयनू राम शर्मा की 1941 में ह्त्या कर दी गयी फिर अभिन्न हरी ने नेतृत्व किया |
मोतीलाल जैन के नेतृत्व में कोटा के नगर प्रशासन पर अधिकार किया | कोलेज छात्राओं ने रामपुरा पुलिस थाणे पर अधिकार किया और श्रीमती शारदा भार्गव के नेतृत्व में महिला सम्मलेन आयोजित हुआ |
13. सिरोही प्रजामण्डल
सिरोही प्रजामण्डल की स्थापना 1939 को बम्बई में हुई | इसके संस्थापक वृद्धिशंकर त्रिवेदी, समर्थलाल शर्मा, भीमशंकर सिन्धी थे | जब इसकी विधिवत स्थापना हुई तब इसके संस्थापक गोकुलभाई भट्ट व धर्मचन्द्र सुराना थे | फिर एक दिन सभा पर लाठी चार्ज किया गया जिसका गांधी ने "हरिजन सेवक" नामक समाचार पत्र में कड़ा विरोध किया |
नोट : गोकुलभाई भट्ट को "राजस्थान का गाँधी" भी कहा जाता है |
14. किशनगढ़ प्रजामण्डल
किशनगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना 1939 में कांतिलाल चौथानी एवं जमालशाह (अध्यक्ष) व महमूद खां (मंत्री) ने मिलकर स्थापना की |
इस प्रजामंडल की विशेष बात यह थी की इसने कोई विरोध नहीं किया |
15. बांसवाड़ा प्रजामण्डल
बांसवाड़ा प्रजामण्डल की स्थापना 4 मई 1943 में भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी, धूलजी भाई भावसर, मणिशंकर नागर द्वारा की गयी ।
नोट : भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी ने बम्बई से "संग्राम" समाचार पत्र प्रकाशित किया |
बांसवाडा में विजया बहिन भावसर को महिला मंडल का निर्माण करने के लिए नियुक्त किया गया |
1930 में चिमन लाल मालोत ने "शान्ति सेवा कुटीर" की स्थापना की और "सर्वोदय" नामक पत्रिका का प्रकाशन किया |
16. डूंगरपुर प्रजामण्डल
डूंगरपुर प्रजामण्डल 1 अगस्त 1944 को भोगीलाल पांड्या, हरिदेव जोशी एवं गोरी शंकर उपाध्याय द्वारा गठित किया गया।
नोट :
1. भोगीलाल पांड्या को "वागड़ का गांधी" कहा जाता है | इन्होने सेवा श्रम व सेवा संघ की भी स्थापना की थी | गोरी शंकर उपाध्याय ने "सेवक" नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया |
2. भोगीलाल पांड्या एवं गौरीशंकर उपाध्याय ने वागड़ सेवा मंदिर व माणिक्यलाल वर्मा ने "खान्डलाई आश्रम" की स्थापना की |
17. जैसलमेर प्रजामण्डल
15 दिसम्बर, 1944 को मीठालाल व्यास ने जोधपुर में जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना की। उस समय जैसलमेर के राजा जवाहर सिंह भाटी थे | जैसलमेर में जनजागृति लाने का कार्य सागरमल गोपा ने किया |
नोट : सागरमल गोपा की प्रसिद्ध रचनाएँ - जैसलमेर का गुंडाराज, आजादी के दीवाने, रघुनाथ सिंह का मुकदमा | इनको "राजस्थान का वीर सावरकर" कहा जाता है |
- शासक जवाहर सिंह ने सागरमल गोपा को राज्य से निष्काषित कर दिया फिर वे नागपुर चले गए |
- 10 जून 1942 को सागरमल गोपा पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर गिरफ्तार कर लिया और बाद में 6 साल की सजा हुई |
- 3 अप्रैल 1946 को थानेदार गुमान सिंह ने मिटटी का तेल (केरोसीन) डालकर सागरमल गोपा को जला दिया व 4 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गयी |
18. कुशलगढ़ प्रजामण्डल
अप्रैल, 1942 में श्री भंवरलाल निगम(अध्यक्ष) व कन्हैयालाल सेठिया द्वारा कुशलगढ़ प्रजामण्डल गठित हुआ।
1945 में अमृतलाल पाठक, चुन्नीलाल प्रभाकर एवं ठक्कर बाप्पा के प्रयासों से प्रतापगढ़ प्रजामण्डल स्थापित हुआ।
नोट : अमृतलाल पाठक ने गीत प्रचार समिति व हरिजन पाठशाला की स्थापना की |
20. झालावाड़ प्रजामण्डल
25 नवम्बर, 1946 को श्री मांगीलाल भव्य(अध्यक्ष), कन्हैयालाल मित्तल, मकबूल आलम द्वारा झालावाड़ प्रजामण्डल गठित किया गया।
25 नवम्बर, 1946 को श्री मांगीलाल भव्य(अध्यक्ष), कन्हैयालाल मित्तल, मकबूल आलम द्वारा झालावाड़ प्रजामण्डल गठित किया गया।
यह राज्य का सबसे नवीन व अंतिम प्रजामंडल था | इसमें राजा हरिश्चंद्र के नेतृत्व में उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई |
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राजस्थान के महत्वपूर्ण काण्ड
1. पूनावाड काण्ड
30 मई 1947 को डूंगरपुर में विद्यालय भवन नष्ट कर अध्यापक शिवराम भील को पीटा|
2. रास्तापाल काण्ड
19 जून 1947 को डूंगरपुर में अध्यापक नानाबाई खात की ह्त्या कर दी गयी और सेगाबाई को गाडी से बांधकर घसीटा गया | इसमें 13 वर्षीय बालिका कालीबाई, सेगाबाई को बचाते हुए शहीद हुई | नानाबाई एवं कालीबाई की प्रतिमा डूंगरपुर के गेपसागर तालाब के पास स्थित है |
3. बीकानेर षड्यंत्र केस
- महाराजा गंगा सिंह लन्दन में दुसरे गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने गए तब राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने "बीकानेर दिग्दर्शन" नाम से एक पत्रिका छपवाकर लन्दन में बंटवान दी जिसमें महाराजा गंगासिंह के साम्राज्य की आलोचना की गयी थी |
- गंगासिंह ने वापस लौटकर चन्दनमल बहड, स्वामी गोपाल दास, सत्यनारायण सर्राफ, प्यारेलाल, को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया व इन पर 12 अप्रैल 1930 को देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया |
- अभियुक्त के वकील रघुवर दयाल गोयल, गोपाल सिंह व मुक्ता सिंह ने मुकदमा लड़ा किन्तु अभुयुक्त को 3-7 साल की सजा हुई |
- जुलाई 1932 को बीकानेर में सार्वजनिक सुरक्षा क़ानून पारित हुआ जिसमें बिना मुक़दमे विरोधी को जेल डाला गया |इसे बीकानेर का काला क़ानून कहा गया |
- महाराजा गंगासिंह ने मघाराम वैध को बीकानेर से 6 वर्ष के लिए निष्काषित कर दिया गया |
4. मेयो बम काण्ड (अजमेर)
मेयो कोलेज में ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु एवं फतहचंद ने मिलकर वायसरॉय लार्ड विलिंग्टन को मारने का असफल प्रयास किया |
5. डोगरा काण्ड
ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु के नेतृत्व में पुलिस अधिकारी P N डोगरा को मारने का प्रयास किया गया | लेकिन अन्य अधिकारी सलालुद्दीन मारा गया |
6. तसीमों हत्याकांड (धौलपुर)
2 अप्रैल 1923 को तसीमों गाँव में कार्यकर्ताओं की शांतिपूर्ण हो रही सभा के दौरान सभा पर पुलिस द्वारा गोली चलाई गयी जिसमें छत्रसिंह व पंचम सिंह शहीद हो गए | इसलिए यहाँ शहीदों की स्मृति में प्रतिवर्ष मेला लगता है |
नोट : 1934 में ज्वाला प्रसाद जिज्ञासुनागिरी परिचारिणी सभा का गठन किया | 1936 में फिर हरिजनों द्वारा आन्दोलन चलाया गया |
7. रायसिंह नगर का हत्याकांड (1जुलाई 1946)
- बीकानेर राज्य लोक सेवा परिषद् का अधिवेशन रायसिंह नगर में हो रहा था | यहाँ पर पुलिस ने अन्धाधुन गोलियां चलाई जिसमें बीरबा सिंह शहीद हुआ |
- 17 जुलाई 1946 को बीकानेर में बीरबल दिवस मनाया गया और भारत छोडो आन्दोलन के दौरान बीकानेर में झंडा आन्दोलन हुआ |
- "चना निकासी विवाद" का सम्बन्ध बीकानेर से ही है |
- बीकानेर रियासत राजस्थान की प्रथम रियासत जिसमें केन्द्रीय विधान मंडल में भाग लिया |
- 16 मार्च 1948 में जसवंत के नेतृत्व में एक मंत्रिमंडल बना किन्तु इसे कार्यकार्ताओं ने अस्वीकृत कर दिया |
- 30 मार्च 1949 को बीकानेर को वृहत राजस्थान में मिलाया गया तथा रघुवर दयाल को हीरालाल शास्त्री के मंत्रिमंडल में शामिल किया |
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